हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी…गृहिणियों को बेरोजगार नहीं कहा जा सकता…वह दिन-रात जो काम करती हैं उसका भी आर्थिक मूल्य है

246

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक महिला की मौत पर मुआवजे की मांग के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि गृहिणियों को बेरोजगार नहीं कहा जा सकता। वह दिन-रात जो काम करती हैं उसका भी आर्थिक मूल्य है।

15 साल पुराने मामले में कोर्ट ने की टिप्पणी
कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायाधीश अजय कुमार गुप्ता ने 15 साल पुराने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि परिवार में गृहिणियों का बड़ा योगदान है। वे बिना कोई छुट्टी लिए 365 दिन परिवार का सारा काम करती हैं। यदि वही कार्य कोई अन्य व्यक्ति करता है तो उसके लिए कीमत चुकानी पड़ती है। इसलिए उनके काम का वित्तीय मूल्य भी है। इसीलिए गृहिणियों को बेरोजगार नहीं कहा जा सकता। उन्हें कमाऊ के रूप में भी देखा जाना चाहिए। न्यायाधीश ने एक गृहिणी की मौत पर करीब साढ़े छह लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया।

क्या है पूरा मामला?
दरअसल, अप्रैल 2008 में बर्धमान के खीरग्राम में एक सडक़ दुर्घटना में एक महिला की मृत्यु हो गई थी। इस घटना को लेकर उसके परिवार ने बर्धमान मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल में मामला दायर किया। उन्होंने मुआवजे के तौर पर छह लाख रुपये की मांग की, लेकिन जिस कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था वह इस मांग को स्वीकार नहीं करना चाहती थी। कंपनी ने परिवार को मुआवजे के तौर पर एक लाख 89 हजार 500 रुपये दिए।

गृहिणी के परिवार ने हाई कोर्ट में मामला दायर किया। गृहिणी के परिवार की ओर से वकील ने 2008 से औसत आयु तक गृहिणी की संभावित कमाई की गणना करके मुआवजे की मांग की। लेकिन कंपनी की ओर से कहा गया है कि मृतका की कोई आय नहीं थी, इसलिए संभावित कमाई से इतने पैसे की मांग कैसे की जा सकती है।

कोर्ट ने कंपनी की दलील को खारिज करते हुए मृत गृहिणी के परिवार को छह लाख 41 हजार 200 रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि यह राशि गृहिणी के संभावित मासिक वेतन 3000 रुपये पर ब्याज दर की गणना करके निर्धारित की गई है। हालाकि, चूकि एक लाख 89 हजार 500 रुपये का मुआवजा पहले ही दिया जा चुका है, शेष चार लाख 51 हजार 700 रुपये कंपनी को देना होगा।

 

Live Cricket Live Share Market

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here