
सत्यदर्शन काव्य कलश…युवा कवि श्रवण मानिकपुरी द्वारा रचित कविता “मेरी बेटी जो आज है मुझे उस पर नाज है”…
सत्यदर्शन काव्य श्रृंखला में आज युवा कवि श्रवण मानिकपुरी की स्वलिखित कविता..मेरी बेटी जो आज है मुझे उस पर नाज है”..जिसमे बेटियां कैसे दो परिवारों में सेतु का काम करती है..बहुत ही सुंदर और मार्मिक रचना..
मेरी बेटी जो आज है
मुझे उस पर नाज है
महिमा क्या बखान करूँ मैं
बेटी तेरी तूने तो
एक घर छोड़ी,
एक घर जोड़ी
बन गई दुल्हन
चढ़ गई डोली
एक घर सुना
एक घर होली
वाह रे !
तकदीर ये कैसा परवाज है
मेरी बेटी जो आज है
मुझे उसपर नाज है
एक कुल की बेटी
एक कुल की पत्नी
एक कुल की बहन
एक कुल की भाभी
एक कुल की तिजोरी
एक कुल की चाबी
तू ही ममतामयी माँ
तू जगत का सार
तू ही पालनकर्ता
तू ही सृजनहार
कुल की दीपक तू
रिश्तों की सेतु तू
तू ही दो कुलो की लाज है
मेरी बेटी जो आज है
मुझे उस पर नाज है
एक बाप एक ससुर
एक पास एक दूर
एक खुश एक मजबूर दुनिया का है ये कैसा दस्तूर
मैंने ही तुझे जन्म दिया
मैंने ही तुझे पाला
जिस घर में तूने जन्म लिया
उस घर से तुझे निकाला
बेटी मेरी आजा
मेरी यहीआवाज है
मेरी बेटी जो आज है
मुझे उस पर नाज है
“श्रवण मानिकपुरी”
(यदि आपको इस कविता से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हों तो हमें satyadarshanlive@gmail.com लिखें,
या Facebook पर satyadarshanlive.com पर संपर्क करें | आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर और वीडियो 7587482923 व्हाट्सएप में भेज सकते हैं)