एक कमरे में परिवार बैठे हुए है, सभी सदस्य एक साथ खोए हुए है,अपने अपने मोबाइल में…दरअसल यह चित्र वर्तमान में अधिकांश घरों में देखने को मिलता है।सबसे जुड़ने के साधन और माध्यम जितने बढ़े है,उतना ही हम अपने आप से और अपनों से दूर हो गए है।वैज्ञानिक उपलब्धियों से भरे इस दौर में घर हो या दफ्तर हमारे हर काम मे लगने वाला समय कम हुआ है.फिर भी आपाधापी ऐसी कि सभी की दिनचर्या और अधिक व्यस्त प्रतीत होती है।चिंता का विषय है तकनीक की उन्नति से अलग भी कई सारे पहलू है जिसे हमे समझना होगा।
खत्म हुआ मेलजोल
मानवीय जीवन का मुख्य आधार आपसी संवाद ही है।हमारे सवालों के जवाब अब बड़े ,बुजुर्गों ,शिक्षकों,अभिभावकों के पास नही गूगल के पास है।इसी वजह से जिंदगी स्क्रीन तक सिमटकर रह गई है।विचारणीय है आपसी संवाद का आधार होता है कुछ जानने की चाह और कुछ साझा करने की इच्छा।
भीड़ में भी तन्हा
आज के सफल ,सजग और टेक्नोट्रेंड लोगो की एक बड़ी आबादी भीतर के खालीपन से जूझ रही है.बाहरी दुनिया से जुड़ने की जद्दोजहद और बेवजह के आभासी संवाद के चलते अधिकतर लोग आत्मकेंद्रित और अकेलेपन को ही जी रहे है।हजारों से बतियाने और पल पल की बात साझा करने वालो के पास असल मे मन की पीड़ा साझा करने वाला कोई नही है.नतीजन सबके बीच रहने और जीने के बावजूद भी सूनेपन सभी के हिस्से आ रही है।
सामाजिकता भी खत्म हुई
बातचीत का यह सेतु साथ होकर भी नही जोड़ता.जिसका नतीजा है दुनिया भर से जुड़कर स्वयं में खोए रहना और अपनों से दूर हो जाना है।वास्तव में आपकी मन की उलझन आपके अपनो से किया हुआ संवाद से ही दूर होता है।तकनीक हमे आगे बढ़ाने के लिए है ।बस तकनीक और जिंदगी दोनो में बेहतर बैलेंस से ही अच्छी जिंदगी जीने की कल्पना कर सकते है।