कलबर्गी,एएनआइ। कर्नाटक के सुभाष पाटिल ने 14 साल जेल की सलाखों के पीछे बिताने के बावजूद डॉक्टर बनने का सपना नहीं छोड़ा। कलबर्गी के अफजलपुरा निवासी 40 वर्षीय सुभाष ने 1997 में एमबीबीएस के कोर्स में दाखिला लिया था। 2002 में उन्हें हत्या के एक मामले में जेल में डाल दिया गया था।
2002 में बेंगलुरु पुलिस ने किया था गिरफ्तार
पाटिल को नवंबर 2002 में एक आबकारी ठेकेदार अशोक गुटेदार की हत्या के आरोप में बेंगलुरु पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उस समय पाटिल गुलबर्गा के महादेवप्पा रामपुर मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस तृतीय वर्ष का छात्र थे।
कोर्ट ने सुनाई थी आजीवन कारावास की सजा
15 फरवरी, 2006 को एक फास्ट-ट्रैक अदालत ने पाटिल को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सजा को खत्म करने के लिए उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी लेकिन कोर्ट ने उनके खिलाफ उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। हालांकि, आजीवन कारावास की सजा के दौरान जेल में रहने के दौरान सुभाष के अकादमिक सपनों पर रोक नहीं लग सकी। उन्होंने 2007 में पत्रकारिता में अपना डिप्लोमा पूरा किया और 2010 में कर्नाटक राज्य मुक्त विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए किया।
जेल में अपने कामों से किया प्रभावित
उन्होंने बताया कि जेल में मैंने वहां के ओपीडी में काम किया। यही नहीं, उन्होंने सेंट्रल जेल अस्पताल में डॉक्टरों की सहायता भी की। 2008 में टीबी प्रभावित कैदियों के इलाज के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया था। अच्छे व्यवहार के कारण 2016 में मुझे रिहा कर दिया गया। 2016 में उन्होंने राजीव गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज को एमबीबीएस जारी रखने की अनुमति मांगी और विश्वविद्यालय ने कानूनी राय प्राप्त करने के बाद उन्हें मंजूरी दे दी। जेल से बाहर आकर 2019 में उन्होंने अपना एमबीबीएस पूरा किया।
पाटिल ने बताया कि अब मैं कलबुर्गी में बसवेश्वरा अस्पताल में काम कर रहा हूं। मेरे पास कर्नाटक मेडिकल काउंसिल से पंजीकरण प्रमाणपत्र है। इस महीने की शुरुआत में सुभाष ने एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के लिए जरूरी एक साल का इंटर्नशिप भी पूरा कर लिया।