125 वर्षीय योग गुरु स्वामी शिवानंद जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों पद्मश्री सम्मान लेने नंगे पैरों राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में पहुंचे तो वहां मौजूद सभी लोगों ने अपने स्थान पर खड़े होकर तालियां बजाकर उनका सम्मान किया।
President Kovind presents Padma Shri to Swami Sivananda for Yoga. Dedicating his life for human welfare, he has been serving leprosy-affected people at Puri for the past 50 years. Born in 1896, his healthy & long life has drawn attention of national & international organisations. pic.twitter.com/TfJhGMHCOV
— President of India (@rashtrapatibhvn) March 21, 2022
सोमवार को सम्मान प्राप्त करने से पहले शिवानंद ने जब राष्ट्रपति कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नमस्कार किया तो एक बार फिर सभी ने उनके सम्मान में तालियां बजाईं। उनके नमस्कार के जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने तुरंत हाथ जोड़ा और नतमस्तक हुए।
योग गुरु को सम्मानित करने के दौरान राष्ट्रपति कोविंद उनसे बातचीत करते नजर आए और जब दोनों ने तस्वीरें खिंचवाईं तो दरबार हॉल फिर से तालियों से गूंज उठा। स्वामी शिवानंद ने अपना पूरा जीवन मानव मात्र के कल्याण में समर्पित किया है।”बाबा शिवानंद ने जीवन में 125 बसंत देखे है और आज भी पुरी तरह से फिट हैं. बाबा सुबह 3-4 बजे ही बिस्तर छोड़ देते हैं. फिर रोज की तरह स्नान करके ध्यान और एक घंटा योगा करते हैंय खाने में सादा खाना यानि उबला आलू, सादी दाल का सेवन करते हैं. बाबा की माने तो 6 साल की उम्र से ही वो इस तरह की दिनचर्या का पालन कर रहे हैं.बाबा शिवानंद को तीखा और ऑयली खाना पसंद नहीं है. बाबा शिवानंद को स्पाइसी और आयली खाने से भी परहेज रहा है.उनके मुताबिक, ईश्वर की कृपा से उनको कोई डिजायर और तनाव नहीं है, क्योंकि इच्छा ही सभी दिक्कत की वजह होती है.
शिवानंद की माने तो वे कभी स्कूल नहीं गए, जो कुछ सीखा वे अपने गुरूजी से ही और इंग्लिश भी काफी अच्छी बोल लेते हैं. शिवानंद की अब यही इच्छा है कि पीड़ितों की मदद करें. बाबा शिवानंद की संतोषमय और स्वस्थ जीवन के पीछे एक दुख भरी कहानी है.
बाबा शिवानंद का जन्म 8 अगस्त 1896 को श्रीहट्ट जिला के हबिगंज महकुमा, ग्राम हरिपुर के थाना क्षेत्र बाहुबल में एक भीखारी ब्राह्मण गोस्वामी परिवार में हुआ था. मौजूदा समय में ये जगह बांग्लादेश में स्थित है. बाबा ने बताया कि उनके मां-बाप भिखारी थे और दरवाजे-दरवाजे भीख मांगकर अपनी जीविका चलाते थे.
4 साल की उम्र में उनके माता-पिता ने उनकी बेहतरी के लिए उन्हे नवद्वीप निवासी बाबा श्री ओंकारनंद गोस्वामी के हाथ समर्पित कर दिया. जब शिवानंद 6 साल के थे तो उनके माता-पिता और बहन का भूख के चलते निधन हो गया, जिसके बाद उन्होंने अपने गुरूजी के सानिध्य में आध्यात्म की शिक्षा लेना शुरू किया.”