जब पूरा देश अपने घरों में आराम करता है तब ये जवान भारतीय सीमा,पहाड़ों-पर्वतो,बीहड़ों,घने जंगलों,बर्फीली वादियों में रहकर शत्रुओं का सामना करते हैं… इनका चौकसी ही हमारी सुरक्षा का आधार है…पढ़िए सशस्त्र सीमा बल में हेड कांस्टेबल जसवंत साहू की कहानी

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कमलेश यादव:-मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेक,मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाए वीर अनेक..देशभक्ति की भावना लिए जब एक युवा राष्ट्रसेवा को समर्पित सैनिक बनने के लिए पहला कदम रखता है उसी क्षण से शुरु हो जाती है एक तपस्या देश के लिए।आज की कहानी एक छोटे से गांव में रहने वाले युवक की है जिसे बचपन से ही देश के लिए काम करने की ललक थी।उसके गांव में अधिकांश परिवार के सदस्य कोई पुलिस में है तो कोई सैनिक।आपको लेकर चलते है छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव जिले के सीताक़सा गांव जहा से जसवंत साहू पिता बाबूलाल साहू की सफर शुरु होती है।वर्तमान में सशस्त्र सीमा बल में हेड कांस्टेबल के पद पर भारत नेपाल सीमा पर तैनात है।

सत्यदर्शन लाइव से भारत नेपाल बॉर्डर पर जसवंत साहू बताते है कि,मुझे वह दिन अच्छी तरह से याद है जब प्रशिक्षण पूरा कर प्रशिक्षु से एक कर्तव्यपरायण सैनिक की भूमिका ग्रहण किया था।राष्ट्रीय ध्वज के सामने ईश्वर को साक्षी मानकर देश के लिए स्वयं को समर्पित किया।बचपन मे पिताजी बाबूलाल साहू जो कि छत्तीसगढ़ पुलिस विभाग में है अनुशासित जीवन जीने का पाठ पढ़ाया है।

विषम परिस्थितियों में भारत के विभिन्न जगहों पर जसवंत साहू का पोस्टिंग हुआ।ऐसे इलाके जहां पहुचना कठिन होता है तीसरी आंख बनकर मुस्तैदी के साथ तैनात रहे है।सेवा सुरक्षा और बंधुत्व के ध्येय वाक्य से अपने चुनौतीपूर्ण दायित्व को कार्यकुशलता से निर्वहन कर रहे हैं।

माओवादी क्षेत्र हो या श्रीनगर में पत्थर बाजो के बीच उन्होंने अपनी ड्यूटी बखूबी निभाई है।बात तब और महत्वपूर्ण हो जाती है जब आपको स्थानीय लोगो के दिलो को भी जीतना हो।वे बताते है कि कैसे सभी को देश प्रेम से जोड़ने के लिए विभिन्न रचनात्मक कार्यो से प्रेरित करते है। ताकि आपसी बंधुत्व की भावना सभी मे बनी रहे।

जब भी छुट्टियों में गांव आते है युवाओ को मार्गदर्शन देते है ताकि उन्होंने जो संघर्ष किया है उसकी पुनरावृत्ति किसी के साथ न हो।कैरियर की शुरुआती दिनों में 2004 से 2006 के बीच 18 बार विभिन्न भर्तियों में असफल हुए थे।लेकिन हार न मानने की जिद ने अंततः सशस्त्र सीमा सुरक्षा बल में सफर खत्म हुई।

राष्ट्रभक्ति और धमनियों में देश के लिए मर मिटने वाला रक्त बहता है तब एक कम्प्लीट सैनिक का जन्म होता है।जिसके शब्दकोष में असम्भव नाम का कोई शब्द ही नही रहता ।बहुत खुशनसीब होती है वह माँ जिसने देश के लिए अपने जिगर के टुकड़े को अपनी दूसरी माँ (मातृभूमि)की सेवा के लिए लगा देती है।सत्यदर्शन लाइव ऐसे जांबाज हेड कांस्टेबल जसवंत साहू को सलाम करता है

 

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