_*सत्यदर्शन साहित्य*_ सत्यदर्शन साहित्य में….आज अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर चर्चित छत्तीसगढ़ बस्तर के युवा हस्ताक्षर *विश्वनाथ देवांगन उर्फ मुस्कुराता बस्तर* जिनकी पंक्तियों में सच्चाई की कड़वी घूंट होती है,गरीबी की ग्राउंड जीरो से पड़ताल और नकाब हटाने वाली अलग सौंधी खुशबू आती है,,,,,,,,,,,,जिसमें पढ़ेंगे हम *पीड़ीत गरीब मजदूर के आड़ में हो रही हाईटेक कलमकारी व्यवसाय के बीच कराहते मजदूर के दर्द की दास्तां को बयां करती पंक्तियां…..* _*मत बहाओ,तुम घड़ियाली आंसू…*_

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_*मत बहाओ,तुम घड़ियाली आंसू..*_
😏😏😏
मेरे पैर हैं लौह मजबूत,
मैं हूं कर्मयोद्धा श्रम देवदूत,
धरा का स्वेद सच्चा सपूत,
तुम फोकट का,,,
न करो उछल कूद,
मैं अब भी,चल रहा हूं धांसू,
मत बहाओ,तुम घड़ियाली आंसू |

जब मैं तेरे घर पर,
भीगकर काम कर रही,
मेरे भीगते बदन देख,
डायरी में मस्त लिख रहा,
मेरी तकलीफ,,,
नहीं दिखी तुझको,
स्वप्न आलिंगन में व्यस्त रहा,
आज क्यों,,,
फिर अचानक,,,
जाग गया है,तेरा वजूद,
तुम कलमकार हो,या टोना जादू,
मत बहाओ,तुम घड़ियाली आंसू |

मर रहा था मैं,,,
तुम फोटो मस्त खींच रहे,
एसी कमरों में बैठे,
डिबेटों में तुम बिक गये,
नीरा पोंगा हो ताबड़तोड़,
राई का पहाड़ लिख रहे,
मेरा दर जा रहा मैं,
तुम फिर भी,,,
करोड़ो में मुझे,
चलते हुए बिक गये,
हमदर्द तुम हो सच मे,
फिर क्यों,,,
नहीं दिखते सतह-नस में,
कहां मर जाती हैं,
तुम्हारी जमीर उर-अंतस में,
हो जाती कहां-क्यों उड़न छू,
मत बहाओ,तुम घड़ियाली आंसू |

मैं शिव का तांडव हूं,
मैं श्रम का अर्गला स्रोत हूं,
मैं गंगाजल सा पावन,
अविरल अखंड ज्योत हूं,
मेरा मजहब श्रम है,
जगोत्थान मेरा धर्म है,
मैं घर जा रही हूं,
हां,मैं भी दर जा रहा हूं,
इश्क लड़ाना,,,,
अब तुम नौकरानी से,
फिर,,कलम चलाना
मेरे पैर के छालों के पानी से,
तुम मेरे मुरीद नहीं,
मैं दीवाली या ईद नहीं,
कब तक,,,,तुम सब,
छोड़ दोगे,
विकास के लिये मुझे,
प्लीज मत बनो,
तुम भी मेरा पीछ लग्गू,
मत बहाओ,तुम घड़ियाली आंसू |
*✍️©®Ⓜ️मुस्कुराता बस्तर🅱️*

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