हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि हम सक्षम हैं…ट्राइबल लोगों में भी क्षमता है,मौका तो दीजिए…आदिवासी मां गोद में बेटी लेकर रैंप पर उतरी…महिलाएं मजदूरी करने जाती हैं उन्हें रेजा कहा जाता है…वे अपने बच्चे को छोड़ नहीं सकतीं, उनकी देखभाल करनेवाला कोई नहीं होता

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मैं अलीशा गौतम उरांव। झारखंड की राजधानी रांची की रहने वाली हूं। दो बेटियों की मां हूं पर रैंप पर चलना अच्छा लगता है। कई फैशन शोज में भाग ले चुकी हूं। जब अपनी 10 महीने की बेटी को बेतरा (बच्चे को बांधने वाला कपड़ा) में बांध कर कोरा (गोद में) लिया और रैंप वॉक किया तो वीडियो वायरल हुई।

यह देश में पहला मौका था जब बच्चे को गोद में लेकर किसी मॉडल ने रैंप वॉक किया। मैंने पड़िया साड़ी और ट्राइबल जूलरी जैसे-हसुली, बाजूबंद पहने थे। न पैरों में हाई हील और न ही चेहरे पर मेकअप।इस तरह रैंप वॉक करने में रांची के ही डिजाइनर सुमंगल नाग ने मेरी मदद की। उन्होंने कहा कि हम लोग एक फैशन शो कर रहे। इसमें एक ट्रैडीशनल राउंड है क्या तुम करोगी?

मैंने कहा कि अगर हमें अपनी संस्कृति को रिप्रेजेंट करने का मौका मिल रहा है तो इसे मैं जरूर करूंगी।झारखंड की राजधानी रांची में एक फैशन शो में ट्रैडीशनल राउंड में अलीशा गौतम उरांव ने रैंप वॉक किया। सोशल मीडिया पर रैंप वॉक का वीडियो वायरल हुआ।

रेजा को देखा है कोरा में बच्चे को लेकर जाते हुए
मैंने कहा कि अपने राज्य में महिलाएं मजदूरी करने जाती हैं। उन्हें रेजा कहा जाता है। वे अपने बच्चे को छोड़ नहीं सकतीं। उनकी देखभाल करनेवाला कोई नहीं होता। जब बच्चा सोया रहता है तो उसे बेतरा से पीठ पर बांध कर काम करती हैं और जब बच्चा जग जाता है तो सामने की तरफ कोरा में बांध लेती हैं।इसी से हमें आइडिया आया। हमने सुमंगल नाग से बात की कि क्या हम ऐसा करके रैंप वॉक कर सकते हैं। इसके पीछे यह भी कारण था कि मेरी बेटी नायरा भी 10 महीने की ही थी।

हमने छोटी से छोटी चीज पर फोकस किया। जैसे-पहले के जमाने में आदिवासी महिलाएं कैसे साड़ी पहनती थीं, कौन-कौन सी जूलरी होती है। इस तरह हमने यह रैंप वॉक किया। इसमें मेरे पति ने भी काफी सपोर्ट किया।

किसी से कहना नहीं कि तुम आदिवासी हो
जब स्कूल में थी तो क्लासमेट्स मुझसे दूर रहते। मुझसे दोस्ती नहीं करते थे। मेरे डार्क कॉम्प्लेक्शन को लेकर बहुत कुछ कहा। तुम काली हो, तुम्हें छुएंगे भी तो गंदे हो जाएंगे। रेसियल कमेंट्स तो सामान्य बात थी। अरे! ये तो आदिवासी है।

देखो कहीं कहना नहीं कि तुम ट्राइबल हो। बोलोगी तो तुम्हें सही दर्जा नहीं मिलेगा। मैं कहती कि ट्राइबल होना क्या पाप है। ट्राइबल भी इंसान हैं। मैंने गांठ बांध ली कि इसी शक्ल-सूरत के साथ ऐसा काम करूंगी कि लोग मुझे याद करें।

