केंद्र सरकार ने गणतंत्र दिवस से एक रोज पहले वर्ष 2020 के लिए पद्म पुरस्कारों का ऐलान किया। इस वर्ष 7 हस्तियों को पद्म विभूषण, 16 शख्सियतों को पद्म भूषण और 118 लोगों को पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। इस लंबी फेहरिस्त में कुछ ऐसे भी नाम हैं, जो चर्चा में नहीं रहे। उनमें से एक नाम कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिला के फल विक्रेता हरेकाला हजाब्बा (Harekala Hajabba) का है। 68 वर्षीय हरेकाला ने फल की अपनी छोटी-सी दुकान से हुई आमदनी से पहले अपने गांव के बच्चों के लिए प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल बनवाया और फिलहाल एक विश्वविद्यालय बनवाने की तैयारी में हैं।
हजाब्बा पढ़े-लिखे नहीं हैं। यहां तक कि वो कभी स्कूल नहीं गए। वो बताते हैं, ‘एक दिन विदेशी कपल उनसे संतरे खरीदना चाहता था। उन्होंने कीमत भी पूछी। लेकिन मैं समझ नहीं सका। उन्होंने कहा कि यह मेरी बदकिस्मती थी कि मैं स्थानीय भाषा के अलावा कोई दूसरी भाषा नहीं बोल सकता। वह कपल चला गया। मुझे बेहद बुरा लगा। इसके बाद मुझे यह ख्याल आया कि गांव में एक प्राइमरी स्कूल होना चाहिए ताकि हमारे गांव के बच्चों को कभी उस स्थिति से गुजरना ना पड़े जिससे मैं गुजरा हूं।’
हजाब्बा ने गांववालों को समझाया और उनकी मदद से स्थानीय मस्जिद में एक स्कूल शुरू किया। इसके अलावा वो स्कूल की साफ-सफाई और बच्चों के लिए पीने का पानी भी उबालते। साथ ही, छुट्टियों के दौरान वह गांव से 25 किलोमीटर दूर दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत कार्यालय जाते और बार-बार अधिकारियों से शैक्षणिक सुविधाओं को औपचारिक रूप देने की विनती करते। हजाब्बा की मेहनत रंग लाई। जिला प्रशासन ने साल 2008 में दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत के अंतर्गत नयापुडु गांव में 14वां माध्यमिक स्कूल बनवाया।
2015 में भेजा पद्मश्री के लिए नाम
नया स्कूल खुलने के बाद भी 68 वर्षीय हजाब्बा सुबह जल्दी उठते। रोजाना परिसर की सफाई करते और छात्रों के लिए पीने का पानी उबालते। साथ ही, यह सुनिश्चित करते हैं कि छात्रों को किसी चीज की दिक्कत ना हो। उन्हें स्कूल परिसर को अपने घर जैसा ही समझा। साल 2014 से डिप्टी कमिश्नर एबी इब्राहिम ने यह विचार रखा था कि हरेकाला हजाब्बा पद्मश्री सम्मान के काबिल हैं। उन्होंने बताया, ‘साल 2015 में भी उपायुक्त ने उनसे कहा था कि उन्होंने मेरा नाम केंद्र सरकार को भेज दिया है। लेकिन उसके बाद मुझे नहीं पता क्या हुआ।’
बेहद खुश हैं हजाब्बा
हजाब्बा गांव में फिलहाल एक सेलिब्रेटी से कम नहीं है। मंगलौर यूनिवर्सिटी के अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम में उनकी जिंदगी की कहानी पढ़ाई जाती है। ताकि स्टूडेंट्स उनसे प्रेरणा ले सकें। उन्हें कई स्थानीय अवॉर्ड्स मिल चुके हैं। हालांकि, तीन बच्चों के पिता हजाब्बा ने उस वक्त बड़ी हैरत हुई, जब शनिवार को उनका नाम पद्श्री सम्मान के लिए चुना गया। वो बताते हैं, ‘मुझे गृह मंत्रालय हिंदी में बात की। मुझे समझ नहीं आया। लेकिन बाद में दक्षिण कन्नड़ के उपायुक्त कार्यलय के एक शख्स ने मुझे बताया कि मैं पद्मश्री अवॉर्ड के लिए चुना गया हूं। मुझे यकीन नहीं हुआ। मैंने ऐसा सपने भी नहीं सोचा था। लेकिन मैं खुश हूं।’
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