भारत की मिट्टी में वीरता का रस इस तरह घुला है कि यहां के सिर्फ़ पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी अपने पर आ जाएं तो अनहोनी को होनी में बदलने का दम रखती हैं. भारत के इतिहास ने ऐसी कई वीरांगनाओं की कहानियां अपने गर्भ में छुपा रखी हैं, जो इस बात को साबित करती हैं कि जब-जब मौका मिला है तब-तब इन्होंने समाज के नियम कानून को बदल कर रख दिया है.
सिक्किम की अपराजिता राय की कहानी भी ऐसे ही एक बदलाव की कहानी है. अपराजिता उन हालातों में से निकल कर आगे आईं, जहां से किसी के पास भी टूट जाने का पर्याप्त कारण होता है. जहां बहुत से लोग जीवन में कुछ न कर पाने की बड़ी वजह अपने हालातों के बताते हैं. वहीं अपराजिता आठ वर्ष की आयु से इन हालातों के साथ दो-दो हाथ करती आई हैं.
तो चलिए आज हम आपको बताते हैं सिक्किम की उस लड़की के बारे में जिसने केवल अपने पिता का सपना ही पूरा नहीं किया, बल्कि सिक्किम में महिलाओं के लिए एक नया रास्ता भी खोल दिया :
बचपन में ही पिता को खो दिया
अपराजिता का जन्म एक शिक्षित परिवार में हुआ. पिता वन विभाग के डिविज़नल ऑफिसर थे. वहीं मां रोमा राय एक शिक्षिका थीं. एक तरह से अपराजिता का भविष्य सुरक्षित था. वह बिना किसी परेशानी के अपने लिए जीवन का एक बेहतर पथ चुनने को आज़ाद थी. लेकिन कहते हैं ना वक्त ने अपनी मुट्ठी में क्या छुपा कर रखा है ये कोई नहीं जानता.
अपराजिता के लिए वक्त ने खुद को कठोर कर लिया था. महज 8 साल की उम्र में उसके सिर से पिता का साया उठ गया. एक ईमानदार पिता के बच्चों को उनके बाद विरासत में कोई धन संपदा नहीं, बल्कि ईमानदारी और सच्चे उसूलों से लबरेज विचार ही मिलते हैं. पिता के गुजर जाने बाद सारी ज़िम्मेदारी उनकी मां के कंधों पर आ गयी.
ऐसे में अपराजिता का भविष्य अंधेरे में जा सकता था लेकिन मां ने ऐसा होना ना दिया. रोमा ने अपराजिता के हौसलों को और मजबूत बनाया तथा अपने हालातों से लड़ते हुए उसकी अच्छी परवरिश की. अपराजिता ने बहुत ही छोटी उम्र से इस बात पर गौर करना शुरू कर दिया था कि सरकारी महकमों में किस तरह से आम लोगों के प्रति असंवेदनशीलता दिखाई जाती है.
किस तरह से लोगों को छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान के लिए बार बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं. इन्हीं सब बातों ने अपराजिता के मन में इस विचार को पक्का किया कि वह इस सिस्टम का हिस्सा बनेंगी तथा इसके काम करने के तरीकों में बदलाव लाएंगी.
12वीं में पूरे राज्य में टॉप किया
अपराजिता बचपन से ही एक मेधावी छात्रा रही हैं. इसका प्रमाण सबसे पहले तब मिला, जब उन्होंने आईएससी यानी 12वीं की परीक्षा में 95% अंक लेकर पूरे राज्य में टॉप किया. इसके लिए उन्हें ताशी नामग्याल एकेडमी से बेस्ट ऑल राउंडर श्रीमती रत्ना प्रधान मेमोरियल ट्रॉफी से सम्मानित किया गया था.
अपराजिता के पिता चाहते थे कि वो वकालत करे और बड़ी वकील बने. पिता के इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने नेशनल एडमिशन टेस्ट दिया तथा 2009 में पश्चिमी बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूडिशियल साइंस, कोलकाता से बीए एलएलबी (ऑनर्स) की डिग्री हासिल की. यहां भी अपराजिता किसी से पीछे नहीं रहीं तथा ज्यूरिडिशियल साइंसेज में गोल्ड मेल हासिल किया.
