भीषण गर्मी का दौर चल रहा है..बच्चे,बड़े,बुजुर्ग सभी गर्मी से बचने के लिए पंखे,कूलर का सहारा ले रहे है..बदलते वक्त के साथ पंखे से कूलर और कूलर से एयर कंडीशन ने अपना स्थान ले लिया है..याद होगा बचपनें में कूलर के सामने बैठने में कैसे घर मे भाइयो के साथ लड़ाई होता था..एक वो दौर था जब बड़े घरों में सुख सुविधा की चीजें जैसे कूलर वगैरह लगाते थे. समाज भी ऐसे लोगों को इज्जत देता था फिर युग बदला चीजें बदली और कूलर वो बुजुर्ग बन गया जिसे अक्सर एसी मुंह चिढ़ाता है.
हालांकि आज भी पंखा जैसी मूलभूत चीज भी करोड़ों घर में नहीं है.वहां कूलर की जीवनी लिखना सामंतवादी सोच ही मानी जाएगी. लेकिन दिन ब दिन स्थिति में सुधार हो रहा है और पंखा और कूलर पर आज सर्वहारा समाज भी अच्छा खासा हक़ रखता है.अरे ये न सोचिएगा कि देश के आर्थिक विकास ने गरीबों की जेब नोटों से भर दी है और गरीब माना जाने वाला तबका भी गर्मी के दिनों में पंखे और कूलर का सुख ले रहा है.दरअसल ग्लोबल वार्मिंग जैसी चीज ने सूरज महाराज को इतना रुष्ट कर दिया है कि अब वो 40 – 45 डिग्री की गर्मी ऐसे ही हंसी खुशी में बांट देते है.
बेचारा गरीब अब टीन की छत वाले घर में इतनी गर्मी को कैसे रखे तो घर के अंदर जीने के लिए उधार कर्जा मांग कर किसी तरह ये लक्जरियस आइटम जुगाड लेता है. बेचारा कम से कम घर में ही जी ले. बाहर तो वैसे ही बेचारा मर रहा है. तो भैया ये कूलर की जीवनी किसी गरीब की नहीं बल्कि मध्यमवर्गीय घर के कूलर की जीवनी है.महानगरों की मैं नहीं बता सकता लेकिन छोटे शहरों में नब्बे के दशक के शुरुआती वर्षों में फ्रिज, टीवी और कूलर का आगमन हुआ. कुछ भ्रष्टाचार की काली कमाई, कुछ दहेज में झटक कर, कुछ उदारीकरण के कारण,बेटो के नौकरी के कारण, कुछ बाज़ार की बढ़ती ताकत से बढ़ी तनख़ाह के कारण आया.