सत्यदर्शन साहित्य से आज के अतिथि सम्पादक है वरिष्ठ साहित्यकार संजीव बख्शी……… प्रसिद्ध उपन्यास”भूलन कांदा”के उपन्यासकार है…

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गिलहरी

कुछ दिनों से मेरे काम में एक और काम जुड़ गया है।। परिवार में चाय पीते ,खाना खाते या फिर टी वी देखते यह बात निकल ही जाती कि गिलहरी के बच्चे कैसे हैं। आज हाथ पैर हिलाने लगे या आज और क्या हुआ। दरअसल कमोड वाले शौचालय में कुछ दिनों पहले यानी दस रोज तो हो ही गए होंगे एक गिलहरी ने कुछ बच्चों केा जन्म दिया है और तब से एक गिलहरी हमेषा बच्चों के साथ रहती है कभी छोड़ती नहीं। रात और एक गिलहरी आ जाता है और वह भी बच्चों के आस पास रहता है यह पिता होगा यह अनुमान है। अनुमान क्या पक्का भरोसा है। क्योंकि बच्चों को छुपाने में मां गिलहरी जब नाकामयाब सी हो जाती है तो पिता गिलहरी भी साथ हो जाता है।

उस कमरे में ऊपर एक रोशनदान है जिसे बाहर की ओर के कुछ कांच निकल गए हैं और अंदर से बारीक जाली लगी है। इस जाली और कांच के बीच की जगह को बनाया है इन गिलहरियों ने अपना आशि‍याना बस चंद दिनों के लिए और इस तरह वे हो गए हैं हमारे मेहमान। चाह कर भी हम लोग उनके परिवार के लिए कुछ नहीं कर सकते। कुछ करने की कोशिश से भी वे कहीं डर न जाएं। बस चुपचाप उन्हें देखते रहने के अलावा कुछ क्या कर सकते हैं। बाहर छियालिस डिग्री की गर्मी है और यहां थोड़ा सुकून बस यही तसल्ली है। पहले तो कुछ पता पहीं चलता था अब हाथ पैर मारते दिखते है थोड़ी चूं चूं की आवाज भी आती है पर वहाँ जाने से मां गिलहरी उनको सब और से समेट लेती हैं और ऐसा प्रयास करती है कि उसे हमलोग देख नहीं सके। उनकी आवाज भी बंद हो जाती है। वही गिलहरी जो बहुत दूर से थोड़ी आहट पाकर भी भाग कर पेड़ के सबसे ऊपर पहुंच जाती वह यहां अपने बच्चों के साथ उनके हिफाजत में डटी हुई है। आहट पाकर भी भागती नहीं। हम लोग कोशिश करते हैं कि आहट कम से कम हो।

गिलहरी के बच्चे अब बड़े हो गए हैं दो चार रोज में एक माह के हो जाएंगे या अभी हो गए होंगे। बैठने लगे हैं और धारियां भी उनके शरीर में दिखने लगी हैं। पर मां और पिता गिलहरी अब भी वहाँ मेरे जाने से सामने आकर तुरत बच्चों के सामने आ जाते हैं या उन्हें नीचे दबा कर बैठ जाते हैं। आज सुबह की बात है हुआ यह कि मैं सुबह रोज की तरह घूमकर लौटा तो देखने के लिए वहाँ पहुंचा तो देखता हूं कि एक बच्चा जाने कैसे पतली जाली से बाहर निकल कर रोशन दान पर बैठा था और जाली के उसपार अंदर से उसकी मां उसे मुंह से छूने की कोशिश कर रही थी ,बच्चा भी बार बार जाली पर चढ़ने को करता और मां के पास जाने का प्रयास कर रहा था। मैंने आकर इसे पत्नी वीणा को बताया तो उसने कहा भी कि मां उसे अपने पास किसी तरह ले जाएगी। पर दोबारा पांच सात मिनट में ही जब मैं दोबारा गया तो देखता हूं कि मेरे सामने ही बच्चा सरकते हुए नीचे गिर रहा है अब तो कोई विकल्प ही नहीं था मैं तुरत पहुच कर उसे उठाया और जल्दी ही जाली जहां से ढीला होकर खुल गया था वहाँ से भीतर डाल दिया जहां उसकी मां थी। बस अब क्या था उसकी मां ने उसे अपने कब्जे में लेकर मुंह से उसे तेजी से छू छू कर प्यार करने लगी। और देखने लगी िकवह ठीक तो है। अच्छा लगा मुझे पर यह अच्छा लगना भी ज्यादा देर के लिए नहीं हुआ। आफिस जाने के पहले रोज कीी तरह फिर जब मैं उन्हें देखने गया तो पूरी फेमिली गायब। अरे यह क्या ? क्या डर के मारे सब के सब कहीं और ठौर ठिकाना बना लिए ? या फिर इससे अहसास हुआ कि कहीं दुबारा बच्चे गिर न जाएं। पता नहीं क्या हुआ ,फिर मैंने वीणा को बताया कि चले गए ये लोग सब के सब। हो सकता है कि बच्चे अब बड़े हो जाने के कारण अब उनके पेड़ों पर उछल कूद की ट्ेनिंग का समय आ गया हो। पर आज ही यह घटना और उसके बाद तुरत सब का आशि‍याना छोड़ कर जाना मुझे दुखी कर गया। मुझे लगा था कि बच्चे बड़े हो ही रहे हैं सो चार छह दिनों में चले ही जाएंगे। आज अचानक जाना सोचने को मजबूर कर दिया था फिर भी दूसरी ओर मन में था कि हो सकता है रात को वापस आ जाएं। अभी आफिस से आकर फिर वहाँ गया तो देखकर खुशी हुई कि गिलहरियों का परिवार वहाँ बैठा हुआ था। वीणा को बताने से उसने कहा कि वह मुझे बताने ही वाली थी ,ये सब के सब चार बजे से आ गए हैं। बस्तर की कविताओं को एकत्रित कर सुधीर शर्मा को दे दिया हूं , अम्मा ने जो दिया था 108 मनका के साथ रामायण को भी दिया हूं। अम्मा को भी बताया हूं।

