स्वतन्त्र भारत का संविधान देश की एक अमूल्य निधि है।यह न केवल एक पवित्र दस्तावेज है अपितु सम्पूर्ण देशवासियों की आशाओं एवं आकांक्षाओ का पुंज है।यह अपने आप मे कई नवीनताओं को ग्रहण किये हुए है।यदि यह कह दिया जाये तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी कि यह नियंत्रण एवं संतुलन का एक सुंदरतम उदाहरण है।
विचारणीय विषय
हमारे संविधान को बने छ:दशक से अधिक हो गए है।इन छः दशकों के सफर में संविधान ने कई उतार-चढ़ाव देखे है।इसमे अब तक कई संशोधन हो चुके है।देश ,काल और परिस्थितियों के अनुसार जब जब संविधान में संशोधन की आवश्यकता समझी गई,उसमे संशोधन किए गए।समाजवाद,पंथ निरपेक्ष, राष्ट्र की एकता और अखण्डता, वयस्क मताधिकार, निःशुल्क विधिक सहायता,पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा आदि व्यवस्थाये संशोधनो की ही देन है।विगत कुछ वर्षों में देश मे हालात गम्भीर बने है।सरकारे बनना और गिरना,राजनीति में बढ़ते भ्र्ष्टाचार,शासन एवं प्रशासन में लुप्त होती पारदर्शिता, नित नए दलों का गठन,जातिगत आधार पर आरक्षण आदि ऐसी कई समस्याएं देश के सामने चुनौती बन गई है।
संघर्षो की लंबी लड़ाई
अतीत में हमारे पूर्वजों ने बहुत लंबा संघर्ष किया है।असंख्य देशभक्तों की कुर्बानियां छिपी हुई है।स्वतंत्रता की लड़ाई का इतिहास खून से रंगा और सना हुआ इतिहास है।रानी झांसी,तात्या टोपे,वीर शिवाजी,शहीद भगत सिंह,चन्द्रशेखर आजाद,पूज्य बापू,नेताजी सुभाषचंद्र बोस,बाल गंगाधर तिलक जैसे कई नाम इस आंदोलन की जड़ो में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
आओ आज हम सब मिलकर यह संकल्प ले कि-हम भारतवासी अपने गणतंत्र के महान आदर्शो-लोकतंत्र, समाजवाद,धर्म-निरपेक्षता,न्याय,स्वतंत्रता, समानता,भ्रातृत्व,सद्भभावना,एकता, अखण्डता,शांति,उन्नति के प्रति समर्पित है।हम इनके प्रति सदा ही वचनबद्ध रहेंगे।।।