आमचो कोंडागांव…हमारा कोंडागांव…हमर कोंडागांव
भारत देश की उर्वरा भूमि छत्तीसगढ़ की धरती बस्तर का कोंडागांव एक छोटा सा शहर,वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कोंडागांव शहर की जनसंख्या 40921 है,शहर जो अब जिला का मुख्यालय भी है,जिला बनकर नित विकास के नये आयाम गढ़ रहा है,मां नारंगी के तट पर बसा यह खूबसूरत शहर अपने आप में कई कहानियों का संगम है,यहां की भाषा बोली संस्कृति अपने आप अपनी अलग पहचान बनाये हुये है,आज हम बात करेंगे कोंडागांव और उसके धरोंहरों की जिनसे कोंडागांव खास है…उससे पहले हल्बी में मेरी लिखी गीत की कुछ पंक्तियां….
*इहा रे दादा इहा रे दीदी….,*
*इहा रे मीत आरू मोचो संगी…*
*आमचो कोंडागांव कितरो सुंदर..*
*पांय धुआयसे नारंगी…..*
आज हम जानेंगे कोंडागांव की विरासतें और कुछ खास बाते जो कोंडागांव शहर को खास बनाती हैं….
जीवन दायिनी नदी मां नारंगी के तट पर बसा,कोंडागांव के अतीत में प्रचलित है,इसका प्राचीन नाम कोण्डानार था। बताया जाता है कि मरार लोग गोलेड गाड़ी में जा रहे थे, तब कोण्डागांव के वर्तमान गांधी चौक के पास पुराने नारायणपुर रोड से आते हुए कंद की लताओं में गाड़ी फंस गयी। उन्हे मजबूरी में रात को वहीं विश्राम करना पड़ा। बताया जाता है कि उनके प्रमुख को स्वप्न आया। स्वप्न में देवी ने उन्हें यहीं बसने का निर्देष दिया। उन्होंने उस स्थान की भूमि को अत्यंत उपजाऊ देखकर देवी के निर्देशानुसार यहीं बसना उचित समझा। उस समय इसे कान्दानार (कंद की लता आधार पर) प्रचलित किया गया,जो कालान्तर कोण्डानार बन गया। नारंगी नदी के कोंडागांव जोंदरापदर के वर्तमान मार्ग के नीचले भाग नाहरघाट और खड़कघाट के मध्य पुराने रास्ते पर कांदाघाट आज भी है,जो भीरागांव के कांदा सवकार के नाम बताया जाता है,जो भी कोंडानार के प्राचीन कहानी से कहीं ना कहीं संबंद्ध है।
इसी बीच बस्तर रियासत के एक अधिकारी ने हनुमान मंदिर में वरिष्ठ जनों की एक बैठक में इसे कोण्डानार के स्थान पर कोण्डागांव रखना ज्यादा उचित बताया। तब से कोंडागांव प्रचलित हो गया | उस समय का पुराना मार्ग पुराना नारायणपुर मार्ग ही था। जो जोंदरापदर से खेतों के रास्ते कोंडागांव को जाता था जो अब पक्की सड़क हो गई है | अत: मरारों के मुख्य परिवारों की बसाहट उसी मार्ग के दोनों ओर हुई। यही पुराना कोण्डागांव था। सन 1905 में केशकाल घाटी के निर्माण के बाद मुख्य सड़क बनी,जो मसोरा चौक से घुमकर आती है | पुराना सड़क जो मरारपारा (रोजगारी पारा वार्ड) से आज भी गुजरती है,जो गांधी चौक के पास पुराने नारायणपुर मार्ग से मिलती है। नया मार्ग बनने पर उसके दोनों ओर नर्इ बसाहट होने लगी। पुराने मरारपारा (वर्तमान रोजगारी पारा) नए मार्ग के दोनों ओर बसाहट बसा। केशकाल घाटी की सड़क का निर्माण होने के बाद केशकाल का क्षेत्र राठौर परिवार को मालगुजारी में दिया गया। वह परिवार तथा इनसे संबंधित लोग बाद में कोण्डागांव मुख्य मार्ग पर बसे। और कोंडागांव का विस्तार शनै शनै होने लगा |
मुख्य सड़क धमतरी से जगदलपुर को जाती थी। इस प्रकार कोण्डागांव की मुख्य सड़क बस्तर की राजधानी जगदलपुर से जुड़ गयी । 1980 के दशक में इसे राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 घोषित किया गया है। अभी हाल मे 2010 में यही राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 30 घोषित किया गया है। रियासत काल में कोण्डागांव, बडेडोंगर तहसील के अंतर्गत था तथा उसका पुलिस स्टेशन भी बडेडोंगर में था। बाद में तहसील मुख्यालय कोण्डागांव 1943 में आया।
