*सत्यदर्शन साहित्य…पर्यावरणी संतुलन,जीव जंतु सब अंग,वसुधा एक कुटुंब है,जीवन के सब रंग…पर्यावरण चालीसा*

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साहित्य के अनेक विधाओं में पारंगत अनंत पुरोहित जी मूलतः छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के छोटे से गांव खटखटी से है।प्रकृति,सामाजिक विचार,जैसे अनेक विषयो पर कहानी,नवगीत,हाइकु,आलेख,छंद लिख चुके है।वर्तमान में जनरल मैनेजर (पाॅवर प्लांट, ड्रोलिया इलेक्ट्रोस्टील्स प्रा लि) में पदस्थ है।मुख्य रूप से प्रकाशित पुस्तकें ‘ये कुण्डलियाँ बोलती हैं’ (साझा कुण्डलियाँ संग्रह) है।

*पर्यावरण चालीसा*

*दोहा:*
अनल अनिल आकाश औ, पृथ्वी सलिल समेत
बहुआयामी मेदिनी, जीवन स्वर समवेत
पर्यावरणी अंग हैं, महाभूत सब पाँच
जीवन के आधार हैं, इन्हें न आए आँच

*चौपाई:*
जीव जंतु सब जलचर नभचर।
मिलकर बनते जगत चराचर।।1।।
पर्यावरण प्राणपथ पालक।
सृष्टि सँवार सकल संचालक।।2।।
पंचतत्त्व हैं प्राण प्रदाता।
दूषित कर्ता बहु दुख पाता।।3।।
है ऑक्सीजन वायु समाहित।
इसमें सबका प्राण प्रवाहित।।4।।
बंधु करो मत इसको दूषित।
रखो सदा तरुवर से भूषित।।5।।
सल्फर कार्बन इसके अरिदल।
इसमें जीना भीषण प्रतिपल।।6।।
जनता में दायित्व जगाओ।
सब मिलजुल कर वृक्ष लगाओ।।7।।
कार्बन का उत्सर्जन रोको।
जल की बरबादी को टोको।।8।।
जल अनमोल सदा यह जानो।
मूल्य बूँद की तुम पहचानो।।9।।
मिट्टी महिमा माँ सम न्यारी।
क्षरण रोकना जिम्मेदारी।।10।।
वृक्ष मूल से क्षरण रुकेगा।
इन्हें देखकर मेघ झुकेगा।।11।।
मूल्य निसर्ग नहीं पहचाना।
दोहन शोषण अबतक जाना।।12।।
स्वार्थ लोभ की तज दे आरी।
कानन पर मत चला कटारी।।13।।
पुष्प लता सह करता विचरण।
पुलकित होकर मानव क्षण-क्षण।।14
कानन पर हों तरुवर शोभित।
देख देख कर जलधर मोहित।।15।।
वातावरणी ताप बढ़ेगा।
सिंधु नीर का सतह चढ़ेगा।।16।।
द्वीप सभी पर संकट छाया।
बढ़ते कार्बन की सब माया।।17।।
जलसंवर्धन विधि अपनाओ।
भूजल का अब सतह बढ़ाओ।।18।।
औद्यौगिक अपशिष्ट निकासित।
सरिता जल को करता कलुषित।।19।।
अम्ल मिला जल संकट भारी।
सरिता की सब मछली मारी।।20।।
ओजोन पर्त सब का रक्षक।
बैंगिनी परा विकिरण भक्षक।।21।।
ऐरोसोल शत्रु क्षयकारी।
इसे हटाने की है बारी।।22।।
खाद रसायन बढ़े महत्ता।
मिट्टी की मिटती गुणवत्ता।।23।।
जैविक खाद बहुत उपयोगी।
इससे रहती मृदा निरोगी।।24।।
फसल चक्र को तुम अपनाना।
मृदा बचाव यही विधि जाना।।25।।
फसल मूल पर बूँद सिंचाई।
नव विधि न्यारी नीर बचाई।।26।।
प्लास्टिक कचरा नहीं शुभंकर।
मिटना इसका अधिक भयंकर।।27।।
नवल स्रोत खोजो ऊर्जा का।
कम प्रयोग हो कलपुर्जा का।।28।।
संतुलन बिना प्रकृति भयानक।
आती विपदा प्रलय अचानक।।29।।
रोग फैलता दूषित जल से।
छान ग्रहण कर पानी नल से।।30।।
करो भूमिगत वर्षा जल को।
रखो सुरक्षित अपने कल को।।31।।
कोई करता कोई भरता।
खाकर प्लास्टिक प्राणी मरता।।32।।
प्लास्टिक द्वीप बना सागर पर।
संकट जलचर के आगर-घर।।33।।
नहीं व्योम को मानव छोड़ा।
वहाँ संतुलन को भी तोड़ा।।34।।
छोड़ा उपग्रहों का कचरा।
नभ पर भी मँड़राया खतरा।।35।।
भूमिगर्भ पर धावा डाला।
चीरा छाती तेल निकाला।।36।।
सीमा नहीं स्वार्थ के इसका।
कलुष बुद्धि है दो पद जिसका।।37।।
नहीं विषय कोई बच पाया।
मानव जहाँ न मार लगाया।।38।।
काल कराल विकट दुखदायी।
गोद प्राकृतिक में सुखपायी।।39।।
समझ महत्ता इसकी मानव।
रखो सुरक्षित, मत बन दानव।।40।।

*दोहा:*
पर्यावरणी संतुलन, जीव जंतु सब अंग
वसुधा एक कुटुंब है, जीवन के सब रंग

 

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