राजनांदगांव:-आप अपनी समस्याओं से तंग आ चुके है, अपने काम से संतुष्ट नही है, या हर पल उदास रहते है, तो ये खबर आपके लिए है राजनांदगांव रेलवे स्टेशन के पास बैठा दिव्यांग जो जूता पालिश,बैग का चैन बनाते हुए आपको दिख जाएगा यकीन मानो अपने दोनों पैरों को खो जाने के बाद भी वह स्वाभिमानी जीवन जी रहा है। नाम है दिनेश टांडेकर।2010 में जिंदगी ने अजीब सा मजाक किया धनोली मे ट्रेन हादसे से दोनो पैर को गंवाना पड़ा पूरे 2 वर्ष लगे थे खुद को सम्हालने में लेकिन हिम्मत नही हारा और आज अपने खुद के दम पर पूरे परिवार का भरण-पोषण कर रहा है।
दिनेश टांडेकर का कहना है शरीर के किसी अंग के काम करने से जीवन खत्म नही होता सम्भावनाएं तो असीमित है, बस अपने मन की ताकत को जिंदा रखना है, बाकी सब ऊपरवाला तो बैठा ही है, आपके मदद के लिए।अपाहिज इंसान शरीर से नही मन से होता है।लोग क्या सोच रहे है, क्यो सोच रहे है, यह सोचने का अपने दिमाग को समय ही मत दो,अपने काम मे व्यस्त रहो।ईमानदारी से किया हुआ आपका हरेक प्रयास आपको सफलता के करीब पहुचाएगा।
पिताजी खेलचन्द टांडेकर की शिक्षा और माताजी शकुन बाई के प्यार के बदौलत ही प्रेरणा मिली है, कि जिंदगी के उतार-चढ़ाव में कैसे जिंदगी जीया जाता है।दैनिक गुजारा अपने मेहनत के बल पर चल रहा है।8 वी तक पढ़ाई हो पाई है, इसका गम तो है पर जिंदगी ने जो कुछ सिखाया वो भी कम नही है।निम्न वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद आज खुश हूं।और खुशी से बड़ी धन शायद ही किसी के पास होगा।।
रोजाना ट्रेन में सफर करने वाले मुसाफिरो से मुलाकात होती है।बस सभी को यही कहना है कि जिंदगी मिला है किसी न किसी मकसद से उसका सदुपयोग करो।अपने और परिवार के लिए समाज के लिए कुछ अच्छा करो ।इसी अच्छाई का प्रतिफल आपको एक दिन कई गुना बढ़कर मिलेगा।
छोटी-छोटी समस्याओं को देखकर हम और आप परेशान हो जाते हैं, लेकिन हमारे आसपास कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें देखकर हमें अपनी परेशानियां कम लगती हैं।अभी वर्तमान में प्रोस्थेटिक पैर के लिए सरकार से गुहार लगाए हुए है।सत्यदर्शनलाइव भी सरकार और सामाजिक संघठनो से अपील करता है कि जल्द से जल्द दिनेश टांडेकर के लिए प्रोस्थेटिक पैर दिलाने में सहयोग करे।