छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सातवें प्रांतीय सम्मेलन का समापन…..सम्मेलन में 500 से अधिक साहित्यकारों ने लिया हिस्सा

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*छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा के प्रोत्साहन से छत्तीसगढ़ी भाषा को मिला सम्मान : मंत्री डॉ. डहरिया*
*छत्तीसगढ़ी साहित्य और लोकभाखा की अनुपम प्रस्तुति ने किया मंत्रमुग्ध

रायपुर…नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया ने कहा कि राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए राजभाषा आयोग की स्थापना की है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व मंे राज्य सरकार प्रदेश के खान-पान, रहन-सहन, पहनावा व तीज त्यौहारों के संरक्षण एवं सवंर्धन के बेहतर काम कर रही है। राज्य सरकार ने विलुप्त हो रही संस्कृति एवं परंपरा को पुनर्स्थापित करने का काम किया। छत्तीसगढ़िया लोगों को सम्मान दिलाया है। आयोग का उद्देश्य सार्थक हो रहा है। मंत्री डॉ. डहरिया आज राजभाषा आयोग द्वारा राजधानी रायपुर स्थित एक निजी होटल में आयोजित दो दिवसीय सातवें प्रातीय सम्मेलन के समापन समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा आयोजित दो दिवसीय सातवें प्रांतीय सम्मेलन का समापन हुआ।

मंत्री डॉ. डहरिया ने कंहा कि हमारी सरकार ने छत्त्तीसगढ़ महतारी का छायाचित्र तैयार कर छत्तीसगढ़ को सम्मान दिलाने का काम किया है, वहीं छत्तीसगढ़ के राज्यगीत, राजकीय गमछा ने प्रदेश और देश में एक अलग स्थान बनाया है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में प्रतिभा की कमी नहीं है, ऐसे प्रतिभाओं को अवसर मिलने से राज्य की एक अलग पहचान बनेगी।

संसदीय सचिव श्री कुंवर सिंह निषाद ने कहा कि देश में लगभग 1652 प्रकार की मातृभाषा हैं। अपने-अपने राज्य की अलग-अलग बोली-भाषा है। सभी को अपने मातृभाषा पर गर्व होता है। हमारी छत्तीसगढ़ी बोली-भाखा गुरतुर और मिठास है। हम सबको अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए। श्री निषाद ने लोगों को अपने दैनिक जीवन में छत्तीसगढी भाषा के उपयोग पर बल दिया। उन्होंने छत्तीसगढ़ी गीतों और हाना के जरिए पुरखों की समृद्ध मातृभाषा छत्तीसगढ़ी बोली का महत्व बताया।

प्रांतीय सम्मेलन को छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सचिव डॉ. अनिल भतपहरी ने  सम्बोधित करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की दिशा में प्रयास जारी है। छत्तीसगढ़ी भाषा का मानकी करण किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की घोषणा पर छत्तीसगढ़ी को राज्य के पहली से पांचवी तक स्कूलों में पाठ्यक्रम में शामिल करने की प्रक्रिया चल रही है। बस्तर और सरगुजा सभांग में भी स्थानीय बोलियों को पाठ्यक्रम में शामिल करने की कार्यवाही जारी है।

मंत्री डॉ. डहरिया ने इस दौरान साहित्यकार एवं भाषाविद् डॉ. सुरेश शर्मा द्वारा लिखित पुस्तक ‘बाबा गुरू घासीदास चरित‘, श्री बलदेव साहू द्वारा लिखित ‘मेचका राजा-मछली रानी‘, श्रीमती उर्मिला शुक्ला द्वारा लिखित पुस्तक ‘देहरी‘, श्री भुवन दास कोसरिया द्वारा लिखित ‘सतनाम वृतांत‘, श्री प्रेमदास टण्डन द्वारा लिखित पुस्तक ‘सुन भैरा‘, डॉ. मणिमनेश्वर ध्येय द्वारा लिखित ‘अछूत अभागन‘, श्री बोधन राम निषाद द्वारा लिखित पुस्तक ‘आलहा छंद जीवनी‘, श्री कन्हैया लाल बारले द्वारा लिखित ‘दू गज जमीन‘, डॉ. नीलकंठ देवांगन द्वारा लिखित ‘सोनहा भुइंया‘, श्री बद्री पारकर द्वारा लिखित ‘बिसरे दिन के सुरता‘, श्री चोवाराम द्वारा लिखित ‘मैं गांव के गुढ़ी अव‘, तारिका वैष्णव द्वारा लिखित ‘बनगे तोर बिगड़गे‘, श्री कृष्ण कुमार साहू द्वारा लिखित ‘छत्तीसगढ़ दर्शन‘, रंजीता चक्रवती द्वारा लिखित ‘लड़की के सपना‘, वंदना त्रिवेदी द्वारा लिखित छत्तीसगढ़ी में ‘रामायण के सातों काण्ड‘, श्री बालकृष्ण गुप्ता एवं श्री पी.सी. लाल द्वारा लिखित ‘गुरू ज्ञान‘ और डॉ. अनिल भतपहरी द्वारा लिखित ‘सुकवा उवे न मंदरस झरे‘  काव्य संग्रह का विमोचन किया।

