पशु भी समझते है प्रेम की भाषा फिर इंसान क्यों नहीं समझता है बचपन से समाजसेवा करने जिद ने बनाई पहचान रक्तदाता के साथ ही शिक्षा स्वास्थ्य और प्रकृति के संरक्षण की दिशा में गुमनाम होकर काम करने वाले शख्सियत की कहानी कुछ मेरी कुछ उनकी जुबानी
सुरेन्द्र कुमार बैध जी का जन्म 03/09/1993 को ग्राम-कुल्हाड़गांव,तहसील-फरसगांव,जिला-कोंडागांव,रुचि-समाज सेवा,शैक्षणिक योग्यता-बी.ए.,कम्प्यूटर,वे कहते हैं कि मेरा जन्म ग्राम कुल्हाड़गांव में 03/09/1993 को हुआ। मैं उन मेरे माता-पिता को धन्यवाद देता हूं कि जिनकी वजह से आज मैं इस दुनिया में हूं।मुझे खुशी है कि मैं भारत जैसे देश में जन्म लिया हूं और जब बस्तर जैसे क्षेत्र की बात हो तो इन जगह पे जन्म लेना ही बहुत अधिक सुखद अनुभव का एहसास होता है।बस्तर की संस्कृति जहां सबको मोहित करती है तो खुशी बहुत होती है कि मैं भी इस संस्कृति का हिस्सा हूं।
समाज सेवा में रूचि
सुरेंद्र बैध जी कहते हैं कि मुझे लगता है समाज में इससे बड़ा कोई कार्य हो ही नहीं हो सकता। मैं बचपन से ही समाज में सेवा करता आया हूं। जब मुझे मेरी शुरूवाती पढ़ाई के दिनों में शिक्षक पूछते थे तो मेरा जवाब होता था समाज सेवक | जब मुझे समाज के लिए कोई कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है | मैं कभी पीछे नहीं रहता अपने जिम्मेदारियों को समझ कर्त्तव्यपरायणता का परिचय देता हूं | मुझे इंसान नहीं पशुओं से भी विशेष लगाव है। वो बस बेजुबान होते हैं मगर भाव तो इंसानों जैसे होते हैं भावों को बताया नहीं किया जाता सिर्फ उसे महसूस किया जा सकता है। मुझे मंचो पर एंकरिंग का भी बहुत अधिक शौक है।
मेरी सोच-मेरे विचार
सुरेन्द्र बैध जी सवालों के जवाब में कहते हैं कि – आज की दुनिया में हर कोई यहां एक दुसरे को गिराने में तुला हुआ है। पर मैं सोचता हूं यह बिल्कुल भी इंसानो को शोभा नहीं देती।हर व्यक्ति को अच्छे विचारों को एक दूसरे के समझ प्रकट कर एक-दूसरे को समझने की आवश्यकता है ।यही हम इंसानों की समझ ही हर घर,समाज,परिवार,देश-दुनिया को आगे लेके जा सकता है।समभाव विचार ही मनुष्य को सुखी और संतुष्टि दे सकती है।
प्रथम संस्था को धन्यवाद
संस्था को बहुत-बहुत धन्यवाद जो कि मुझे इस लायक बनाया।मुझे कुछ सिखाया।मैं जब 2009 में 11वी कक्षा में था तब मुझे प्रथम एजुकेशन फांउडेशन के बारे में पता लगा मैं संस्था से जुड़ गया और स्वयंसेवक के तौर पर 1ली से 8वीं तक के बच्चों को शाम को घर पर ही 2वर्ष तक पढ़ाया। फिर जब मैं 2011 में 12वी पास हुआ तो प्रथम संस्था से पुरी तरह से जुड़ गया और मुझे काम करने का अवसर प्राप्त हुआ बस्तर जिले के बास्तानार विकासखंड में जहां बहुत कुछ सीखने को मिला। उस क्षेत्र में 2 वर्ष तक रहा तो समझ आया कि वहां शिक्षा की बहुत अधिक आवश्यकता है। लोग आज भी दैनिक जरूरतों से काफी दूर हैं।
रक्तदान के विषय में सोच
अगर मेरा शरीर स्वस्थ रहा तो मैं हमेशा तीन महीने में रक्तदान करना चाहूंगा। अभी भी कर रहा हूं पर मेरे अकेले के रक्तदान करने से रक्त की पूर्ति नहीं हो सकती।इसके लिए हर किसी को आगे आने की आवश्यकता है।तभी अधिक मात्रा में रक्त की पूर्ती की जा सकती है मैं धन्यवाद देता हूं उन नारी शक्तियों को उन रक्त वीरों को जो रक्तदान के लिए आगे हैं।धन्यवाद ज्ञापित करना चाहूंगा हमारे विक्रान्त नायक जी के लिए जिन्होंने बस्तर संभाग के हर जिले में व्हाटसप में रक्तदाता ग्रुप बनाकर एक प्लेट फार्म तैयार किया।आज इस ग्रुप के माध्यम से पिछले 4 वर्षों में हजारों लोगों की जान बचायी जा चुकी है।
