आज जब पूरे में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जा रहा हो,और बस्तर के मूल निवासियों,यहां से जुड़े कलमकार की मूल निवासियों के लिये लिखी कविता की बात न हो,जनजातीय समाज पर लिखी कविता ना हो तो फिर बात कुछ अधूरी सी रह जाती है |
( युवा शोधार्थी,खोजी लेखक ‘विश्वनाथ देवांगन उर्फ मुस्कुराता बस्तर’ छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले के कोंडागांव के पास ही छोटे से गांव से आते हैं,और देश दुनिया में उनकी लेखनी की धमक है,मूल निवासियों पर लिखी कविता मूल हल्बी में है,जो सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में है| )
आशा है आप भी पढ़कर बस्तर के इस जनजातीय सरोकारों के लिए समर्पित कलमकार की रचना को पसंद करेंगे :-
फूकला तोड़ी….
जय आदिवासी बोल…..
!
हुलकी,मांदरी,बाजली ढोल,
जय-जय आदिवासी बोल ,
रे दादा,रे दीदी ……
जय-जय आदिवासी बोल… |
फूकला तोड़ी,बांदला पागा,
जुग-जुग ले आत,देश चो राजा,
गोंडवाना चो जोर….. |
प्रकृति पूजक,
प्रकृति रक्षक,
प्रकृति संगे,
आसत परछट,
मनुख के दखुन नी मोल…|
गोंडी भाषा गोंडवाना लैंड,
विगयानीक जीवना,
नी पींदत कुड़ता हपेंड,
धोती कुड़ता जो जोर….. |
देश दुनिया ने,गुलाय आदिवासी,
प्रकृति पूजक,बने होला बनवासी,
जुग-जुग ले आसत नंगत सोर… |
मुस्कुराता बस्तर काय सांगे,
आदिवासी चो कहनी,
काल चो फूटलो गार नुहाय,
जुग-जुग चो संस्कृति चो जननी,
हरिक ने फूटली,
शरन ने टोंड ले बोल…. |
जय आदिवासी बोल…
✍विश्वनाथ देवांगन’मुस्कुराता बस्तर’
कोंडागांव(बस्तर)छत्तीसगढ़