हरेली उत्सव कविता विशेष…प्रकृति से उतना ही माँगते हैं, जितने की हमें जरूरत है…और प्रकृति भी…हजार दिक्कतों के बाद भी,हमारे लिए हमेशा कुछ न कुछ बचाकर रखती है…पढ़िए कवि चम्पेश्वर गोस्वामी की कविता…हरेली तिहार सुग्घर हे

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हरेली तिहार सुग्घर हे

मया अउ दुलार सुग्घर हे

हरियाली हे चारो कोती

नदिया खेती खार सुग्घर हे

आवव संगी जुर मिलके हम

मना लेवन सबो हरेली

मन झूमत हे गावत हे संगी

गेड़ी संग गीत धार सुग्घर हे

चम्पेश्वर गोस्वामी

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1 COMMENT

  1. अब्बड़ सुग्घर गीत बधाई हो भईया💐💐💐💐💐💐

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