पार्बती बरुआ, जिन्हें हाथी की परी के नाम से भी जाना जाता है, भारत की पहली महिला महावत हैं. उन्हें सामाजिक कार्य (पशु कल्याण) में पद्मश्री सम्मान दिया जाएगा. पद्मश्री सम्मान देश के नागरिक पुरस्कारों में चौथा सबसे बड़ा पुरस्कार है. आइए जानते हैं भारत की पहली महिला महावत पार्बती बरुआ की कहानी.
रूढ़िवादी विचार को चुनौती
अकसर पुरुषों को ही हाथियों के महावत के तौर पर देखा है. असम के गुवाहाटी की पार्वती बरुआ इसी रूढ़िवादी विचार को चुनौती देती है. पुरुष प्रधान क्षेत्र में पार्वती ने अपनी एक मजबूत जगह बनाई है. वो मानव-हाथी संघर्ष को कम करने की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता के लिए खड़ी रहीं. इस कड़ी में पार्वती ने जंगली हाथियों से निपटने और उन्हें पकड़ने में तीन राज्य सरकारों की सहायता भी की. कई लोगों की जान बचाने में इनकी अहम भूमिका रही है.
बचपन से है हाथियों से लगाव
सरकार द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार, पार्वती संपन्न पृष्ठभूमि से आती हैं लेकिन फिर भी उन्होंने एक साधा जीवन को चुना. उनके पिता हाथी के प्रख्यात विशेषज्ञ थे. अपने पिता की तरह, उन्हें भी हाथियों से काफी लगाव था. तभी वो बचपन से ही हाथियों के साथ खेलती आई हैं. 14 साल की उम्र से ही उन्होंने हाथियों को अपने इशारों पर नचाने का काम शुरू कर दिया था. लगातार चार दशकों के प्रयास में उन्होंने कई जंगली हाथियों के जीवन को बचाने और आकार देने में अहम भूमिका निभाई है. एक बार जब उनसे पूछा गया कि उन्हें हाथी इतने पसंद क्यों है, तो उनका जवाब था, ‘शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि हाथी बहुत स्थिर, वफादार, स्नेही और अनुशासित होते हैं’.
लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
पार्बती हाथियों से संबंधित संगठनों से जुड़ी हुई हैं. वह एशियन एलीफैंट स्पेशलिस्ट ग्रुप, IUCN की सदस्य हैं. उनके जीवन पर कई डॉक्यूमेंट्री भी बनी हैं. बीबीसी ने उनके जीवन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी. उसका नाम “क्वीन ऑफ द एलिफेंट्स” था. कोलकाता इंटरनेशनल वाइल्डलाइफ एंड एनवायर्नमेंटल फिल्म फेस्टिवल ने पार्वती को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया हुआ है. 67 वर्षीय पार्बती बरुआ एक संपन्न पृष्ठभूमि से आती हैं, फिर भी उन्होंने अपनी जिंदगी हाथियों को समर्पित करने का निर्णय लिया. वो हाथियों को बचाने के लिए काफी एक्टिव रहती हैं.