ग्राउंड जीरो की वास्तविक कहानी…कोई कहता है कि वह प्रेम का प्रतीक है,तो कोई कहता है एक साधारण व्यक्ति की असाधारण कहानी…पहाड़ काटकर सड़क बनाने वाले दशरथ मांझी…बड़े बड़े लोग उनके यहाँ आये,मूवी भी बनी,लेकिन परिवार मुफलिसी की जिंदगी जी रहे

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कमलेश:किसी ने इसे प्यार का प्रतीक बताया तो किसी ने एक साधारण इंसान की असाधारण कहानी किसी के लिए वे प्रेरणा के पुंज रहे उसके नाम से कई फ़िल्म कहानियां बनी सोशल मीडिया में ट्रेंड चला संग्रहालय बनाया गया कुछ जगहों के नाम भी उसके नाम से रखा गया।आज हम बात करेंगे माउंटेन मेंन दशरथ मांझी के बारे में जिसकी साहस के सामने पहाड़ को भी बौना साबित होना पड़ा।दशरथ मांझी के गांव में उनके परिवार से मिलने गए दिनेश यादव ने आपबीती सत्यदर्शन लाइव के साथ साझा की है।

छोटी बड़ी बेजान पहाड़ियों के बीच छोटा सा गांव दशरथ मांझी के जीवन की दासता बयां करती है।दिनेश यादव जी ने बताया कि उनके परिवार बहुत ही मुफलिसी की जिंदगी जी रहे है।बहुत बड़े बड़े लोग उनके यहाँ आये,मूवी भी बनी,लेकिन उनके परिवार आज भी भुखमरी की कगार पर है।भगीरथ मांझी ने अपने पिता से जुड़ी हरेक चीजो को बड़े प्यार से दिखाया।कितनी अजीब है न यह दुनिया किसी के नाम से करोड़ो अरबों रुपये कोई कमा लेता है और वास्तविक पात्र और उनके परिवार एक एक रुपये के लिए तरसते नजर आते है।

दशरथ मांझी की कहानी एक साधारण आदमी के असाधारण जुनून, जज़्बे और संघर्ष की कहानी है. जिसने मात्र सच्चे प्रेम के लिए अपने मजबूत इरादों की बदौलत पहाड़ का सीना चीर दिया. इस इंसान को दुनिया आज ” माउंटेन मैन ” के नाम से जानती हैं. इस साधनविहीन,अनपढ़ योद्धा का जन्म 14 जनवरी 1934 को बिहार के गया जिले के  सामाजिक और आर्थिक रूप से एक पिछड़े गांव गहलौर गांव हुआ था.फिल्म ‘द माउंटेन मैन’ में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने निभाया मांझी का किरदार

55 किलोमीटर का रास्ता घटकर सिर्फ 15 किलोमीटर रह गया
360 फ़ीट लम्बा और 30 फीट चौड़ा रास्ता बनाने के क्रम में दशरथ मांझी ने अपनी जिंदगी में ना जाने कितनी झंझावातें सहीं. इस दौरान किसी ने सनकी तो ,किसी ने पागल कहा. मगर धुन के पक्के दशरथ ने किसी की भी परवाह नहीं  की. 1960 में लिया यह प्रण ,पूरे 22 सालों तक पूरी शिद्दत से निभाया. 1982 में इस सड़क के बन जाने के बाद अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 55 किलोमीटर से घटकर 15 किलोमीटर रह गया. बिहार के गया जिले स्थित गहलौर से नजदीकी शहर वजीरगंज जाने के लिए 50 किमी की दूरी तय करनी पड़ती थी. मगर दशरथ मांझी के इरादों ने वह दूरी मात्र 15 किलोमीटर कर दी आज इस सड़क को दशरथ मांझी पथ के नाम से जाना जाता हैं.

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