अंधेरे को कोसने के बजाय मैंने मिट्टी का एक दीया बनाकर जलाना मुनासिब समझा…खेत पर मेढ और मेढ पर पेड़…जल संरक्षण के इस खास मॉडल ने दिलवाया पद्मश्री सम्मान

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उमाशंकर पांडेय का खेत पर मेढ और मेढ पर पेड़ वाला नुस्खा काम करने लगा. इससे मिट्टी की संरचना और भूजल स्तर में भी काफी सुधार आया. धीरे-धीरे दूसरे किसानों ने भी इस मॉडल को अपना लिया. आज बुंदेलखंड के जखनी गांव ने प्यासी धरती की आस बांध रखी है. इसे भारत के पहले जल ग्राम के नाम से जाते हैं. बांदा जिले से 14 किलोमीटर दूर जखनी गांव भी कभी पानी की कमी की समस्या से जूझ रहा था, लेकिन जब पूरा बुंदेलखंड सूखा है, उस समय जखनी गांव में पानी की कोई कमी नहीं है. यहां के जल स्रोत पानी से भरपूर हैं. इस लक्ष्य को हासिल करने में जलभागीदारी और सामुदायिक पहल का अहम रोल हैं, लेकिन इस काम को मुमकिन बनाने का श्रेय जाता है किसान उमाशंकर पांडेय को, जिन्होंने खेत पप मेढ़ और मेढ़ पर पेड का नारा दिया.

पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उमाशंकर पांडेय ने सबसे पहले अपने खेतों की मेढबंदी की, ताकि वर्षा जल को रोका जा सके और इस पानी को सहेजने के लिए खेत की मेढ पर पेड़ लगाए, क्योंकि पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधकर रखती है, जिससे जल का संचलन आसान हो जाता है.

एक्सपर्ट बताते हैं कि यह कोई नया मॉडल नहीं है, बल्कि पुराने समय से ही चला आ रहा है. पहले समय नें किसान भी खेत की मेढबंदी करके आंवला, नींबू, सहजन और अमरूद के पेड़ लगाते थे, जो पर्यावरण के साथ-साथ जल संरक्षण, खेत और किसानों की कमाई के लिहाज से भी फायदेमंद रहते थे.

यहां 2007 से 2008 के बीच पहली बार धान की फसल लगाई गई, जिससे 500 क्विंटल बासमती और 300 क्विंटल गेहूं की पैदावार मिली. इसका परिणाम यह हुआ कि जो लोग अपने बंजर खेतों को छोड़कर शहरों की तरफ बढ़ रहे थे, वो अब गांव में रहकर ही खेती करने लगे.

सूखाग्रस्त बुंदेलखंड के जखनी गांव से 20,000 क्विंटल गांव में धान की उपज मिली, जिसके बाद जखनी गांव प्रशासन की नजरों में आया. यहां अपनाए जा रहे जल संरक्षण का मॉडल देखकर नीति आयोग ने इसे देश का पहले जलग्राम घोषित कर दिया.

इस गांव में बिना किसी सरकारी मदद के पारंपरिक तरकीबों से जल संरक्षण किया जा रहा है, जो सूखाग्रस्त इलाकों के लिए इंसपायरिंग मॉडल है. आज सूखा से जूझ रहे बुंदेलखंड के बीच जखनी गांव हरियाली से लहलहा रहा है.

जल संरक्षण से किसानी बढ़ी, पलायन रुका
मीडिया रिपोर्ट में जखनी गांव के भागीरथ और पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित उमाशंकर पांडेय बताते हैं कि आज गांव में पानी से हर सुख-सुविधा का रास्ता खुल गया है. जल संरक्षण का प्रमुख उद्देश्य पलायन को रोककर खेती-किसानी को गति देना था.

जल संरक्षण हो गया तो अपने आप ही किसान लौट आए और खेती होने लगी. रिपोर्ट की मानें तो जखनी गांव के आज हर छोटे-बड़े किसान के पास खेती के लिए कृषि उपकरण और ट्रैक्टर है. गांव की महिलाएं भी स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर खुद को सशक्त बना रही.यह सफर यहीं खत्म नहीं होता. जखनी की तर्ज पर आज बुंदेलखंड के दूसरे गांव में भी पेड़ लगाकर जल संरक्षण का काम किया जा रहा है. इस मॉडल के प्रणेता उगाशंकर पांडेय ने आज जखनी की धरती को फिर से खुशहाल बना दिया है.

पद्मश्री से पहले मिल चुके हैं ये सम्मान
भागीरथ किसान उमाशंकर पांडेय का कहना है कि हमेशा अंधेरे को कोसने के बजाय मैंने मिट्टी का एक दीया बनाकर जलाना मुनासिब समझा. मेरे जैसा एक साधारण किसान बस इतना ही कर सकता था. बता दें कि उमाशंकर पांडेय का जखनी की तस्वीर बदलने और दुनिया को जल संरक्षण का एक आसान मॉडल प्रदान करने के लिए कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.

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