गोपी साहू : रेशम के काम से तो लगभग सभी महिलाएं वाकिफ होती होगी लेकिन क्या आपको पता है कि सबसे नायाब रेशम कमल के तने से निकलने वाले रेशों से तैयार होता है। कमल के रेशों से रेशम बनाने की यह दुर्लभ प्रक्रिया दुनिया के सिर्फ तीन देशों में अपनाई जाती थी, जिसमें वियतनाम, कंबोडिया और म्यांमार का नाम शामिल है। हालांकि अब भारत भी कमल के रेशों से रेशम बनाने की प्रक्रिया में शामिल हो चुका है। इस दुर्लभ प्रक्रिया को भारत में पहचान दिलाने और करोड़ों का कारोबार स्थापित करने का श्रेय एक महिला को ही जाता है।
मणिपुर में कमल के रेशे बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता है, जिसे बिजयशांति टोंगब्राम ने शुरू किया। आइए जानते हैं बिजय शांति टोंगब्राम के बारे में।बिजय शांति मणिपुर की रहने वाली है। वह भारत की पहली महिला हैं, जिन्होंने कमल के तने से रेशे निकालने की शुरुआत की। बिजय शांति मणिपुर के थंगा टोंगबैंक गांव में लोकतल झील के पास रहती हैं। यह राज्य की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील होने के साथ ही कमल की खेती के लिए मशहूर है। परिवार में तीन भाई बहनों में वह सबसे बड़ी हैं और बॉटनी विषय की डिग्री हासिल की है।
झील के पास रहने वाले अधिकतर लोगों की आमदनी मछली पकड़ने और कमल की खेती से होती है। हालांकि साल 2014 में बिजय शांति को कमल के तने से रेशे निकालने का विचार आया। अपने विचार को सच करने के लिए उन्होंने कई पत्रिकाओं और वीडियो के जरिए इस प्रक्रिया को सीखने की कोशिश की।
खुद को इस कला में प्रशिक्षित करते हुए साल 2018 में बिजय शांति ने ‘सेनजिंग सना थंबल’ नाम से अपनी कंपनी की शुरुआत की। इस कंपनी के जरिए स्थानीय महिलाओं को रोजगार का अवसर मिला, साथ ही कपड़े बुनने के क्षेत्र में नए रास्ते खुले। इस धागे से स्कार्फ, मफलर और टाई बनाए जाते हैं ,जो मुंबई और कोलकाता सहित कई बड़े शहरों में भेजे जाते हैं।