धरती पर घटती हरियाली…पौधरोपण करिए,दूसरों को भी प्रेरित करके पुण्य कमाएं…

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धरती पर घटती हरियाली के प्रतिकूल प्रभाव से न सिर्फ अब आप वाकिफ हैं, बल्कि इसे महसूस भी कर रहे हैं। घटते पेड़-पौधों की वजह से ही आज हम सबको घरों में एयर प्यूरीफायर लगाने को विवश होना पड़ रहा है।कोरोना काल से पहले भी वायु प्रदूषण के चलते मास्क से मुंह ढकने को अभिशप्त हो चुके थे। जलवायु चक्र का बिगड़ना आम बात नहीं हैं। ऐसे तमाम प्रतिकूल हालातों का एक ही इलाज है, पौधरोपण।

कहां रोपें
वैसे तो सार्वजनिक स्थान पौधरोपण के लिए तय होते हैं, लेकिन यदि कोई निजी स्तर पर पौधरोपण करना चाहता है तो किसी भी भवन के दक्षिण या दक्षिण पश्चिम छोर पर ये काम श्रेयष्कर होता है। गर्मी के दिनों में जब सूरज पूरी धरती को झुलसाने पर अमादा होता है और पवन देव भी सुस्ताने लगते हैं तो इन पेड़ों की छांव सुकून देती है। हालांकि सभी पेड़ों को घर के पीछे रोपना ही उचित होता है।

कब रोपें 
पौधरोपण का समय कई कारकों पर निर्भर करता है। इसमें पौधे की प्रजाति, भौगोलिक स्थिति, सिंचाई की व्यवस्था और क्षेत्र में बारिश की स्थिति आदि कारक अहम भूमिका निभाते हैं। पतझड़ वाले पौधे के लिए ठंड का मौसम सबसे मुफीद होता है। इस मौसम में इसके निष्क्रिय रहने से नुकसान की सबसे कम संभावना रहती है।  हमेशा हरे-भरे रहने वाले और अर्ध पतझड़ खूबियों वाले पौधों के लिए बारिश का समय सबसे उपयुक्त होता है।

जंगल और जलवायु 
तमाम अहम प्रत्यक्ष और परोक्ष लाभ के अलावा पौधे कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित करके हानिकारक कार्बन को अपने अंदर समाहित कर लेते हैं। एक आकलन के मुताबिक दुनिया के कुल जंगलों में 283 गीगाटन कार्बन जमा है। यह वायुमंडल में मौजूद कार्बन के मुकाबले 50 फीसद अधिक है। हालांकि जंगलों के जैवभार में जमा कार्बन 1.1 गीगा टन प्रति साल की दर से कम हो रहा है।

मानसून के समय: 
ज्यादातर क्षेत्रों में पौधरोपण मानसून के समय किया जाता है। अधिकांश प्रजातियां इस समय अच्छे से पनपती हैं। अच्छी बारिश से जब जमीन अंदर तक नम हो जाती है तो पौधा रोपना ठीक रहता है।

बसंत ऋतु के दौरान:
जनवरी और फरवरी के दौरान पौधे के विकास में सहायक होने वाले तापमान समेत कई कारक मौजूद होते हैं। इसलिए कोमल पौधों की रोपाई के लिए यह बढ़िया समय होता है।

मिटती हरियाली 
दुनिया की बढ़ती आबादी की जरूरतें पूरी करने के लिए वनों को काटकर जमीन का खेती के लिए इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। इसके साथ ही औद्योगिक जरूरतें, गरीबी, जमीन रहित लोग और उपभोक्ता मांग जैसे कई कारक जंगल को तेजी से खत्म कर रहे हैं। खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर 3.5 से 7 अरब पेड़ काटे जाते हैं। इसमें सबसे ज्यादा 37 फीसद हिस्सेदारी इमारती लकड़ी की होती है।

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