प्रॉस्थेटिक पैर के कारण खड़े होने में दिक्कत थी…उसका बैलेंस नहीं बनता, वो बार-बार गिरता…निशाना नहीं लगना, लक्ष्य भटकना सब परेशानी थी… मगर वो हारा नहीं…टोक्यो पैरालिंपिक में निशाना लगाएंगे विवेक

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गोपी साहू:हमारे जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं जो सब कुछ बदल देती है।जिंदगी में अच्छा चलते रहने के बावजूद अचानक हुई हादसा से खुद को उबारना बेहद जरूरी हो जाता है।नदी की निर्मल धारा बगैर संकोच के निरन्तर चलती रहती है ठीक वैसी ही हमारी जिंदगी है।आज की कहानी भी ऐसे युवा की है जिसने एक हादसे से अपना एक पैर गंवाया वह चाहता तो चुपचाप बैठ सकता था लेकिन नही, उन्होंने खेल के क्षेत्र में नए कीर्तिमान रचा है आइये जानते है उनसे जुड़ी हुई कुछ बातें

“ओलिंपिक के बाद अब टोक्यो में 24 अगस्त से पैरालिंपिक शुरू हो रहे हैं। इसमें मेरठ के पैराऑर्चर विवेक भी शामिल होंगे। पूरे देश की निगाहें उन पर टिकी होंगी। 23 अगस्त को वे भारतीय दल के साथ टोक्यो पहुंचेंगे। करोड़ों देशवासियों की उम्मीदों और सपने को पूरा करने के लिए विवेक इन दिनों साईं सेंटर सोनीपत में पैरालिंपिक के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।

विवेक बताते हैं, ‘2017 से पहले मेरी जिंदगी भी सामान्य थी। MBA करने के बाद मैं महिंद्रा कंपनी में जॉब कर रहा था। पैकेज भी अच्छा था, लेकिन 1 जनवरी 2017 को एक बड़ा सड़क हादसा हुआ। नशे में धुत एक ट्रक ड्राइवर ने मेरी बाइक को टक्कर मार दी। मेरी जान तो बच गई, लेकिन डॉक्टर्स को मेरा एक पैर काटना पड़ गया। एक झटके में मेरी पूरी जिंदगी बदल गई थी। प्रॉस्थेटिक (नकली पैरों) पैर ने शरीर को तो सहारा दिया, लेकिन मेरा मन टूट सा गया। एक साल तक इलाज चला। मम्मी-पापा और पूरा परिवार दुखी रहने लगा। लोग बातें बनाने लगे। मैं खुद को खत्म सा मानने लगा था।’

दोबारा जॉब करने की हिम्मत नहीं हुई, गुरु ने दी नई जिंदगी
विवेक कहते हैं कि मुझे मेरे गुरु ने नई जिंदगी दी। बताते हैं, ‘मैं खुद को असहाय मानने लगा था। ऐसे वक्त में मेरे पापा ने मुझसे जॉब करने के लिए पूछा, लेकिन मैंने सोच लिया था कि अब मैं जॉब नहीं करूंगा। मुझे कुछ अलग करना है। लोगों से पहले खुद को जवाब देना है कि मैं बेकार नहीं हूं। पापा मुझे गुरुकुल प्रभात आश्रम ले गए और यहां मुझे नई जिंदगी मिली। मेरे कोच सत्यदेव सर ने मुझे नई पहचान दिलाई और तब हुआ एक नए विवेक का जन्म।’

कोच सत्यदेव ने भी विवेक से जुड़ी इस बात को याद किया। कहते हैं, ‘विवेक से पहली मुलाकात में ही मुझे समझ में आ गया था कि मेरे सामने हीनभावना से ग्रस्त एक युवा खड़ा था। एक बिखरी मिट्‌टी थी जिसे आकार देने की चुनौती थी। उसे आर्चरी का A भी नहीं पता था। मैंने शुरुआती महीना केवल बातें करने में गुजार दिया। दूसरे महीने ट्रेनिंग शुरू कराई तो कह दिया आम खिलाड़ी की तरह अभ्यास कराऊंगा। खुद को पैराप्लेयर मत समझना। इसलिए ट्रेनिंग भी सख्त होगी। सोच लो तुम्हारा मुकाबला आंतनु, प्रवीण जैसे सामान्य प्लेयर्स से है। इन्हें बीट करोगे तभी प्लेयर कहलाओगे।’

खड़े नहीं हो पाते थे, फिर भी हर रोज 8 घंटे कड़ी मेहनत करने लगे
सत्यदेव बताते हैं कि विवेक जैसा शिष्य हर गुरु चाहता है। उसे खेल में मानसिक, शारीरिक दोनों परेशानियां आईं। प्रॉस्थेटिक पैर के कारण खड़े होने में दिक्कत थी। उसका बैलेंस नहीं बनता, वो बार-बार गिरता। निशाना नहीं लगना, लक्ष्य भटकना सब परेशानी थी। मगर वो हारा नहीं।

रोजाना 8 घंटे अभ्यास, योग, व्यायाम, डाइटचार्ट मेंटेन करना आसान नहीं था, लेकिन विवेक ने सब किया। वो टोक्यो में बेस्ट करेगा इसकी उम्मीद है। मुश्किलों से लड़कर बहुत कम समय में विवेक ने आर्चरी की दुनिया में बड़ा मुकाम बनाया है जो बड़ी उपलब्धि है। दो साल के अंदर ही विवेक को नई पहचान मिल गई। वह नेशनल और इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में शामिल होने लगे।”

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