पशुओं से प्रेम और लगाव:
पशु बेजुबान होते हैं ये हमारी सोंच है ।परन्तु उनमें भी अपनी भावों को प्रकट करने की,अपने शरीर की भाषा से बताने की एक अलग शैली होती है।जब कोई किसी पशु को पत्थर से या किसी चीज से मारता है तो मुझे बहुत पीड़ा होती है।आप किसी भी पशु से एक बार प्रेम करके तो देखिए।वो हमेशा आपके इर्द-गिर्द ही रहेगा। आपके साथ सहज महसूस करेगा। मेरे घर मे एक सफेद बिल्ली है।जिसका नाम मैंने मीनू रखा है।उसे घर मे इतना अधिक प्रेम मिलता है कि वह हमारे साथ ही रहता है। घर मे कोई भी सामने रहे जब तक ना दो तब तक खाती नही है। आप चाहे उसे कितनी ही खाने की चीजें दो वो खाएगी नही। उसे चाहिए तो बस ड्रीम लाइट बिस्किट और मेरे गोदी में आकर सो जाना। मैं मेरी मीनू के साथ बहुत अधिक खुशी मेहसूस करता हूँ।
ऑनलाईन इजुकेशन हो सकती पर पढ़ाई नहीं
भले ही कोविड-19 की वजह से ऑनलाइन शिक्षा बच्चों तक पहुंचाया जा रहा है।पर शैक्षणिक संस्थानों के बिना वैसी शिक्षा बच्चों को नही मिल पाएगी जो संस्थानों में मिलती है।सरकार व कुछ शैक्षणिक संस्थानों ने ऑनलाइन शिक्षा का प्रयास जरूर किया है परंतु इसके दुष्परिणाम भी बच्चों में दिख रहा है। बच्चें पढ़ाई छोड़ मोबाइल में अपने मनोरंजन के साधन खोजने लगते हैं और कुछ गलत चीजों से सामना हो जाता है।जो बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो सकता है। अगर बच्चा ऑनलाइन पढ़ाई कर रहा है तो उसके साथ सरंक्षक का होना अतिआवश्यक है। पर अभी तक ऑनलाइन पढ़ाई से ज्यादा प्रतिफल मिलता नजर नहीं आ रहा है।
प्रेम प्रकृति प्रदत है
प्रेम प्रकृति की देन है।वह हमें सिखाती है कि कैसे प्रेम किया जा सकता है।जितना अधिक हम प्रकृति से प्रेम करते हैं उतना हमे प्रकृति प्रेम देती है।लड़का या लड़की के बीच होने वाले प्रेम सम्बंध को ही प्रेम नही कहते।प्रेम तो हर चीज में होती है। हर रिश्तों में होती है।हर पशु-पक्षी में होती है। मैं अगर कहूँ तो प्रेम की कोई परिभाषा हो ही नही सकती। मगर अपने छोटे से लफ्ज से एक दो बात अवश्य कह सकता हूँ। प्रेम तो एक दीया है,जो अंधेरे में उजाला फैलाता है।प्रेम तो एक एहसास है जो रुके नब्ज में भी रक्त का संचार करती है।प्रेम तो वो निर्मल जल है जो दहकती आग को भी बुझा देती है।प्रेम तो वो दरिया है जहाँ हर किसी को तैरने का मन करता है। सही मायने में देखा जाए तो जहाँ प्रेम होता है वहाँ ईर्ष्या नही होती।जहाँ सच्चा प्रेम होता है वहीं ईश्वर का निवास होता है। जहाँ त्याग व समर्पण होता प्रेम वहीं होता है। आशा करता हूँ।हमारे देश के विभिन्न विचारों के लोग प्रेम के महत्व को समझ जल्दी ही एक तार में बंध आपसी भाई-चारा स्थापित करें।
ये थे हमारे आज के खास शख्सियत सुरेन्द्र कुमार बैध जी | जिन्होंने अपनी जिद और हौसला से समाज सेवा की दिशा में नया मुकाम पाया है | निश्चित ही आज की युवा पीढ़ी इनसे बहुत कुछ सीखेगी | फिर किसी नये शख्सियत के साथ खास मुलाकात में हाजिर रहूंगा | तब तक के लिए जय हिंद जय बस्तर