पंखों की पुकार: पिंजरे में बंद तोतों की स्वतंत्रता के लिए सरकार सख्त… वन्यजीव प्रेमी वीरेंद्र सिंह ने कहा है कि तोते और अन्य पक्षियों के लिए प्राकृतिक वातावरण में रहना बेहद जरूरी है

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गोपी : भारत में 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत कुछ तोते की प्रजातियाँ शामिल हैं, जिसका मतलब है कि उन्हें पालतू जानवर के रूप में रखना गैरकानूनी है। यह अधिनियम विभिन्न वन्यजीव प्रजातियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है और उनके शोषण को रोकता है। तोते, जो अपनी रंगीन छटा और बोलने की क्षमता के लिए मशहूर हैं, अक्सर घरों में पालतू पक्षी के रूप में पिंजरों में कैद कर दिए जाते हैं। लेकिन इस कानून के लागू होने के बाद, अब यह स्पष्ट हो गया है कि तोते को पिंजरे में कैद करना उनके प्राकृतिक अधिकारों का हनन है और यह एक दंडनीय अपराध होगा।

छत्तीसगढ़ के वन्यप्रेमी वीरेंद्र सिंह ने कहा है कि, तोते और अन्य पक्षियों का प्राकृतिक पर्यावरण में रहना अत्यंत आवश्यक है। पिंजरे में रखे जाने से उनकी प्राकृतिक प्रवृत्तियों, जैसे उड़ना, सामाजिकता, और प्राकृतिक आहार की खोज करने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत, सभी भारतीय तोते की प्रजातियाँ जैसे कि भारतीय रिंग-नेक तोता (गुलाब-तोता), एलेक्जेंड्राइन तोता, और लाल-ब्रेस्टेड तोता संरक्षित हैं। इन प्रजातियों को रखना या बेचना निषिद्ध है, और ऐसा करने वालों को जुर्माना और कारावास जैसी सजा का सामना करना पड़ सकता है।

हालांकि, गैर-देशी तोते की प्रजातियाँ (जैसे कि बजरीगर, कॉकटेल, और कुछ अन्य विदेशी प्रजातियाँ) इस अधिनियम के अंतर्गत नहीं आतीं और इन्हें पालतू जानवर के रूप में रखा जा सकता है, बशर्ते उन्हें कानूनी रूप से प्राप्त किया गया हो और तस्करी न की गई हो। कानून का पालन सुनिश्चित करने के लिए हमेशा स्थानीय वन्यजीव अधिकारियों से पुष्टि करें।

इस कानून के तहत, यदि किसी व्यक्ति को तोते या अन्य पक्षियों को पिंजरे में रखते हुए पाया जाता है, तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा और जेल की सजा भी दी जा सकती है। कानून का उद्देश्य पक्षियों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना और उन्हें प्राकृतिक वातावरण में वापस लाना है। वन्यजीव प्रेमियों और संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे एक महत्वपूर्ण कदम बताया है जो पक्षियों के प्राकृतिक जीवन की रक्षा करेगा।

 

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