कमलेश यादव :कुछ दिन पहले मैंने एक महिला डॉक्टर के बारे में पढ़ा।हालाँकि अब वह हमारे बीच नहीं हैं। उनकी जीवनी पढ़कर मैं इतना प्रेरित हुआ कि मैंने अपने प्रिय पाठकों को इंदौर की डॉ. भक्ति यादव के बारे में बताने का विचार किया।
1952 में उन्हें एमबीबीएस की डिग्री हासिल हुई। उन्होंने कई जगह नौकरी की और बाद में वात्सल्य के नाम से घर पर ही नार्सिंग होम खोलकर मरीजों की जांच शुरू की। संपन्न परिवार के मरीजों से भी वह नाम मात्र की फीस लेती थीं और गरीब मरीजों का इलाज तो मुफ्त में किया करती थीं। भक्ति यादव डॉक्टर दादी के नाम से प्रसिद्ध थीं। वर्ष 2011 में उन्हें निःशुल्क चिकित्सा सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जिसके कुछ समय बाद 91 वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया। 64 साल के अपने करियर में डॉक्टर दादी ने एक लाख से ज्यादा प्रसव कराए।
भक्ति यादव का जन्म 3 अप्रैल 1926 को उज्जैन के पास महिदपुर में हुआ। 1937 में जब लड़कियों का पढ़ना समाज में बुरा माना जाता था, तब भक्ति ने पढ़ने की इच्छा जाहिर की। उनकी इस जिद के चलते उनके पिता ने उन्हें पढ़ने के लिए स्कूल भेजा। वहां से एक ऐसे सफर की शुरुआत हुई, जो उनकी सांसों के साथ ही खत्म हुआ। स्कूली पढ़ाई के बाद उन्होंने कॉलेज में दाखिला लिया। एमजीएम मेडिकल कॉलेज में वह एमबीबीएस कोर्स के पहले बैच की पहली महिला छात्रा थीं।
लालटेन की रोशनी में करवाई थी डिलेवरी
– उस दौर में आज की तरह संसाधन और बिजली नहीं थी। कई बार ऐसे हालात बने कि उन्हें बिजली के बगैर डिलेवरी करवानी पड़ी। ऐसे में मोमबत्ती और लालटेन का सहारा लेना पड़ता था।
– भक्ति ने 64 साल के करियर में एक लाख से ज्यादा डिलेवरी करवाईं। सरकार ने इस उपलब्धि के लिए उन्हें पद्मश्री से नवाजा था। उनकी आखिरी इच्छा सांस छूटने तक काम करने की थी। इसीलिए बीमार रहने के बाद भी मरीजों को देखती थीं।”