एक ऐसी पत्नी जिसे सरकार ने मृत घोषित कर दिया, लेकिन ये विश्वास ही था कि पति ने उसे तब तक ढूंढना नहीं छोड़ा जब तक वह मिल नहीं गई…भाव और प्रेम से बड़ी कोई ताकत नहीं है… आइए,वक्त के पन्ने को पलटते हैं

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गोपी:भागदौड़ भरी जीवन मे मनुष्य अकेला स हो गया है अधिकांश रिश्तों की केंद्र बिंदु केवल भौतिक सुख सुविधाओं के इर्द गिर्द घूम रही है।प्यार विश्वास शब्द आधुनिकता की चकाचौंध में लुप्त होते जा रहे है।लेकिन पूरी दुनिया जैसे गुरुत्वाकर्षण बल से बंधी हुई है ठीक वैसी प्यार की बंधन से कही न कही किसी भी रूप में व्यक्ति एक दूसरे से बंधा हुआ है।चेहरे बदल जाते है लेकिन प्यार की कहानियां नही बदलती।आज की कहानी पढ़कर आपको शुकुन महसूस होगा कैसे प्यार के ताकत और विश्वास से बुझी हुई शमां रोशन हो सकती है।

साल 2013 में आई उत्तराखंड त्रासदी को शायद ही कोई भूल सकता है. आज भी उस तबाही के मंजर को याद करके अपने आप दर्द का अहसास होने लगता है. कई परिवार बिछड़े, सैकड़ों लोग मारे गए और पानी के सैलाब ने हज़ारों परिवार उजाड़ दिए.

इस त्रासदी की वजह से एक पति-पत्नी का जोड़ा कुछ ऐसा बिछड़ा कि उसे मिलने में सालभर लग गए. एक पति का अपनी पत्नी के लिए बिलख-बिलखकर रोना किसी का भी दिल तोड़ सकता है. एक ऐसी पत्नी जिसे सरकार ने मृत घोषित कर दिया, लेकिन ये विश्वास ही था कि पति ने उसे तब तक ढूंढना नहीं छोड़ा जब तक वह मिल नहीं गई.

ये कहानी राजस्थान के पति-पत्नी विजेंद्र और लीला की है, जिनकी कहानी को जानकर लगता है कि भाव और प्रेम से बड़ी कोई ताकत नहीं है. आइए, वक्त के पन्ने को पलटते हैं और साल 2013 में चलते हैं-

बात है 12 जून, 2013 की है. बाबा केदारनाथ के पट खुले थे और लाखों श्रधालुओं की तरह विजेंद्र और लीला भी भगवान के दर्शन के लिए आए थे. यह जोड़ा राजस्थान के अलवर जिले के छोटे से गांव से आया था. लेकिन, किसे क्या पता था कि इस समय जल सैलाब आएगा और इस तरह बेरहमी से निगल जाएगा.

इस त्रासदी का शिकार यह जोड़ा भी हुआ और लीला बाढ़ के पानी में बह गई. विजेंद्र की जान जैसे-तैसे बची लेकिन लीला के बिछड़ जाने की वजह से मानो उसका संसार उजड़ गया. ऐसा होना जाहिर था, लिहाजा विजेंद्र ने लीला को ढूंढना शुरू किया. लेकिन किसे क्या पता था कि ये खोज इतनी बड़ी हो जाएगी.

मृत घोषित करने के बावज़ूद जारी रखी तलाश
पहले तो अधिकारियों ने लीला के लापता होने की बात कही और कुछ समय बाद ही लीला को मृत घोषित कर दिया. यहीं नहीं सरकार ने लीला के नाम पर विजेंद्र को 9 लाख का मुआवजा भी दिया, लेकिन विजेंद्र ने इसे लेने से माना कर दिया. उनका दिल ये मानने की गवाही नहीं दे रहा था कि उनकी पत्नी मर चुकी है.

इसीलिए उन्होंने अपनी पत्नी की तलाश जारी रखी और कभी भी उनके न मिलने की उम्मीद नहीं खोई. उनके पांच बच्चे थे और उनके मन में हमेशा ये रहता कि बच्चे उनका और अपनी मां का इंतजार कर रहे होंगे. ऐसे में अपनी पत्नी की यादें और अपने बच्चों का मुंह देखकर वह अपनी तलाश को लगाम नहीं लगा पा रहे थे. उन्होंने इस तलाश के अपनी खानदानी ज़मीन भी बेच दी थी.

आखिरकार डेढ़ साल बाद मिल गई पत्नी
विजेंद्र हर संभव मोहल्ले और गलियों में अपनी पत्नी की तलाश कर रहे थे. अपनी पत्नी की तलाश में पागल हुए इस पति को देखकर हर किसी का दिल पसीज जाता था. उसकी रोता देख हर किसी के दिल में आंसू आ जाते थे. यही वजह थी कि लोग विजेंद्र को खाना, रहने की जगह और सबसे अहम सूचना भी दिया करते थे.जिस दिन से उनकी पत्नी खोई थी, वह तबसे अपने घर नहीं लौटे थे. वह लोगों के पास एक फोटो लेकर जाते और अपनी पत्नी की खोज खबर होने की बात कहा करते.

एक कहावत है कि ‘भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं.’ इस कहानी पर ये कहावत क्या खूब बैठी है. क्योंकि 19 महीने की तलाश के बाद एक दिन अचानक विजेंद्र को पता चलता है कि उनकी पत्नी लीला जैसी दिखने वाली एक औरत को देखा गया है.

लीला अपनी याद्दाशत खो चुकी थीं
ऐसा लगा मानो कि भगवान भी पिघल गया क्योंकि जब जनवरी 2015 में गंगोली गांव के पास उस महिला से मिलने पहुंचे तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. 19 महीने बाद मिली यह महिला उनकी पत्नी लीला थी. हालांकि, वह अपनी मेमोरी खो चुकी थी और ठीक से कुछ बोल भी नहीं पा रही थी. वह विजेंद्र को भी नहीं पहचान पाई.

विजेंद्र अपनी पत्नी को वापस अलवर लेकर गए और अब धीरे-धीरे वह ठीक हो रही हैं. ये लव-स्टोरी दिल को छू लेने वाली है. विजेंद्र को बाहरी लोगों समेत उसके उसके घरवाले ने भी वापस घर लौटने की बात कही, लेकिन वह अडिग थे और कहीं न कहीं उम्मीद लगाए हुए बैठे थे.”

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