अपराजिता ने भले ही वकालत कर ली थी, लेकिन उनकी मंजिल ये नहीं थी. जल्द ही उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि अगर उन्हें समाज में कुछ बेहतर करना है, तो उनका किसी बड़े पद पर होना ज़रूरी है. इसके बाद अपराजिता यूपीएससी की तैयारी में जुट गयीं. अपराजिता ने पहली बार 2011 में यूपीएससी की परीक्षा दी. इसमें उन्होंने 950 में से 768वीं रैंक हासिल की.
इतनी रैंक आने के बावजूद वह संतुष्ट नहीं थीं. यही कारण था कि उन्होंने दोबारा से यूपीएससी के लिए तैयारी की तथा 2012 में दोबारा परीक्षा दी. इस बार उन्होंने इतिहास रचा. अपराजिता 368 रैंक हासिल कर के यूपीएससी में सिक्किम की सबसे ज़्यादा रैंक हासिल करने वाली पहली महिला बन गयीं.
28 साल की उम्र में आईपीएस
बात यहीं खत्म नहीं होती. 28 साल की उम्र में आईपीएस बनने वाली इस गोरखा गर्ल के नाम सिक्किम की पहली महिला आईपीएस आफिसर बनने का रिकार्ड भी दर्ज है. अपराजिता का लक्ष्य केवल आईपीएस ऑफिसर बनना ही नहीं था. वह हमेशा इस बात के लिए प्रयास करती रहीं कि सिक्किम के और भी युवा उनकी तरह खुद की उड़ान सुनिश्चित करें और सरकारी सेवाओं का हिस्सा बनें.
अपराजिता का मानना है कि “आज भी यहां के युवा सिविल सर्विसेज को लेकर जागरुक नहीं हैं. उनके लिए सरकारी नौकरी पा लेना ही बड़ी सफलता है. आज भी कई युवा अपने इलाकों से बाहर नहीं निकलना चाहते. जबकि उन्हें आगे आ कर खुद को निखारना चाहिए, कुछ बेहतर करना चाहिए.”
अपराजिता अभी कोलकाता स्पेशल टास्क फोर्स की डिप्टी कमिश्नर का पद संभाले हुए हैं. अपराजिता ने अपनी मेहनत और लगन के बलबूते पर कई पुरस्कार जीते. उन्हें बेस्ट लेडी ऑटडोर उम्मीदवार के लिए 1958 बैच आईपीएस ऑफिसर्स ट्रॉफी से पुरस्कृत किया गया.
इसके अलावा फील्ड कॉम्बेट के लिए उन्हें उमेश चंद्र ट्रॉफी, बेस्ट टर्न आउट के लिए 55 बैच की सीनियर ऑफिसर्स ट्रॉफी और वेस्ट बंगाल गर्वमेंट ट्रॉफी से सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा अपराजिता गिटार बजाने, नृत्य कला तथा खेलों में भी खूब निपुण हैं. वह इसी साल 3 से 9 फरवरी तक मध्यप्रदेश के भोपाल में खेले गये ऑल इंडिया पुलिस बैडमिंटन चैंपियशिप में सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं.
अपराजिता जैसी लड़कियां खासकर उन महिलाओं के लिए एक उम्मीद की किरण हैं, जो आज भी अपने आप को समाज के बंधनों में बंधा पा कर अपने अंदर की प्रतिभा को मार देती हैं. इसके साथ ही अपराजिता की कहानी सभी मांओं को भी ये सीख देती है कि उन्हें हर हालात से लड़ कर अपनी बेटियों को उड़ने के लिए पंख देने चाहिए. याद रखिए ज़मीन पर चल रही ये बेटियां आसमान में उड़ने का पूरा दम रखती हैं, इन्हें ज़रूरत होती है तो केवल आपके प्रोत्साहन की.