*सच कह दूं..*
!
सपनों का होना,
अपनों को खोना,
कारखानों का कोना,
हमारा आशियाना,
मजबूरी है जाना,
वरना,,,
कौन चाहता है छोड़ जाना,
मां का साया स्वर्ग है,
फिर,,
दूध का कर्ज भी तो है,
कौन चाहता है,
ऐसा आशियाना,
जितना मारना है,
मार ले… ताना,ऐ जमाना,
तेरे जैसा नकाब,
हमें नहीं आता है,
चेहरे….पे,चेहरा लगाना,
सच कह दूं,
तो मिर्च लग जायेगी,
मैं श्रमिक,
पलायनी भगोड़ा,
ये उपाधि मिल जायेगी,
अब तुम ही बता दो,
रंग-रंगीली,
छैल-छबिली दुनिया में,
कौन किसका होता है,
हिम्मत वाला पैदल चलता है,
किस्मत वाला सोता है,
अजीब मंजर है ये,
गजब की है दास्तां,
श्रम देव चल रहा,
तो सिसक रहा आसमां,
यूं तंत्र ने,,,,,
कैसे-कैसे पैंतरे आजमाये हैं,
नसीब वाले प्लेन से चले,
हम धरती मां में चल आये हैं,
कुछ सोंचो गरीबों पर,
ऐ खुदा !,,,,
रहम कर इस अंधड़ जमाने में,
वो लहू से लथपथ चल रहा,
और वो देख,,,,
वो मदमस्त मयखाने में,
अपने ही,
रोटी फैंक कर दे रहे,
जैसे अछूत की हो जमात,
अपनों के बीच ही सब,
बहाने करके कि-,
कोरोना ने किये रिश्ते बर्बाद,
पिछला नहीं है,श्रम अब भी,
चल रहा लश्कर, बन फौलादी है,
घड़ियालू आंसू सब बहा गये,
सचमुच,,,,
कब मिली हमें आजादी है ?
पेट के खातिर हम,
दीन हीन पलायनी बन बैठे,
चल दिये थे रोटी को,
अब मां को हम भुलायें कैसे,
पग-पग लथ-पथ हम चल रहे,
मां घर से मिलन को मचल रहे,
हम आ रहें हैं,पश्चाताप लेकर,
मिलन को मां से,
पी सिसक संताप जहर,
हम जैसे भी है तुम पे भारी हैं,
हम श्रमिक हैं,श्रम पुजारी हैं |
*©®✍️Ⓜ️मुस्कुराता बस्तर🅱️*
कोंडागांव,बस्तर,छत्तीसगढ़
_*सत्यदर्शन साहित्य विशेष*_ *सच कह दूं…* अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर अपनी खोजी शैली के लिए मशहूर छत्तीसगढ़ बस्तर के युवा हस्ताक्षर *विश्वनाथ देवांगन उर्फ मुस्कुराता बस्तर* जिनकी लेखनी अबाध गति से विभिन्न समसामयिक विषयों पर मुखरित होती है,जहां गांव और गरीब की पीड़ा,और जमीनी हकीकत को बयां करती ये पंक्तियां भी कुछ कहती हैं….आइये पढ़ें,,,, *सच कह दूं…*
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