जब भी किसी का विरोध करना हो तो अपनी मर्यादा न छोड़ें, सोच-समझकर करें शब्दों का उपयोग

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कहानी

अरविंदो घोष क्रांतिकारी थे और बाद में वे आध्यात्मिक हो गए थे। उनके मन में ये दुख था कि देश इस तरह से अगर आजाद होगा तो भविष्य में कई नुकसान होंगे।

बाद में जब अरविंदो घोष ने गांधी जी की हत्या की खबर सुनी तो उन्होंने रेडियो पर अपना वक्तव्य दिया था। उन्होंने कहा, ‘इस घटना के लिए मेरे पास तो क्या किसी के भी पास शब्द नहीं होंगे। अगर कुछ बोला भी जाएगा तो वह व्यर्थ हो जाएगा। इस समय मौन ही ठीक है। ये रोशनी सदैव जलती रहेगी।’

अरविंदो जी कुछ मामलों में गांधी जी के विरोधी थे। दोनों में आपसी प्रेम भी बहुत था, लेकिन अरविंदो जी जब भी गांधी जी का विरोध करते थे तो बड़े ही मर्यादित और संयमित भाषा में करते थे।

1928 की बात है। एक दिन गांधी जी ने अपने पुत्र देवदास को एक पत्र देकर अरविंदो जी के पास भेजा था। उस पत्र में संदेश लिखा था कि आप आ जाइए। कांग्रेस की गाड़ी आपके लिए तैयार है। हम इंतजार कर रहे हैं।

अरविंदो जी ने वहां जाने से मना कर दिया था। वे गांधी जी के असहयोग आंदोलन को आत्म पीड़ा मानते थे। उन्होंने कहा था कि पश्चिम ने आत्म पीड़ा को और पूरब ने वैराग्य को गलत परिभाषा दी है। गांधी जी भी उसमें उलझ गए, मैं उनसे सहमत नहीं हूं। अरविंदो जी गांधी जी की प्रशंसा भी करते थे।

सीख
अरविंदो जी ने हमें संदेश दिया है कि किसी का विरोध करना हो तो मर्यादा नहीं छोड़नी चाहिए। समर्थन करना हो तो सोच-समझकर करें और किसी पर भी आंखें बंद करके भरोसा न करें

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