इन्कलाब….
!
अपने घर की,
छत की ढलाई के बाद,
मेरी झोपड़ी की,
मरम्मत याद आती है |
अपने फार्म में,
खाद पानी की बौछार,
फिर,
सूखे की बात आती है |
आलीशान आशियाना,
तुम दीवान में सोकर,
मेरी चिन्ता करते हो |
वोट बैंक के लिए,
झोली भरते फिरते हो |
चुनावी एजेंडा हो गए,
ये सूखाग्रस्त अकाल,
पेट के लिए,
होगा दिखावटी बवाल,
सुनो हम भी,
खेतों को मौन धारण करवाएंगे,
बैलों से भाषण दिलवाएंगे,
रैलियां निकलेंगी,
नारे लगेंगे –
भूख बवाल जिन्दाबाद,
पेट का सवाल इन्कलाब |
!✍© *विश्वनाथ देवांगन’मुस्कुराता बस्तर’*
कोंडागांव बस्तर छत्तीसगढ़
मोबाइल: 07999566755
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