मंगली को कोई देख न ले, इस कातर भाव से,’मंगली’ किताब और पेंसिल लेकर दरवाजे की ओट से छिपकर देख रही है,उसके पापा आयेंगे बाजार में लकड़ी बेचकर रूपयों से कपड़ा खरीद कर लायेंगे तो वह भी स्कुल जायेगी,पापा कब आयेंगे पता नहीं,क्योंकि वे रोज बोलकर जाते हैं,ड्रेस लेकर आंयेंगे,पर कनकी ही खरीद कर लाते हैं, लेकिन आज उम्मीद बहुत है! गांव की पढ़ने वाली लड़कियां ‘रामबती,सोनबती’ कह रही थी कि आज उनके पापा ड्रेस लायेंगें तो पहन स्कूल जायेंगी! क्योंकि बेटियों को जरूर पढ़ना है ऐसा पापा कहते है!
मंगली सोंचती मेरे पापा बहुत अच्छे हैं, फिर शाम को पापा लकड़ी बेचकर किताब और स्लेट लेकर आते हैं,साथ में कुछ भूने चने की पुड़िया जिसे देखकर मंगली बहुत खुश होती है |
आज से उसने स्कुल जाने का ठान लिया क्योंकि पापा कहते कि बेटियों को पढ़ना ही है,वो पढ़ेंगी तो दो कुल को रोशन करेंगी,इसलिये मैं जरूर पढूंगी |
मंगली की इस तरह की बुदबुदाती बात सुनकर पापा की आंखों से आंसू निकल आते हैं |
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*विश्वनाथ देवांगन”मुस्कुराता बस्तर”*
कोंडागांव बस्तर छत्तीसगढ़