तीज पर्व में पत्नी की याद में छत्तीसगढ़ी कविता…तोर बिना खाना घलो बूता तोर महत ल समझत हंव

1534

तीज पर्व यूं तो सुहागन स्त्रियों के लिए काफी मायने रखता है।आस्था,उमंग,सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव पूरे भारत मे मनाया जाता है।आज हम आपके लिए लेकर आये है छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध कवि चम्पेश्वर गिरि गोस्वामी की छत्तीसगढ़ी कविता

एक ठन साग ल तीन बेर ले खावत हंव
बाँचत हे तेला फिरिज म अउ राखत हंव

कपड़ा एक जोड़ी ल झररा झररा के पहिरत हंव
बर्तन मन बिजरावत हे का करबे वो मांजत हंव

बिहनिया के तो जुगाड़ होगे संझा बर अब गुनत हंव दार भात सब्जी सरमेट्टटा खिचड़ी बना लंव काहत हंव

तोर बिना खाना घलो बूता तोर महत ल समझत हंव              भात रांधे के डर म उपास रहे के सोचत हंव.

 

Live Cricket Live Share Market

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here