यहां बसने वाली सबसे पुराने मरार,कोष्टा तथा अनुसूचित जाति,जनजाति में गाण्डा, घसिया,हल्बा आदि थे। कोण्डागांव की बसाहट अच्छी होने पर यहां 1930 के आसपास प्राथमिक शाला बनी और कुछ वर्षो बाद एंग्लो वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल की स्थापना हुर्इ। सन 1953 में यहां मैटि्क की परीक्षा केन्द्र भी बन गया।1955 में पूर्वी बंगाल के व्यक्तियों की बसाहट के लिए प्रशासनिक भवन तथा कर्मचारियों के आवास बनना शुरू हुआ। केन्द्रीय पुनर्वास मंत्रालय के अन्तर्गत दण्डाकारण्य प्रोजेक्ट बना जो उड़ीसा से बस्तर के इस क्षेत्र तक विस्तृत था। 1958 में यहां बिजली आई जिसका उदघाटन हाई स्कूल के प्राचार्य ने किया था।
1965 मे ही कोण्डागांव राजस्व अनुविभाग घोषित किया गया।कोण्डागांव रियासत काल में पूर्व में हटिया फिर शामपुर तथा बाद में सोनाबाल परगना के अंतर्गत लिया जाता था। कोण्डागांव का विकास क्रमश: तेजी से हुआ और कस्बे से शहर बना। पहले यह आदिम जाति पंचायत के अंतर्गत था तत्पश्चात 1975 में नगरपालिका परिषद् की स्थापना हुई, नगर में विधाओं में प्रगति आई है जिससे बेलमेटल शिल्प , लौह शिल्प,प्रस्तर शिल्प , मृतिका शिल्प लोक कला चित्र, काष्ठ, बांस, कौड़ी शिल्प और बुनकर शिल्प का यथेष्ट विकास हुआ।बेलमेटल शिल्प से बस्तर को विश्व स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय कोण्डागांव के कलाकारों को जाता है। सांस्कृतिक क्षेत्र में सांस्कृतिक संस्थाएं स्थापित हुई साहित्य संगीत, अभिनय कला के विकास का पथ प्रशस्त हुआ। इसके अतिरिक्त शासन की विभिन्न योजनाओं को भी इसके माध्यम से प्रचार मिला। वर्ष 1984 में शासन द्वारा एक महाविद्यालय की स्थापना की गर्इ।15 अगस्त 2011 को छत्तीसगढ़ के माननीय मुख्यमंत्रीजी ने इसके विकास को देखते हुए इसे राजस्व जिला घोषित किया। निश्चय ही जिला निर्माण से कोण्डागांव जिला छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख ख्यातिनाम जिला के रूप में उदय हो रहा है |
कोंडागांव के खास…..
कोंडागांव बस्तर के खूबसूरत स्थलों में एक है,जहां हम सिर्फ और सिर्फ कोंडागांव की बात कर रहे हैं,वो स्थल जिनसे कोंडागांव का शहर खास हो जाता है…..
1- विभिन्न शिल्प कलायें जो विश्वविख्यात हैं-
कोंडागांव विभिन्न हस्तशिल्पों का केंद्र है,जो बस्तर हस्तशिल्प के रूप में दुनिया भर में प्रसिद्ध है। शहर और आस-पास के अधिकांश शिल्पकारों द्वारा प्रचलित घंटी धातु शिल्प, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध मूर्तिकला कला के लगभग लुप्त हो चुके रूप का प्रशंसित रूप है। कुम्हारपारा में माटीशिल्प स्थल,भेलवांपदर में लोहा,बेलमेटल,काष्ट,माटी शिल्प,भित्तिचित्र,तुंबा शिल्प आदि अनेक प्रकार के शिल्पियों की कर्मस्थली है |
2- कोपाबेड़ा,शिव मंदिर:-
