115 साल से संस्‍कृत व संस्‍कृति के संरक्षण में जुटा यह आश्रम…संस्कृत व वेदों पर शोध के लिए शोध अनुसंधान केंद्र की स्थापना भी की गई है…आश्रम में दुर्लभ ग्रंथों का संकलन भी किया गया है और विराट संस्कृत साहित्य का पुस्तकालय भी बनाया गया है

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आज हम आपको लेके चलते है हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों में,जहा सँस्कृत और संस्कृति दोनों को बचाने का महत्वपूर्ण कार्य चल रहा है।करीब 115 साल से ऊना जिले का धार्मिक स्थल डेरा बाबा रुद्रानंद आश्रम नारी बसाल संस्कृत व संस्कृति के संरक्षण में लगा है। भारतीय संस्कृति व सभ्यता के संरक्षण के मकसद से इस आश्रम में संस्कृत विद्यालय की परिकल्पना को तत्कालीन महंत आत्मानंद महाराज ने 1905 में मूर्त रूप दिया था। वर्तमान में महंत वेदांताचार्य सुग्रीवानंद महाराज भी इस संस्कृत विद्यालय के ही विद्यार्थी रहे हैं। देश में अंग्रेजी हुकूमत के कारण संस्कृत व संस्कृति का पतन हो रहा था। ऐसे में संसाधनों की कमी के बावजूद महंत आत्मानंद महाराज ने इस आश्रम में संस्कृत पाठशाला शुरू की। उस समय पूरे भारत में स्वदेशी के आगे विदेशी परंपरा को भारतीय सभ्यता पर थोपने का काम किया जा रहा था।

संस्कृत व वेदों का अध्ययन करने वाले लोगों के लिए माहौल अनुकूल नहीं था। ऐसे में महंत आत्मानंद महाराज ने वेद पाठशाला का शुभारंभ किया और जो इच्छुक विद्यार्थी थे उन्हें संस्कृत और वेदों का ज्ञान देना शुरू किया। वर्तमान आश्रम संचालक सुग्रीवानंद महाराज ने भी प्रारंभिक शिक्षा यहीं से हासिल की थी। उन्होंने हरिद्वार, काशी व बनारस में भी वेदों और संस्कृत की शिक्षा ग्रहण की।

करीब 20 वर्ष पहले महंत सुग्रीवानंद महाराज ने इस आश्रम में पाठशाला को महाविद्यालय में स्तरोन्नत कर दिया। महाविद्यालय में हिमाचल के अलावा उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व बिहार राज्यों से करीब सौ विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जिसमें उन्हें वेद, शास्त्री व आचार्य की शिक्षा दी जा रही है। महाविद्यालय में पांच आचार्य अध्यापन का कार्य कर रहे हैं।

संस्कृत व वेदों पर शोध के लिए महंत सुग्रीवानंद महाराज के नेतृत्व में शोध अनुसंधान केंद्र की स्थापना भी की गई है। आश्रम में दुर्लभ ग्रंथों का संकलन भी किया गया है और विराट संस्कृत साहित्य का पुस्तकालय भी बनाया गया है। डेरा एवं संस्कृत विद्यालय का सारा खर्च श्रद्धालुओं के सहयोग व दान से ही होता है। आश्रम में 48 कमरे का महाविद्यालय व छात्रावास का निर्माण किया गया है।

महंत सुग्रीवानंद महाराज ने बताया कि परंपरा के अनुसार यहां संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य हो रहा है। बिना सरकारी सहायता के 115 साल से यहां संस्कृत का ज्ञान बांटा जा रहा है।

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