मैं सिलाई का काम करके अपना परिवार चला रही हूं… सच यही है कि जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते रहते हैं और ऐसे में धैर्य या साहस बिल्कुल नहीं खोना चाहिए क्योंकि जान है,तभी जहान है…जिंदगी जीने के नजरिये को बदलता आत्महत्या रोकथाम दिवस से पहले विशेष सप्ताह में जागरुकता के प्रयास तेज

632

राजनांदगांव। लोग मानसिक तौर पर स्वस्थ रहें तो जिंदगी जीने के विरुद्ध उठाए जाने वाले कदमों को आसानी से रोका जा सकता है। ऐसा उन लोगों का ही मानना है, जो कभी जिंदगी से नाराज हो गए थे। लोगों की खुशनुमा जिंदगी के लिए ही जिले के स्पर्श क्लीनिक और नशा मुक्ति केंद्र जैसे संस्थानों के माध्यम से लगातार प्रयास भी किए जा रहे हैं। लोगों को तनाव में नहीं रहने की समझाइश दी जा रही है, जिसमें पुलिस की भी सशक्त भूमिका है।

गुजरे कुछ दशकों में आत्महत्या की घटनाएं इतनी तेजी से बढ़ी हैं कि यह समाज में एक प्रमुख मुद्दा बन गई है और इसीलिए हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। इस दौरान मानसिक विकारों के प्रति लोगों को सजग करने के साथ-साथ कोई भी आत्महत्या का कदम न उठाए, इसके प्रयास किए जाते हैं। प्रदेश में 6 से 11 सितंबर तक आत्महत्या रोकथाम सप्ताह मनाया जा रहा है।

इसी क्रम में राजनांदगांव जिले में भी कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिनमें 104 हेल्पलाइन और स्पर्श क्लीनिक की सेवाएं भी शामिल हैं। सभी पीएचसी के डॉक्टरों को नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज द्वारा मानसिक स्वास्थ्य पर ट्रेनिंग दी जाती है। टेली मेडिसिन द्वारा भी मानसिक विकारों का उपचार किया जाता है। साथ ही पुलिस प्रशासन द्वारा भी समय-समय पर कार्यशाला आयोजित की जाती है।

आत्महत्या रोकथाम सप्ताह के दौरान जागरुकता कार्यक्रमों के माध्यम से समुदाय को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि जिंदगी अनमोल होती है, इसे बर्बाद न करें बल्कि जिंदगी की हिफाजत करना सीखें। वहीं यह जानकारी दी जा रही है कि मानसिक विकारों का उपचार संभव है। यदि किसी में भी दिमागी असंतुलन के लक्षण दिखें तो सबसे पहले डॉक्टर की सलाह लेना चाहिए। इससे न सिर्फ पीड़ित की जान बचाई जा सकती है बल्कि उसे एक स्वस्थ जिंदगी भी मिल सकती है।

आत्महत्या के कारणों का हो रहा है अध्ययन…
दुर्ग संभाग के आईजी विवेकानंद सिन्हा ने बीते वर्ष कोरोना संक्रमण के खतरे तथा लॉकडाउन के बाद आत्महत्याओं के अचानक बढ़े ग्राफ को देखकर संभाग के पांचों जिलों से रिपोर्ट तैयार करवाई थी। इसमें पता लगा कि वर्ष 2016 से जून 2020 के बीच दुर्ग, राजनांदगांव, बालोद, बेमेतरा और कबीरधाम जिले में 6,035 लोगों ने आत्महत्या की है। इनमें सबसे ज्यादा दुर्ग जिले में 2,307 लोगों ने खुदकुशी की। वहीं नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ में आत्महत्या की दर 24ण्7 प्रति लाख जनसंख्या है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में छत्तीसगढ़ चौथा सबसे ज्यादा आत्महत्याओं वाला प्रदेश है। यह भी पता चला कि 18 कारण ऐसे हैं जिनकी वजह से लोग मौत को गले लगाने का निश्चय कर बैठते हैं। इनमें पति-पत्नी में विवाद, काम का दबाव, बीमारी से व्याकुनता या प्रेम संबंध में तनाव के कारण ज्यादातर लोगों ने खुदकुशी की है। आईजी दुर्ग रेंज विवेकानंद सिन्हा ने बताया, आत्महत्या के कारणों का अध्ययन किया जा रहा है। आत्महत्या को कैसे रोका जा सकता है, इस दिशा में पुलिस बेहतर काम करने का लगातार प्रयास कर रही है।

परामर्श या इलाज के लिए स्पर्श क्लीनिक…
इस संबंध में राजनांदगांव के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मिथलेश चौधरी ने बताया, आत्महत्या की ज्यादातर घटनाएं मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी होती हैं। अगर लोग मानसिक तौर पर स्वस्थ होंगे तो आत्महत्याओं में भी कमी आ सकती है। जिंदगी के प्रति सकारात्मक रहें। योगा-ध्यान भी करें। मानसिक तनाव पीड़ितों के उपचार के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिनमें 104 हेल्पलाइन और स्पर्श क्लीनिक भी हैं। यहां विशेषज्ञों के माध्यम से मनोरोगियों की काउंसिलिंग की जाती है तथा आवश्यकता पड़ने पर समुचित इलाज सुनिश्चित किया जाता है। रोगियों की जानकारी पूरी तरह गुप्त रखी जाती है।

और अब वह मुस्कुराकर कहते हैं, जिंदगी का मजा तो जीने में ही है
एक अस्पताल के करीब 45 वर्षीय कर्मचारी संजय (बदला हुआ नाम) ने एक रोज अचानक आत्महत्या का कदम उठा लिया, लेकिन समय रहते परिजन की नजर पड़ते ही वह बचा लिया गया। जान बचने के बाद हुए इलाज में उसे इतनी तकलीफ हुई कि उसने आत्महत्या जैसे कदम भूलकर भी न उठाने की कसम खा ली है। संजय कहते हैं-काम के दबाव में मन का संतुलन बिगड़ने की वजह से मैंने यह कदम उठा लिया था, लेकिन सबक मिल गया है कि कुछ भी हो जाए अब आत्महत्या नहीं करना है। जिंदगी का मजा तो जीने में ही है।

साहस नहीं खोना चाहिए क्योंकि जान है, तभी जहान है…
लगभग 45 वर्षीय रुपा (बदला हुआ नाम) ने आर्थिक तंगी की वजह से आत्महत्या का निर्णय लिया था। इस प्रयास में रुपा के मुंह से झाग निकलता देख परिजनों ने उसे तत्काल अस्पताल पहुंचाया और अब वह बिल्कुल सही-सलामत है। रुपा कहती है-न जाने मन में ऐसा ख्याल कैसे आ गया था। अब बच्चों को देखकर यही महसूस होता है कि मैं ही गलत थी, यही बात डॉक्टरों ने भी कही लेकिन हां, अब सब ठीक है। मैं सिलाई का काम करके अपना परिवार चला रही हूं। वहीं सच यही है कि जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते रहते हैं और ऐसे में धैर्य या साहस बिल्कुल नहीं खोना चाहिए क्योंकि जान है, तभी जहान है।

Live Cricket Live Share Market

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here