सेव द फार्मर्स…मैं जब किताब पढ़ती थी तो वहां किसान बहुत खुशहाल और खेत हरे-भरे दिखते थे…मेरी इमेजिनेशन भी ऐसी ही बन गई कि खेत बहुत सुंदर जगह होती होगी…मेरे इन्हीं सवालों ने किसानों के सशक्तिकरण के लिए काम करने के लिए मुझे प्रेरित किया

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मैं शजाना। 13 साल की सोशल एक्टिविस्ट हूं। टेड एक्स स्पीकर हूं। 7वीं क्लास की स्टूडेंट मैं अपने स्कूल की आउटस्टैंडिंग यंग एचीवर भी हूं। मैं सामाजिक मुद्दे जैसे ‘सेव द फार्मर्स’ पर काम करती हूं। 8 साल की उम्र से किसानों के लिए काम कर रही हूं। मुझे मदद करना अच्छा लगता है और एक दिन ऐसा अवसर आया जिसने मेरी जिंदगी बदल दी और समाज को देखने का नजरिया भी।किसान आजीविका के लिए परेशान क्यों?गिनिज वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुकीं चेन्नई की शजाना मीडिया से खास बातचीत में कहती हैं, ‘मैं जब किताब पढ़ती थी तो वहां किसान बहुत खुशहाल और खेत हरे-भरे दिखते थे। मेरी इमेजिनेशन भी ऐसी ही बन गई कि खेत बहुत सुंदर जगह होती होगी। वहां काम करने वाले किसान बहुत खुश होंगे। उनकी जिंदगी हरी घास की तरह हरी होगी, पर जब सच्चाई मालूम हुई तो दुख हुआ।

भारत एक कृषि प्रधान देश है और किसान देश की बैकबोन हैं। कुछ साल पहले मैंने टीवी और अखबारों में किसानों की दुखियारी, बेचारी, लाठी खाते, सिर पर पट्टी बांधें ऐसी तस्वीरें देखीं जिससे मेरी जिज्ञासु प्रवृत्ति ने समझना चाहा कि अगर किसान इस दुनिया की बैकबोन हैं तो उनके साथ ऐसी हिंसा क्यों, ये सुसाइड क्यों कर रहे हैं और दूसरों का पेट भरने वाले ही अपनी आजीविका के लिए परेशान क्यों हैं? मेरे इन्हीं सवालों ने किसानों के सशक्तिकरण के लिए काम करने के लिए मुझे प्रेरित किया।

वे किसान जो हमें रोजाना का भोजन देते हैं, उस कम्युनिटी को रिप्रेजेंट करने की मैंने ठानी और यहां से मिशन शुरू हुआ-’सेव द फार्मर्स।’ भारत में आज जो किसानों की स्थिति है उस पर जागरुकता फैलाने की मैंने ठानी। मैं तमिलनाड़ु के एक गांव में अपने पेरेंट्स के साथ फील्ड विजिट पर निकली और वहां मेरी नजर एक गरीब महिला किसान पर पड़ी। वह एक विधवा महिला थी और तीन बच्चों की मां। वह महिला किसान अपनी खुद की एक एकड़ जमीन पर खेती नहीं कर पा रही थी, क्योंकि उसके पास उतना पैसा नहीं था।जब मैं उस महिला के घर गई तो वहां की हालत और भी बुरी थी, जिसे देखकर मुझे और भी बुरा लगा। मां से पूछने लगी कि इनकी इतनी बुरी हालत क्यों है? मैंने उसी दिन तय किया कि मैं इस लेडी फार्मर को अडॉप्ट करूंगी और जनवरी 2018 में अपने जन्मदिन पर उन्हें अडॉप्ट कर लिया।

शुरू में मैंने अपनी खुद की पॉकेट मनी से उनकी मदद की और धीरे-धीरे उस महिला किसान के लिए फंड जुटाना शुरू किया। मैंने अपनी सारी ईदी उस महिला को दे दी और मां के ऑफिस के लोगों से भी फंड जुटाकर करीब 18 हजार रुपए उस महिला के लिए जमा किए। इन रुपयों से मैं बीज खरीदती और उस महिला को जाकर देती। इसके बाद मैंने उसी गांव से एक बुजुर्ग किसान को और अडॉप्ट किया। अब मैं उनकी खेतीबाड़ी का सारा खर्च उठाती हूं। मैं अपना जन्मदिन उनके साथ मनाती हूं और पोंगल से लेकर तमाम उत्सव उनके साथ ही सेलिब्रेट करती हूं। पिछले चार सालों में कई किसानों की मदद कर चुकी हूं और 2020 में किसान दिवस पर कोविड के समय पर कई किसानों को दाल, चावल से लेकर अन्य जरूरी चीजें मुहैया कराईं। अभी आगे दो किसानों को और अडॉप्ट करूंगी।

खाना बर्बाद करने से पहले किसानों की मेहनत के बारे में सोचें
मैंने खुद की कॉमिक सीरीज शुरू की है, जो मेरी फार्मिंग जर्नी को बताती है। यह कॉमिक जल्द रिलीज होगी। मैंने इंटरनेशनल फेयर ट्रेड मूवमेंट को जॉइन किया है, जहां मैं पूरी किसान कम्युनिटी की मदद करूंगी। अब मेरा सभी बच्चों को यही संदेश है कि जो खाना आप खाते हैं उसकी वैल्यू करें। सोचें कि आपकी प्लेट में फूड लाने के लिए कितने किसान कितनी मेहनत करते हैं। खाने को बर्बाद करने से पहले कई बार सोचें। जय जवान, जय किसान, जय हिंद।

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