लोगों ने कहा- तुम नाओमी कैंपबेल की तरह दिखती हो
निफ्ट गांधीनगर में फैशन डिजाइनिंग करते समय मेरे कई दोस्त बने। जब मैं बाल सेट करती तो वो कहते कि तुम अमेरिका की मॉडल नाओमी कैंपबेल की तरह दिखती हो। तब मुझे लगा कि कुछ तो है मेरे अंदर।दोस्तों ने कहा कि अब जमाना ज्यादा प्रोग्रेसिव है। डार्क कॉम्प्लेक्शन वाले मॉडलों को खूब पसंद किया जाता है। निफ्ट से पढ़ाई के बाद 2014 में मैं रांची लौट आई। तब मेरी शादी हो गई। मैंने फैशन डिजाइनिंग का काम शुरू किया।

जमशेदपुर में आयोजित मिसेज बाहा प्रतियोगिता में अलीशा गौतम उरांव रनर अप रही थीं। तब भी रैम्प वॉक कर उन्होंने ऑडियंस का दिल जीता था।

ट्राइबल लोगों में भी क्षमता है, मौका तो दीजिए
लोग सांवले रंग को कमतर समझते हैं। इसका दंश ट्राइबल लोगों को झेलना पड़ता है। आदिवासी ये नहीं कर पाएंगे, वो नहीं कर पाएंगे। कोई लक्ष्य पूरा कर लिया तो कहेंगे सीट रिजर्व है इसलिए ऐसा हो पाया। हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि हम सक्षम हैं। मौका मिलेगा तो जरूर हम भी एवरेस्ट की चोटी छू सकेंगे।

मेरे घर में स्पोर्ट्स के प्रति गहरा लगाव रहा है। मम्मी सरस्वती उरांव बैंडमिंटन और खोखो की प्लेयर रहीं। जब स्कूल में थी तो मुझे वॉलीबॉल टीम में लिया गया। वहां हमने रेगुलर वॉलीबॉल खेला।इसी सिलसिले में धनबाद भी गई। वहां नेशनल के लिए सिलेक्शन ट्रायल चल रहा था, वहां मैंने भाग लिया। मेरा नेशनल के लिए सिलेक्शन हो गया। कुछ समय के लिए नेशनल भी खेला, पर पापा की इच्छा थी कि मैं पढ़ाई में ही आगे बढ़ूं।

जब प्लस 2 के लिए देहरादून गई तो वहां वॉलीबॉल छोड़कर फुटबॉल में मन लग गया। स्कूल प्रबंधन ने कहा कि झारखंड की लड़की है, अच्छा फुटबॉल खेलती है। वहां मैं फुटबॉल टीम की कैप्टन बन गई। फिर आगे फुटबॉल को छोड़कर मैं मॉडलिंग में चली आई।

मॉडलिंग के अलावा मैंने कुकिंग में भी कुछ अलग करने की सोची। जब मैं अपने गांव जाती और दादी, नानी से मिलती तो उन्हें तरह-तरह के पारंपरिक डिशेज बनाते देखती। अपनी बेटी को खिलाने के लिए मैं कुछ-कुछ बनाने लगी।इस तरह कुकिंग में इंटरेस्ट आता गया। अपनी बेटी के नाम पर तमायरा क्लाउड किचन की शुरुआत की। रागी जिसे गांव में मड़ुआ कहते हैं, उससे हमारे किचन में खास डिश तैयार होती है।

अरसा, निमकी, ठेकुआ, धुसका, घोंघी, यकनी, कुदरुम की चटनी, साग झोर, उड़द दाल की बड़ी, पोर्क ड्राई फ्राई, बांदा झोर, सुरी भात (ट्रैडीशनल चिकन बिरयानी), चिकन चाख जैसी पारंपरिक डिशेज तमायरा किचन के जरिए सर्व की जाती है।

चलते-चलते…डार्क कॉम्प्लेक्शन से किसी की पर्सनालिटी में कमी नहीं आती। खुद पर विश्वास रख कोई भी ऊंचाई को छू सकता है। भारत में कई ऐसी मॉडल हैं जिन्होंने सांवली सूरत के साथ पहचान बनाई हैं। कई तो बड़े इंटरनेशनल ब्रांड्स के साथ मॉडलिंग कर रही हैं।

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