स्व सहायता समुह की 15 महिलाएं न सिर्फ कपड़े बेचकर बल्कि केले के रेशों से बास्केट बनाकर भी अच्छी-खासी कमाई कर रही हैं

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समूह की महिलाएं कपड़े बनाकर अपनी रोजी-रोटी चला रही हैं। इससे महिलाएं खुद तो स्वावलंबी हो ही रही हैं और साथ ही आत्मनिर्भर भारत के सपने को भी साकार कर रही हैं।तमिलनाडु के इरुवादी गांव में जब पीर बानो की शादी हुई तो उसे दहेज में सिलाई मशीन भी मिली। एक टेलर परिवार से संबंध रखने वाली पीर बानो के भाई ने उसे उस वक्त सिलाई सिखाई जब वह स्कूल में पढ़ती थी। इस तरह नई-नवेली दुल्हन ने सिलाई करके अपने परिवार की आय बढ़ाने का फैसला किया। अगले कुछ सालों में उसने तीन बच्चों को भी सिलाई सिखाई। उन्हीं दिनों पीर बानो ने श्रीनिवासन सर्विस ट्रस्ट द्वारा चलाए जा रहे बास्केट मेकिंग ट्रेनिंग प्रोग्राम के बारे में सुना। उसे अपनी आय बढ़ाने का यह तरीका उचित लगा। यहां से बास्केट मेकिंग सीखकर पीर बानो ने 2006 में अपने बिस्मी स्व सहायता समुह की शुरुआत की। आज उनके स्व सहायता समुह की 15 महिलाएं न सिर्फ कपड़े बेचकर बल्कि केले के रेशों से बास्केट बनाकर भी अच्छी-खासी कमाई कर रही हैं।

बिस्मी स्व सहायता समुह की कई महिलाओं ने लोन लेकर सिलाई मशीन खरीदी। पीर बानो ने इन महिलाओं को स्कूल यूनिफॉर्म, नाइट ड्रेस और साड़ी ब्लाउज बनाने की ट्रेनिंग दी। उन्होंने अब तक 350 महिलाओं को सिलाई सिखाकर आत्मनिर्भर बनाया है। पीर बानो कहती हैं – ”मैं विधवा और गरीब महिलाओं से सिलाई सिखाने के पैसे नहीं लेती। मेरा यही प्रयास है कि वे अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं और इज्ज्त की जिंदगी जिएं”। इसके अलावा उन्होंने अपने गांव में स्थित आंगनवाड़ी के बच्चों के लिए कुर्सियां खरीदीं। साथ ही वहां पंखे भी लगवाए। बानो यहां साफ-सफाई का भी खास ध्यान रखती हैं।

पीर बानो ने जितनी मेहनत गांव के उत्थान के लिए की है, उतनी ही अपने तीनों बेटों को काबिल बनाने में भी की। उनका सबसे बड़ा बेटा मुंबई में वाटर बोर्ड में इंस्पेक्टर है। उनका दूसरा बेटा मैकेनिकल इंजीनियर है जो इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन में कार्यरत है। वहीं तीसरे बेटे ने अपनी ई कॉमर्स कंपनी की स्थापना की है। वह अपनी मां की बनाई हुई चीजें बेचने में भी मदद करता है।

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