क्या आपने कभी सोचा है कि बादल फटने, लैंड-स्लाइड होने, बाढ़ वाले इलाके,आंधी-तूफान में या भूकंप के आने पर जब सब कुछ ध्वस्त हो जाता है…इंटरनेट काम करना बंद कर देता है…यहीं से ‘स्मार्ट संचार’ की शुरुआत होती है…इस तरह की डिवाइस बनाने वाले पहली स्टार्टअप कंपनी की रोचक कहानी

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क्या आपने कभी सोचा है कि बादल फटने, लैंड-स्लाइड होने, बाढ़ वाले इलाके, बर्फीले एरिया, आंधी-तूफान में या भूकंप के आने पर जब सब कुछ ध्वस्त हो जाता है। इंटरनेट काम करना बंद कर देता है। वॉट्सऐप, मेल, गूगल कुछ भी नहीं काम करता है। कई दिनों तक बिजली नहीं रहती है। इसी में इंडियन आर्मी और रेस्क्यू फोर्सेज का रेस्क्यू ऑपरेशन भी चल रहा होता है।

आर्मी यूनिट भी इस तरह के लोकेशंस पर सेटल रहती है, तो वो एक यूनिट से दूसरे यूनिट में या एक जवान दूसरे जवान से कैसे बातचीत करते हैं? ऑडियो मैसेज भेजने के लिए FM रेडियो सेट तो होता है, लेकिन वीडियो-फोटो भेजने के लिए…?

जब ये दिक्कतें मध्य प्रदेश के अनूपपुर के रहने वाले आशुतोष राय से आर्मी ऑफिसर्स ने शेयर की, तो उन्होंने ‘स्मार्ट संचार’ नाम से डिवाइस बनाकर इसका सॉल्यूशन खोज निकाला।इसके इस्तेमाल से सेना के जवान किसी भी दुर्गम इलाकों में बिना किसी इंटरनेट, सैटेलाइट, बिजली, GPS, GSM के वीडियो मैसेज, फोटो भेज सकते हैं। सेना की एक टुकड़ी, दूसरी टुकड़ी के लाइव लोकेशन, वीडियो देख सकती है। सभी एक्टिविटी को ट्रैक कर सकती है।दरअसल, इसमें दो डिवाइस लगे होते हैं। विजुअल ऑपरेटिंग सिस्टम (VOU) और डेटा ऑपरेटिंग सिस्टम (DOU) को रेडियो सेट से कनेक्ट किया जाता है।

आशुतोष कहते हैं, 150 से ज्यादा डिवाइस इंडियन आर्मी की अलग-अलग यूनिट, चीन-पाकिस्तान बॉर्डर, लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) और लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) पर इंस्टॉल्ड है। अभी 100 से अधिक डिवाइस के ऑर्डर पर काम चल रहा है।

आशुतोष सुरक्षा के लिहाज से इसे अभी मार्केट में लॉन्च नहीं कर सकते हैं। डिवाइस की कीमत 50 हजार से 5 लाख तक की है। उनकी कंपनी स्टार ब्रू (Star bru) का सालाना टर्नओवर एक करोड़ 30 लाख है। आशुतोष की कंपनी इंदौर बेस्ड है, लेकिन उन्होंने अपना लैब भोपाल स्मार्ट सिटी बिल्डिंग में सेट कर रखा है।

आशुतोष कहते हैं, जब 9th क्लास में था, तो हर रोज सुबह दौड़ने जाता था। 12वीं तक की पढ़ाई-लिखाई हिंदी मीडियम में सरकारी स्कूल में हुई। मेरा गांव बिजुरी आदिवासी बहुल इलाका है। जिस स्कूल में 12वीं तक पढ़ा, उसकी बिल्डिंग इतनी जर्जर थी कि हम लोग पेड़ के नीचे बैठ कर पढ़ते थे। ये 2004 की बात है। उस वक्त गांव में अच्छे स्कूल नहीं होते थे। पापा सरकारी स्कूल में टीचर थे।

जब सेना में नहीं जा सका, तो भोपाल के राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (RGPV) से B.Tech करने लगा। कॉलेज आया तो अग्रेंजी में काफी दिक्कतें हुई। इसलिए थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल पर फोकस करने लगा। चौथे साल आते-आते कई आईआईटी कैंपस के प्रोग्राम में पार्टिसिपेट कर चुका था। इससे इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री में काफी एक्सपोजर मिला।

