सुमर्ती आज खुद चलने के लिए भले ही व्हीलचेयर पर निर्भर हैं लेकिन अपने बिज़नेस के ज़रिए वह दूसरों को आत्मनिर्भर बना रही हैं

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सिर्फ अपने जज़्बे के दम पर इंसान बड़ी से बड़ी मुश्किलें दूर कर सकता है फिर चाहे वह शारीरिक मज़बूरी ही क्यों न हो। इसका सटीक उदाहरण है कश्मीर की वादियों में जन्मी सुमर्ती। सुमर्ती आज खुद चलने के लिए भले ही व्हीलचेयर पर निर्भर हैं लेकिन अपने बिज़नेस के ज़रिए वह दूसरों को आत्मनिर्भर बना रही हैं।

मगर उनके जीवन में एक समय ऐसा भी था जब लोगों ने मान लिया था कि उन्हें पूरी उम्र किसी पर निर्भर रहना पड़ेगा। लोगों की इन सारी बातों को दरकिनार करके उन्होंने अपनी एक अगल ही पहचान बनाई है।

दरअसल, सुमर्ती बचपन में बिल्कुल ठीक थी और एक आम बच्चे की तरह वह स्कूल भी जाती थीं। लेकिन 10 साल की उम्र में उन्हें तेज़ बुखार आया था। पहले तो उनके परिवार ने इसे आम फ्लू ही समझा लेकिन फिर डॉक्टर के पास जाने पर पता चला कि उन्हें पोलियो हो गया है और अब वह कभी चल नहीं सकती।

इस घटना के बाद तो मानों उनका जीवन ही बदल गया लेकिन इरादों की पक्की सुमर्ती ने टूटने या रोने के बजाय जज़्बा दिखाया। उन्होंने व्हीलचेयर पर बैठकर ही पढ़ना और सिलाई-बुनाई जैसी कला सीखी।

पढ़ाई के बाद आत्मनिर्भर बनाने के लिए सुमर्ती ने अपने सिलाई के हुनर को काम बनाया। साल 2018 तक एक उन्होंने सफल बुटीक बिज़नेस भी चलाया।लेकिन लम्बे समय तक इस काम से उनकी आँखों की रोशनी पर असर पड़ने लगा। लेकिन सुमर्ती बैठे रहनेवालों में से थोड़ी थीं जब उनका बुटीक बिज़नेस बंद हुआ तो उन्होंने मसाला बिज़नेस शुरू करने का फैसला किया।

‘सदफ़ मसाला’ नाम से आज उनका बिज़नेस 10 लोगों की रोजगार दे रहा है जिसमें से तीन दिव्यांगजन भी शामिल हैं। इतना ही नहीं वह निरंतर अपनी मेहनत से प्रयास कर रही हैं कि कैसे अपने इस बिज़नेस को सफल बनाए और ज्यादा से ज्यादा दिव्यांगजनों को रोजगार दे सके। सच, अपनी मेहनत से अपनी काबिलियत को साबित करने वाली सुमर्ती उन सभी के लिए प्रेरणा है जो छोटी-छोटी मुश्किलों से डर कर हार मान लेते है।

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