कमलेश यादव:गरियाबंद जिले से महज दस किमी की दूरी में बसा खूबसूरत आदिवासी बाहुल्य गांव कोसमबुड़ा है।यहां के लोगों की जीवन शैली में प्रकृति से जुड़े पहलू ही नजर आते हैं । यह गांव आधुनिक विकास की दौड़ से कोसों दूर है तथा ग्रामीण, प्राचीन संस्कृति का भरपूर दोहन कर जीवन लाभ ले रहे हैं । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह गांव हैं जहां प्राकृतिक जड़ी – बूटियों का सेवन कर अपने शरीर को स्वस्थ बनाए रखते हैं । यह जडीबूटी आसपास के जंगलों से प्राप्त करते हैं । गांव की अधिकांश आबादी जड़ी बूटी का सेवन करते हैं ।
आदिवासी बाहुल्य गांव कोसमबुडा गरियाबंद जिले के अंतर्गत आता है । यहां के ग्रामीण पिछले कई वर्षों से सर्पदंश से पीडित सैकड़ों लोगों का उपचार जड़ी बूटी के माध्यम से करते आ रहे हैं । इस गांव के लोग सर्प दंश के इलाज में इतने दक्ष है कि कई लोगों को सर्पो के काटने के बाद भी आज तक इस गांव में किसी की मृत्यु नहीं हुई है तथा जानकार लोग सर्प के काटने पर इलाज कराने इस गांव में मरीज को लेकर आते हैं और रोगमुक्त होकर जाते हैं।
सर्पदंश का इलाज
यहां के ग्रामीण पिछले कई वर्षों से सर्पदंश से पीड़ित सैकड़ों लोगों का उपचार जड़ी बूटी के माध्यम से करते आ रहे हैं । इस गांव के लोग सर्प दंश के इलाज में इतने दक्ष है कि कई लोगों को सर्पो के काटने के बाद भी आज तक इस गांव में किसी की मृत्यु नहीं हुई है तथा जानकार लोग सर्प के काटने पर इलाज कराने इस गांव में मरीज को लेकर आते हैं और रोगमुक्त होकर जाते हैं । यहां के निवासी कृपाराम , गिरवर सिंह ध्रुव और अंगेश्वर सिंह के प्रयासों से यह संभव हो रहा है इनके द्वारा जय गुरू देव धवंतरी टीम का गठन सर्प दंश पीड़ितों के इलाज के लिए किया गया है।
इस सेवा कार्य मे लगे लोगों का कहना है कि तीन वर्ष तक कठिन साधना में हमें गुजरना होता है।ऋषि पंचमी के अवसर पर प्रति वर्ष विशेष पूजा पाठ करते है,तथा खानपान सादगी के साथ चुनिंदा फलों का ही सेवन करते हैं।इनके आराध्य देव शिवजी और धन्वंतरि है।इस समूह में सभी का मानना है कि मेरा भगवान पीड़ितों में है।समूह के लोग एक दूसरे के सहयोग से पीड़ितों को ठीक करने के लिए सदैव तत्पर रहते है।