स्वामी विवेकानन्द जब बैलगाड़ी से पहुचे रायपुर..स्वयं का आत्म-साक्षात्कार हुआ…बालक नरेंद्र से बने स्वामी विवेकानंद…

1053

कमलेश यादव,रायपुर:-उठो, जागो और तब तक मत रुको , जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए । स्वामी विवेकानंद के ऐसे कई संदेश आज भी देश और दुनिया के लाखों करोड़ों लोगों को प्रेरणा देते हैं,खासकर युवाओं को । स्वामी विवेकानंद का नाम आते ही एक ऐसे तेजस्वी युवा संन्यासी की छवि मन में उभरती है, जो ज्ञान के अथाह भंडार हैं। स्वामी विवेकानंद की सोच और उनका दर्शन विश्व बंधुत्व की भावना से भरा हुआ था । वो एक ऐसा समाज चाहते थे , जहाँ बड़े से बङा सत्य सामने आ सके. दरअसल विवेकानंद के लिए सच ही उनका देवता था. वो पूरी दुनिया को अपना देश मानते थे ।

1877 ईसवीं को जब 14 साल का किशोर नरेन्द्र नाथ रायपुर आया, तब शायद ही यहां किसी को आभास रहा होगा कि यह नरेन्द्रनाथ भविष्य में स्वामी विवेकानंद के रूप में अपनी वैश्विक पहचान बनाएगा। नरेन्द्र अपने पिता विश्वनाथ दत्त सहित मां भुवनेश्वरी देवी, छोटे भाई महेन्द्र व बहन जोगेन्द्रबाला के साथ रायपुर में करीब दो साल रहे। यह कोलकाता के बाद नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद) का किसी एक स्थान पर व्यतीत किया हुआ सर्वाधिक समय था। असल में उनके पिता विश्वनाथ दत्त पेशे से वकील थे। काम के सिलसिले में ही वे रायपुर आए थे, यहां अधिक समय तक रुकने की वजह से उन्होंने परिवार को भी यहां बुला लिया। वे परिवार समेत रायपुर के बूढ़ापारा में रहे।

विश्वनाथ दत्त रायपुर में अपने मित्र रायबहादुर भूतनाथ डे के घर पर ठहरे थे। यहां कोतवाली चौक से कालीबाड़ी चौक की ओर जाने वाली सडक़ पर बाएं हाथ में डे भवन स्थित है। भवन में स्वामी विवेकानंद से जुड़ी चीजें तो अब नहीं हैं, लेकिन रायबहादुर भूतनाथ डे के पुत्र हरिनाथ डे के संदर्भ में जानकारी देने वाला स्टोन जरूर मौजूद है, जिसमें उनके ३६ भाषाओं के जानकार होने की बात का उल्लेख है। डे भवन से नजदीक ही बूढ़ा तालाब स्थित है। बताते हैं कि रायपुर में रहने के दौरान नरेन्द्र नाथ (स्वामी विवेकानंद) स्नान करने बूढ़ा तालाब ही जाया करते थे, इसलिए ही बूढ़ा तालाब को शासन ने विवेकानंद सरोवर नाम दिया। तालाब के बीच टापू पर स्वामी विवेकानंद की ध्यान मुद्रा में विशालकाय प्रतिमा भी स्थापित की गई है।

सत्य एक ही है . . उस तक पहुंचने के रास्ते अलग अलग हैं, भारत की इस वैदिक परंपरा को वैश्विक पटल पर रखने वाले स्वामी विवेकानंद ,धार्मिक आधार पर एक दूसरे पर श्रेष्ठता की जगह, सार्वभौम धर्म की कल्पना करते थे, और ये कोई अलग धर्म नहीं था बल्कि अपने अपने धर्मों में छिपा वैश्विक भाई चारे का सिद्धांत ही था!

स्वामी विवेकानंद भारत की मिट्टी को अपने लिए सबसे बड़ा स्वर्ग मानते थे । वो मानव सेवा में यकीन रखते थे । वो कहते थे कि वो न राजनेता हैं , न ही राजनीति के आंदोलनकारी । उनका ध्यान बस आत्मा पर होता था । वो मानते थे कि अगर आत्मा ठीक है तो सब ठीक है । 12 जनवरी को देश के महान संत , दार्शनिक और करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानंद की जयंती है ।

(यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हों तो हमें satyadarshanlive@gmail.com लिखें,
या Facebook पर satyadarshanlive.com पर संपर्क करें | आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो भी भेज सकते हैं|)

Live Cricket Live Share Market