कलाकारों का गांव…वह गांव जो आधुनिकता की चकाचौंध में लोक कला को सहेजे हुए है

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कमलेश यादव : मोक्षदायिनी सांकरदाहरा से लगा हुआ खूबसूरत गाँव कोहका जहां की आबोहवा में कला संस्कृति रची बसी हुई हैं।कलाकारों से भरे इस गाँव के लोगों में बस दो ही चीज़ें बसती हैं, आस्था और कला – एक अगर यहां के लोगों के लिए सांस की तरह है तो दूसरी आत्मा है।इनकी कलाकारी और संवाद में प्रवाह इस कदर है कि निभाए गए पात्रों का चरित्र और उनका अभिनयन एकरूप हो जाता है।कहा जाता है कि आजाद भारत से पहले इस भूमि में कई कलाकार जन्म लिए है। एक दौर था जब यहां की रामलीला के लोग दीवाने हुआ करते थे।1970-80 के दशक में चक्रधारी नाच पार्टी ने खूब वाहवाही लूटी।वर्तमान में 100 से भी अधिक कलाकार इस सांस्कृतिक धारा को आगे बढ़ा रहें हैं।आइए जानते है इस गांव से जुड़ी दिलचस्प बातें।

सत्यदर्शन लाइव से बातचीत करते हुए यहां के सरपंच कमलनारायण वैष्णव ने बताया कि इस गांव में कुछ डांसर है,कुछ तबला वादक और कुछ अभिनय कला में निपुण हैं।यहां के निवासी न केवल खुद कला का अभ्यास करते हैं, बल्कि इसका रंग-बिरंगा माहौल उनकी रोजमर्रा की ज़िन्दगी में भी दिखाई पड़ता है।यहां हर कोने में कला का आभास होता है।

बुजुर्ग कलाकारों की अदुभुत टोली आज भी नई पीढ़ी को संवाद से लेकर भाव-भंगिमा तक की बारीकियां बताते हैं। बिसौहाराम कुंभकार,बालमुकुंद कुंभकार, पुसू यादव,दिलीप कुमार कुंभकार जैसे ख्यातिलब्ध कलाकारो ने इसका बीड़ा उठाया हैं।

गांववालों ने बताया कि कला की नींव रखने वाले प्रथम शख्स स्व.बिहारी दास वैष्णव जी (दाऊ) थे।एक जमाने मे इनका घर “नाटक परछी/नाटक खोली”के रूप में प्रसिद्ध था।पूरे कलाकार यहां अभ्यास किया करते थे।चंदैनी गोन्दा,रामायण और रामलीला से जुड़े कलाकार यहां की समृद्ध संस्कृति की परिचायक हैं।स्व.नम्मु राम चक्रधारी,स्व.जयलाल चक्रधारी,स्व.भजन चक्रधारी,स्व. ओंकार चक्रधारी,राधेलाल चक्रधारी,बोधिराम चक्रधारी,चैतराम चक्रधारी,मुरारी दास जी जैसे कलाकारों से सजी बगिया से खुशबू बिखेर रही हैं।

गाँव के वरिष्ठ कलाकारों द्वारा खुशी व्यक्त करते हुए बताया गया कि नवोदित कलाकारों को मंच प्रदान करने के लिए गोविंद साव द्वारा “खुमान साव संगीत अकादमी” की स्थापना की गई है।जो कि आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक होगी।

गाँव के कलाकारों ने न केवल अपनी कला को बच्चों तक पहुंचाया, बल्कि उन्होंने गाँव को सांस्कृतिक धरोहर के साथ एक नया आधार दिया हैं।इससे गाँव का नाम कला के क्षेत्र में ऊँचा हो गया और यह सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक बन गया हैं।गाँववालों ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सजीव बनाए रखने के लिए इस संस्कृति को अपना एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना।

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