कोपाबेड़ा वार्ड में स्थित शिव मंदिर का विलक्षण मंदिर,कोण्डागांव से 4.5 कि.मी. दूर नांरगी नदी के पास स्थित है। यहां पहुंचने के लिए साल के वृक्षों के मध्य से होकर गुजरना पड़ता है।प्राचीन दण्डाकारण्य का यह क्षेत्र रामयण कालीन बाणासुर का इलाका माना जाता है। सामान्य तौर पर अब पूरे क्षेत्र में शाक्य व शैव है। शैव से संबंधित जितने भी इस अंचल में मंदिर है,उन मंदिरों में स्थापित शिव लिंगों के संदर्भ मे रोचक तथ्य देखने का मिलता है। यह रोचक तथ्य है शिवलिंगों का स्वप्नमिथक से जुड़ा होना । कोपाबेड़ा का मंदिर भी इससे अछुता नहीं है। कहा जाता है कि भक्त जन को स्वप्न में इस शिवलिंग के दर्शन हुए। स्वप्न के आधार पर ही उन्होंनें पास के जंगल में इसे स्थापित किया। यह घटना 1950-51 र्इ. के आसपास की है। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि को यहां मेला लगता है। पूजन की परंपरा यह कि गांव के देवस्थल जो कि नदी के किनारे राजाराव के नाम से जाना जाता है उसकी पूजा सर्वप्रथम की जाती है। कहा जाता है कि इस शिवलिंग के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि जब यह प्राप्त हुआ था, तब यह काफी छोटा था किन्तु वर्तमान में इसका आकार काफी बड़ा हो गया है। सावन के महीने में नागसर्प के जोड़े की यहां मौजूदगी भी आश्चर्य कर देने वाली घटना है ऐसी मान्यता है।
3- प्रभु राम का मंदिर और तालाब-
कोंडागांव के गांधी चौक के पास ही पुराना राम मंदिर है,जिसमें भगवान राम,माता जानकी और लक्ष्मण जी विराजमान हैं,वैसे यह पूरे शहर के हिन्दूधर्मावलंबियों का आस्था का केन्द्र है,तालाब के तट पर अब श्री कृष्ण मंदिर,शिवमंदिर और संत कबीर चबूतरा का भी निर्माण हो गया है | तालाब से शहर की सौंदर्य और भी बढ़ जाता है |
4- खुटडोबरा डोंगरी व खड़कघाट :-
शहर से लगा डोंगरीपारा वार्ड में एक प्राचीन पहाड़ी स्थित है,जिसे खुटडोबरा डोंगरी के नाम से जाना जाता है | बहुत ही खूबसूरत स्थल वर्तमान में गार्डन के रूप में विकसित किया जा रहा है | खूटडोबरा डोंगरी में मंदिर भी स्थापित है जहां लोग पूजा अर्चना के लिये भी जाते हैं | खूटडोबरा डोंगरी की उंचाई से शहरा का नजरा देखते ही बनता है | इस पहाड़ी की उंचाई से शहर खूबसूरत दिखता है | मां नारंगी नदी पर प्राकृतिक सौंदर्य स्थल खड़कघाट है जहां पर नारियल विकास बोर्ड और खड़कघाट के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने के साथ ही शहर में केरल में रहने की अनुभूति होती है | विभिन्न प्रकार के बागान और नारियल के पेड़ सुंदरता की छटा बिखेरते हैं |
5- कोंडागांव का ऐतिहासिक मेला- मंडई :-
पुरातन संस्कृति की याद दिलाता कोंडागांव का मेला अपने आप में खास है,वर्षों से चली आ रही परंपरा अनुसार,आसपास के गांवो से आए ग्रामीणों व उनके देवी-देवताओं के भारी हुजुम में आस्था और संस्कृति के विभिन्न रंग देखने को मिलते हैं,यह नजारा हर किसी के लिये कौतूहल का विषय हो सकता है |
कोण्डागांव का मेला आस्था व परम्परा के अनुठे संगम के साथ जिला मुख्यालय में वार्षिक मेला शुरू हो जाता है। होली त्यौहार से लगभग 10 दिन पहले आयोजित होने वाले इस मेले में हर वर्ष आसपास के गांवो से आए ग्रामीणों व उनके देवी-देवताओं के भारी हुजुम में आस्था और संस्कृति के विभिन्न रंग देखने को मिलते हैं |
इस मेले में उमड़ी भारी भीड़ भीगे चावलों व पुष्प-पंखुडिय़ो की वर्षा के साथ देवी-देवताओं की अगुवानी करती है । यूं तो इलाके में विभिन्न सांस्कृतिक पर्व अपने-अपने निर्धारित समय पर नियमानुसार होते रहते हैं,लेकिन कोंडागांव में सप्ताहभर चलने वाले पारम्परिक मेला मंडई का आगाज विधानानुसार मंगलवार को ही होता है । देव परिक्रमा से पहले परम्परानुसार मेला समिति से जुड़े लोग पारम्परिक गाजे-बाजे के साथ सर्किट हाउस पहुंचते हैं और वहां से राजस्व अधिकारियों को सम्मान के साथ मेला स्थल ले पहुंचाते हैं । जहां उन्हें दूर-दराज से मेले में शामिल होने आए देवी-देवताओं से मिलवाया और सभी देवी-देवताओं के साथ अधिकारी व जनप्रतिनिधियों के मेला परिसर की परिक्रमा के साथ ही सात दिनों तक चलने वाले मेले की शुरूआत कर दी जाती है ।