आशुतोष नवल से मिलने का दिलचस्प किस्सा बताते हैं। कहते हैं, 2010 का साल था। आईआईटी कानपुर में रोबोटिक कॉम्पिटिशन चल रहा था। हम दोनों बतौर कॉम्पिटिटर मिले थे, लेकिन बाद में दोस्ती हो गई। फिर बिजनेस पार्टनर बन गए। पहले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) बेस्ड स्टार्टअप की शुरुआत की। 7 साल में करीब 34 लाख रुपए की बचत हुई। फिर 2017 में हमने ‘स्मार्ट संचार’ पर रिसर्च करना शुरू किया। हम दोनों मिडिल क्लास फैमिली से आते हैं। नवल के पिता कपड़े की छोटी सी दुकान चलाते हैं। रिसर्च करने में 3 साल लग गए। कोई इनकम सोर्स नहीं था। इस दौरान फ्रेंड्स से भी पैसे उधार लेने पड़े।

आशुतोष कहते हैं, 2010 में ग्लोबल मंदी का दौर चल रहा था। हर कोई सिक्योर जॉब खोजने में लगा था। कई दोस्तों का कहना था कि स्टार्टअप के चक्कर में मत पड़ो। नौकरी करो। इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में कुछ नहीं रखा है, लेकिन हम दोनों ने AI का स्टार्टअप शुरू किया।

आशुतोष बताते हैं, कई सारी कंपनियां होती हैं, जिनके यहां वर्कर यदि दो दिनों के लिए भी न आए, तो उन्हें भारी नुकसान होता है। हम लोगों ने ऐसी कंपनियों में जाकर 7 साल तक ऑटोमेशन सिस्टम को इंस्टॉल करने का काम किया। जिससे इन कंपनियों में मशीनों के जरिए काम होने लगा।

फिर सिक्योरिटी फोर्सेज के लिए डिवाइस बनाने के बारे में कैसे सोचा?
सेना में जाने का सपना तो बचपन से था, लेकिन वो पूरा नहीं हो पाया। 2015-16 की बात है। एक आर्मी यूनिट में हम लोगों को एक ऐसे डिवाइस को इंस्टॉल करने के लिए कहा गया, जिससे कि वॉलीबॉल खेलने के दौरान बॉल के बास्केट में गिरने के साथ ही ऑटोमेटिक स्कोर अपडेट हो जाए। हमने वो कर दिखाया। यह सेंसर बेस्ड था। इसी के बाद आर्मी ऑफिसर्स ने बताया कि हम बिना इंटरनेट, सैटेलाइट के फोटो-वीडियो सिक्योर मीडियम से शेयर नहीं कर पाते हैं। यहीं से ‘स्मार्ट संचार’ की शुरुआत होती है।

आशुतोष बताते हैं, यह ओपन सेक्टर नहीं है। हमें रिसर्च में भी कई तरह की परेशानियां आईं। किसी आर्मी यूनिट में या डिफेंस से जुड़े लोगों से जाकर खुलकर बातचीत नहीं कर सकता था। कई महीनों तक अलग-अलग जगहों पर जाकर रिसर्च की, सर्वे किया।

सबसे बड़ी चुनौती तब आई जब प्रोडक्ट को लेकर हम मार्केट में आए। कई सारे सेफ्टी नॉर्म्स की वजह से डिफेंस सेक्टर में किसी प्रोडक्ट को एडॉप्ट करने में टाइम लगता है। 2020 से हम प्रोडक्ट की सप्लाई कर रहे हैं।

आशुतोष को मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस से 1.5 करोड़ का अवॉर्ड के रूप में ग्रांट भी मिल चुका है। वो कहते हैं, डिमांड के मुताबिक हम प्रोडक्ट में कोडिंग करते हैं। यदि किसी यूनिट को डेटा सेविंग स्टोरेज के साथ डिवाइस चाहिए, तो हम उन्हें उसी तरह की फैसिलिटी के साथ प्रोवाइड कराते हैं। इस तरह की डिवाइस बनाने वाले हम पहली स्वदेशी कंपनी हैं।

आशुतोष लगातार डिफेंस से जुड़े अलग-अलग डिवाइस पर रिसर्च कर रहे हैं और नए प्रोडक्ट की लॉन्चिंग पर वर्क कर रहे हैं, लेकिन आज भी उन्हें वो दिन याद आते हैं जब ऑफिस का रेंट पे करने की स्थिति में नहीं थे। वो कहते हैं, हमें भोपाल के बी नेस्ट इन्क्यूबेशन सेंटर में काम करने के लिए ऑफिस और लैब प्रोवाइड करवाया गया।

स्टार्टअप में सबसे ज्यादा मेंटरशिप की जरूरत होती है, ताकि प्रोडक्ट को मार्केट में लॉन्च करने से लेकर फाइनेंशियल हेल्प हो पाए। लीगल पार्ट्स को हम समझ पाएं। जब स्टार्टअप शुरू किया था, तो सिर्फ दाल-रोटी की चिंता थी। अब देश के लिए काम कर रहा हूं”

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