कमलेश यादव : मध्य भारत के धार्मिक नगरी डोंगरगढ़ में पहाड़ियों की चोटी पर विराजमान हैं “मां बम्लेश्वरी”, जिनका स्वरूप मनमोहक, अलौकिक, कल्याणकारी और शांतिदायक है। विपरीत परिस्थितियों से लड़कर शिक्षा के जरिए खुद को साबित करने वाली डॉ. मोतिम वर्मा “मां” के इसी स्वरूप को जीवंत कर रही हैं। उन्होंने न सिर्फ खुद को प्रेरित किया है, बल्कि दूसरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा रही हैं। उनका मानना है कि थोड़ी सी मदद और सही मार्गदर्शन से सबकुछ संभव हो सकता हैं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी डॉ. मोतिम वर्मा एक कुशल गृहिणी, रामचरित मानस की प्रखर वक्ता और महिला कृषि उद्यमी बनकर न सिर्फ अपने गांव बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं।
गौरतलब है कि गांव की ज़्यादातर महिलाएं खेती-किसानी और परिवार की देखभाल में व्यस्त रहती हैं। श्रीमती मोतिम वर्मा ने खुद को सीमाओं से परे ले जाकर अपने नाम के साथ ‘डॉक्टर’ शब्द जोड़ने का सपना देखा था। उनके पति श्री डुमेंद्र वर्मा ने उनके इस सपने को पंख दिए और हर कदम पर उनका हौसला बढ़ाया। आखिरकार उन्होंने न सिर्फ़ अपनी पीएचडी पूरी की बल्कि इस मुकाम तक पहुँचने वाली गांव की पहली महिला भी बन गईं।
समाज मे आध्यात्मिक चेतना का विकास
रामायण के निरंतर स्वाध्याय ने उन्हें क्षेत्र की प्रतिष्ठित रामकथा वाचक बना दिया हैं। इसी कड़ी में उन्होंने 2015 में “ममतामयी महिला मानस परिवार भोथली” की नींव रखी। इसका उद्देश्य समाज मे महिला शक्ति को साथ लेकर आध्यात्मिक चेतना का विकास करना है। उनका कहना है कि ज्ञान तभी सार्थक है जब हम उसे अपने कार्यक्षेत्र में लागू करें। उनके नेतृत्व में यह मानस परिवार, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और समाज में जागरूकता फैलाने का माध्यम बन गया है।
“शिक्षा और खेती” जीवन के आधार स्तंभ
डॉ. मोतिम वर्मा समय का बहुत अच्छा प्रबंधन करती हैं और पढ़ाई छोड़ चुकी महिलाओं की मदद के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। डॉ. वर्मा का योगदान सिर्फ शिक्षा तक ही सीमित नहीं है। वह खेती में अपने पति की सहयोग करती हैं। उनके प्रयास बताते हैं कि “शिक्षा और खेती” दोनों ही जीवन के आधार स्तंभ हो सकते हैं। वह न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं बल्कि अपने क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा भी हैं।
भविष्य की राह
डॉ. मोतिम वर्मा का मानना है कि शिक्षा ही समाज की उन्नति का मार्ग है। इसलिए उनका अगला लक्ष्य गांव और समाज की अन्य महिलाओं को शिक्षा के लिए प्रेरित करना है। वह कहती है कि शिक्षा का प्रकाश समाज के उन कोनों तक फैलाना है, जहां यह अभी तक नहीं पहुंचा है। साथ ही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर महिला उद्यमिता की राह को मजबूत करना है।
माता-पिता का आशीर्वाद
अपने इस संपूर्ण सफर का श्रेय वह अपने माता-पिता, स्व. सुकलिया बाई वर्मा और स्व. सुकालू राम वर्मा, को देती हैं। उनके आशीर्वाद और शिक्षा के प्रति दिए गए प्रोत्साहन ने ही उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है। वह कहती है कि एक समय ऐसा आया जब मेरी सासु मां अस्वस्थ थीं और मुझे उस दौरान पीएचडी के लिए थीसिस लिखनी थी। हालात कठिन थे, लेकिन मोतिम जी ने हार नहीं मानी। वे जानती थीं कि चुनौतियां केवल उस व्यक्ति के सामने आती हैं, जो उसे पार करने की क्षमता रखता है। प्रभु श्री राम जी की कृपा से अब वह पूरी तरीके से स्वस्थ हैं।
डॉ. मोतिम वर्मा की कहानी उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो सपने तो देखती हैं लेकिन संघर्ष से घबराती हैं। उनका जीवन यह संदेश देता है कि अगर आपके अंदर अपने सपनों को साकार करने का जुनून और चुनौतियों से लड़ने का साहस है तो कोई भी बाधा आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। डॉ. वर्मा ने साबित कर दिया है कि शिक्षा, धैर्य और आत्मविश्वास से हर बाधा को पार किया जा सकता है और यही गुण जीवन को सच्ची दिशा और मायने देते हैं।