मेले के पहले दिन को स्थानीय लोग देव मंडई के नाम से जानते हैं। और इस दिन विशेषकर लोग बड़ी संख्या में यहां पहुंचे और देवी-देवताओं की पूजाकर उनसे आर्शीवाद लेते हैं। सुरक्षा और परंपरा के लिहाज से इस मेले में पुलिस के साथ ही कोटवारों को विशेष तौर पर तैनात किया गया जाता है। जो विभिन्न जगहों पर अपना मोर्चा संभाले हुए होते हैं। मेले परिसर में जहां नगर पालिका ने अपनी तंबू ताने रखता है तो वहीं पुलिस विभाग भी सुरक्षा के लिहाज से पुलिस सहायता केंद्र स्थापित कर रखता है।
वैसे मंडई साप्ताहिक बाजार परिसर में मेला व विकासनगर स्टेडियम में मीनाबाजार के लिए जगह आरक्षित किया जाता हैं। बस स्टैंड से लेकर बाजार परिसर तक छोटे-बड़े दुकानदार अपनी दुकाने सजा रखते हैं। परम्परानुसार हर वर्ष होने वाले लोकनृत्यों की प्रस्तुति बुधवार की शाम एनसीसी मैदान में होती है। इसकी पूरी तैयारी प्रशासन ने करता है |
मेला मंनोरंजन ही नहीं बल्कि विधान है,पारम्परिक मेले-मड़ई अपनी विशेषता के कारण एक अलग पहचान रखते हैं। क्योंकि मड़ई यहां मात्र मनोरंजन का आयोजन नहीं है बल्कि इसके माध्यम से क्षेत्र के निवासी अपने आराध्य देवी-देवताओं का पूरे विधि-विधान, पूजा-अर्चना के साथ अपनी धार्मिक सद्भावना प्रदर्शित करते है। हर वर्ष कोण्डागांव के वार्षिक मेले में आस पास के ग्रामों जैसे पलारी, भीरागांव, बनजुगानी, भेलवापदर, फरसगांव, कोपाबेड़ा, डोंगरीपारा के ग्रामीण देवी देवता, माटीपुजारी, गांयता सम्मिलित होते हैं ।
जहां आराध्य मां दन्तेश्वरी के अलावा विभिन्न समुदायों के देवी देवताओं जैसे सियान देव, चौरासी देव, बुढाराव, जरही मावली, गपा-गोसीन, देश मात्रा देवी, सेदंरी माता, दुलारदई, कुरलादई, परदेसीन, रेवागढ़ी, परमेश्वरी, राजाराव, झूलना राव, आंगा, कलार बुढ़ा, हिंगलाजीन माता, बाघा बसीन देवताओ की पूरे धार्मिक विधि-विधान ढ़ोल नगाड़े, माहरी, तोड़ी, मांदर व शंख ध्वनि के साथ मुख्य पूजा स्थल मावली माता मंदिर के सभी पुजारीगण फूंलो से सुसज्जित मंडप तैयार कर एक अन्य पुरातन मंदिर की इष्ट देवी बुढ़ी माता के मंदिर में एकत्रित होते हैं और माता की पालकी को मुख्य मेला स्थल लाया जाता है। जहां परम्परानुसार मेले के रिति-रिवाज व विधान एक-एककर होते रहते हैं | गौरवशाली परंपरा को संजाये रखे कोंडागांव मंडई अद्भुत है,यहां देश विदेश से सैलानी मेला का लुफ्त उठाने पहुंचते हैं |
आज हम शहर के कुछ खास को आप तक पहुंचाने का प्रयास किया है,जल्द की साहित्यिक और सांस्कृतिक गाथाओं के साथ हाजिर होंगे और इस खूबसूरत शहर कोंडागांव के बारे में आपके सामने पेश करेंगे | चलते चलते मेरी कुछ और पंक्तियां…..
*जोनी उजर ने सुंदर चमके,*
*खुटडोबरा चो डोंगरी..*
*शिल्पी कला के दुनिया जानली,*
*बलला होली शिल्पी नंगरी…*
*कोंडागांव मंडई दखुक इया,*
*बोहून आंगा,गुटाल,डंगईलाट,*
*खोचून नाचसत खोसा ने कंगी….*
*आमचो कोंडागांव,कितरो सुंदर*
*पांय धुआयसे नारंगी……*
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