सफेद धोती-कुर्ता पहने योग गुरु बाबा शिवानंद मंच पर पहुंचने से पहले दो बार नतमस्तक हुए… राष्ट्रपति ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार और प्रशस्तिपत्र से सम्मानित किया

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125 वर्षीय योग गुरु स्वामी शिवानंद जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों पद्मश्री सम्मान लेने नंगे पैरों राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में पहुंचे तो वहां मौजूद सभी लोगों ने अपने स्थान पर खड़े होकर तालियां बजाकर उनका सम्मान किया।

सोमवार को सम्मान प्राप्त करने से पहले शिवानंद ने जब राष्ट्रपति कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नमस्कार किया तो एक बार फिर सभी ने उनके सम्मान में तालियां बजाईं। उनके नमस्कार के जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने तुरंत हाथ जोड़ा और नतमस्तक हुए।

योग गुरु को सम्मानित करने के दौरान राष्ट्रपति कोविंद उनसे बातचीत करते नजर आए और जब दोनों ने तस्वीरें खिंचवाईं तो दरबार हॉल फिर से तालियों से गूंज उठा। स्वामी शिवानंद ने अपना पूरा जीवन मानव मात्र के कल्याण में समर्पित किया है।”बाबा शिवानंद ने जीवन में 125 बसंत देखे है और आज भी पुरी तरह से फिट हैं. बाबा सुबह 3-4 बजे ही बिस्तर छोड़ देते हैं. फिर रोज की तरह स्नान करके ध्यान और एक घंटा योगा करते हैंय खाने में सादा खाना यानि उबला आलू, सादी दाल का सेवन करते हैं. बाबा की माने तो 6 साल की उम्र से ही वो इस तरह की दिनचर्या का पालन कर रहे हैं.बाबा शिवानंद को तीखा और ऑयली खाना पसंद नहीं है. बाबा शिवानंद को स्पाइसी और आयली खाने से भी परहेज रहा है.उनके मुताबिक, ईश्वर की कृपा से उनको कोई डिजायर और तनाव नहीं है, क्योंकि इच्छा ही सभी दिक्कत की वजह होती है.

शिवानंद की माने तो वे कभी स्कूल नहीं गए, जो कुछ सीखा वे अपने गुरूजी से ही और इंग्लिश भी काफी अच्छी बोल लेते हैं. शिवानंद की अब यही इच्छा है कि पीड़ितों की मदद करें. बाबा शिवानंद की संतोषमय और स्वस्थ जीवन के पीछे एक दुख भरी कहानी है.

बाबा शिवानंद का जन्म 8 अगस्त 1896 को श्रीहट्ट जिला के हबिगंज महकुमा, ग्राम हरिपुर के थाना क्षेत्र बाहुबल में एक भीखारी ब्राह्मण गोस्वामी परिवार में हुआ था. मौजूदा समय में ये जगह बांग्लादेश में स्थित है. बाबा ने बताया कि उनके मां-बाप भिखारी थे और दरवाजे-दरवाजे भीख मांगकर अपनी जीविका चलाते थे.

4 साल की उम्र में उनके माता-पिता ने उनकी बेहतरी के लिए उन्हे नवद्वीप निवासी बाबा श्री ओंकारनंद गोस्वामी के हाथ समर्पित कर दिया. जब शिवानंद 6 साल के थे तो उनके माता-पिता और बहन का भूख के चलते निधन हो गया, जिसके बाद उन्होंने अपने गुरूजी के सानिध्य में आध्यात्म की शिक्षा लेना शुरू किया.”

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