रविवार आज मैं घर में हूं। सुबह की बात है मैं बाथरूम में गया रोजाना कमोड के ऊपर वाले रोशनदान की ओर मेरी नजर चली ही जाती है गिलहरी को देखने के लिए। आज देखता हूं कि एक बच्चा जो कुछ बड़ा हो गया है वह जाली से निकल कर बाहर आ गया है और रोशनदान में घूम रहा है। मुझे देखकर वह एक किनारे हो गया। जाली के अंदर जाने की भी कोशि‍श उसने की पर सफल नहीं हुआ। वह वही से दूसरे बाथरूम की ओर चला गया। वहाँ ये नीचे कूद कर वह नाली के भीतर की ओर चला गया। फिर नहीं दिखा कि कैसे और कहां से निकल कर गया। हालाकि मैं कुछ देर तो देखता रहा। वीणा को विश्‍वास था किवह चला जाएगा अपने स्थान पर कहने लगी चिंता मत करो। एक दिन एक कार्यक्रम में विनोद जी से मुलाकात हुई थी तो उनको बताया था कि मेरे यहां गिलहरी ने बच्चे दिए हैं। बिल्ली से बचाना कहा था। अब मिलेंगे तो बताऊंगा कि अब बड़े हो गए बच्चे। पर आज वह बच्चा कहां गया मैं सोच रहा हूं।

मेरे आखेां के सामने निकल कर जाता तो ठीक हो जाता। शाम छह बजे मोनू ने अचानक आकर मुझे और पत्नी को बताया कि गिलहरी का बच्चा बाथरूम से बाहर आकर बरामदे में दरवाजे पर चढ़ रहा है। हमने आकर देखा वह दरवाजे की जाली पर धीरे धीरे चढ़ रहा है और बाहर उसकी मां आ गई है उसे देख रही है। दोनों के बीच उनकी भाषा में बातें हो रही थी। दरवाजे के ऊपर जाकर वह बैठ गया। उसी समय मां भी बाहर से दरवाजे पर चढ़ कर बच्चे के पास पहुंच गई और अपने मुंह में उसे दबाकर लेकर चली गई। वह मां ही हो सकती है उसकी। मुझे चैन मिला चिंता थी कि क्या होगा। सैलूट करता हूं गिलहरी की मां तुमको। मैंने तुरत ही बाथरूम में जाकर जाली का जो भाग खुल गया था जहां से दो बार बच्चे बाहर आ गए था उसे कील से ठीक कर दिया और आश्‍वस्त हो गया कि अब ऐसा नहीं होगा।

आज सुबह जब मैं घूमने के लिए जाने के पहले बाथरूम गया तो रोज की तरह आज भी मेरी नजर रोशनदान की ओर गई। दोनों बच्चे रोशनदान में घूम रहे थे। मुझे देख कर दोनो घास फूस के भीतर घुस कर छिपने लगे। अब वे इतने बड़े हो गए हैं कि क्या होता है देख कर छिपना उन्हें आ गया। एक महीना भी नहीं हुए इन्हें पैदा हुए और इतने ही दिनों में इतनी समझ। ईश्‍वर के यहां इनके लिए सारी व्यवस्था है। यह सोच कर मैं मनन करते हुए घूमने चला गया। दोपहर को खाने के लिए दो बजे आता हूं तो पत्नी ने बताया कि गिलहरी का पूरा परिवार चला गया। देखने तुरत मैं बाथरूम पहुंचा तो देखता हूं जहां घांस फूस का इनका घर बना हुआ था वह स्थान बिलकुल साफ था। कोई तिनका भी वहाँ शेष नहीं था। अब बड़े हसे गए बच्चे तो इन्हें लेकर पेड़ चले गए होंगे उसके मां बाप कि उन्हें उस पर दौड़ना भागना भी तो सिखाना है। मुझे लगा कि मेरी जवाब दारी थी और आज मैंने उसे पूरी कर ली।

आज वीणा ने बताया कि गिलहरी का बच्चा घर के सामने के बाहर निकलने के दरवाजे के सामने बैठा काला जामुन जो पेड़ से गिरा था उसे कुतर कुतर कर खा रहा था और उसके माता पिता कुछ दूरी पर उसकी निगरानी कर रहे थे। एक क्षण तो मैं सुनकर खुशहुआ पर दूसरे क्षण ही सोचने लगा कि दूसरा बच्चा वहाँ क्यों नहीं था पर फिर सोचा कि हो सकता है वह अकेले घूमने दौड़ने में सक्षम हो गया होगा और इसके साथ मां पिता को निगरानी की जरूरत हो गई हो। यह मैंने पत्नी से कहा भी। सामने जब भी निकलता हूं मेरी आंखे उन्हें खोजते रहती है। रोजाना बाथरूम जाते ही रोशनदान की और नजर उठ जाती है ,आदत जैसी हो गई है। ऐसा भी लगता है बच्चों को लेकर कभी दोनो गिलहरी किसी दिन आ जाए उनके जन्म स्थान को दिखाने।

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