सम्मेलन में छत्रपति शिवाजी महाविद्यालय के कुलपति डॉ. केसरी लाल वर्मा, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय पाठक, वरिष्ठ साहित्यकार एवं भाषाविद् श्री परदेशीराम वर्मा सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार और जिला समन्वयक उपस्थित थे। सभी कार्यक्रम छत्तीसगढ़ी भाषा एंव साहित्य पर केन्द्रित आठ सत्र मे विभाजित था। पाठ्यक्रम म छत्तीसगढ़ी, राज बने के बाद छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य म नवाचार और देर रात तक कवि सम्मेलन अनवरत चलते रहा ।

दूसरे दिन राज बनने के बाद महिला साहित्यकारों की रचनाओं पर बेहतरीन प्रस्तुति हुई। सत्राध्यक्ष डा शैल शर्मा विभागाध्यक्ष भाषा विज्ञान अध्ययन शाला पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर सह सत्राध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार सरला शर्मा, संचालन शोभा मोहन श्रीवास्तव, प्रतिभागी सौरिन चंद्रसेन, कुसुम माधुरी टोप्पो, तृषा शर्मा, हंसा शुक्ल, संध्यारानी थी। श्रीमती सुषमा प्रेमलाल पटेल ने भी अपनी छत्तीसगढ़ी छंद काव्य और सुमधुर पंक्तियों से साहित्यकारों को ताली बजाने पर मजबूर कर दिया। जिन्होने स्त्रियों की समाज को प्रदेय उनके संघर्ष, त्याग आदर्शाे को गहराई से विश्लेषण कर मूल्यांकन किया गया। छठवां सत्र लोक साहित्य पर परिचर्चा में समृद्ध लोक कथा, लोक गीत, भजन गाथा, हाना, पहेली पर विचार विस्तार से चर्चा की गई। साथ ही वर्तमान लेखन पर लोक साहित्य का कैसा प्रभाव है उन पर भी चर्चा हुई। सत्राध्यक्ष वरिष्ठ कथाकार परदेशीराम वर्मा, डॉ. जे. आर. सोनी, संचालन सुमन शर्मा, अरुण निगम, डा. राजन यादव, कुसुम माधुरी टोप्पो कुडुख सरगुजा, सुरेश जायसवाल, विक्रम सोनी हल्बी गोडी बस्तर, शकुन्तला तरार, डुमनलाल धु्रव थे। भोजनो परांत छत्तीसगढ़ी में शास्त्रीय गायन प्रस्तुत कर के कलावंत कृष्ण कुमार पाटिल जी उपस्थित सभी रचनाकारों को मंत्रमुग्ध कर दिये।

सातवां सत्र छत्तीसगढ़ी म नवा पीढ़ी जेमा प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया खासकर सोशल मीडिया, साहित्यकार पत्रकार एंव युट्यबर क्षेत्र के चर्चित युवा प्रतिनिधियो छत्तीसगढ़ी एम ए छात्रों प्रतियोगी परिक्षाओ मे छत्तीसगढ़ी की शानदार प्रस्तुति हुई। सत्राध्यक्ष थे गीतेश अमरोहित, सह सत्राध्यक्ष वैभव बेमेतरिहा संचालन संजीव साहू ने किया प्रतिभागी थे तृप्ति सोनी, चंद्रहास  साहू, जितेन्द्र खैरझिटिया, डा विवेक तिवारी, दामिनी बंजारे एंव भूमिका साहा अंतिम आठवां सत्र काव्यपाठ के सत्राध्यक्ष रामेश्वर वैष्णव एंव सह सत्राध्यक्ष रामेश्वर शर्मा संचालक आत्माराम कोसा विवेक तिवारी के संचालन में 50 से अधिक कवियों/कवयित्रियों देर रात तक शानदार प्रस्तुतियां दी। सभी सत्राध्यक्ष, संचालक व प्रतिभागियों को मया चिन्हारी एंव सहभागिता प्रमाण पत्र डा केशरीलाल वर्मा कुलपति छत्रपति शिवाजी महाराज मुंबई के कर कमलों से सम्मानित कर दो दिवसीय 500 साहित्यकारों की विराट समागम का शानदार सामूहिक रुप से भोजली गीत गाकर किया गया –
नानकुन हसिया के जरहा हे बेठ
जीयत- जागत रहिबोन भोजली होई जाही भेंट ।
अहो देबी गंगा …

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