मानसून विशेष…एक क्षेत्र में चलने वाली हवाओं की दिशा में मौसमी परिवर्तन को मानसून कहते हैं…अब भी हमारे देश में 70% से 80% किसान सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर हैं

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भारतीय मौसम विभाग ने 8 जून को खुशखबरी दी कि मानसून ने केरल में दस्तक दे दी है।हालांकि चक्रवात बिपरजॉय से दो-तीन दिन तक इसकी तीव्रता धीमी पड़ने की संभावना है। इसके बाद मानसून फिर रफ्तार पकड़ेगा।आइए जानते है मानसून से जुड़ी कुछ खास बातें

1. मानसून क्या होता है और ये नाम कैसे पड़ा?
कालीदास ने अपनी रचना ‘मेघदूत’ में एक पंक्ति लिखी…
आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानु
वप्रक्रीडापरिणत गजप्रेक्षणीयं ददर्श।।
इसका अर्थ हुआ कि आषाढ़ मास के पहले दिन पहाड़ों की चोटी पर झुके हुए मेघ को विरही यक्ष ने देखा तो उसे लगा मानो जैसे एक हाथी अपनी धुन में झूम रहा हो।आषाढ़ यानी जून को बारिश वाला महीना भी कहते हैं। आज से 1700 साल पहले मेघदूत लिखे जाने के समय भी कुछ फिक्स महीनों में बारिश होती थी। आज भी ऐसा ही होता है। इसी खास भौगोलिक घटना को मानसून कहते हैं।

मानसून अरबी शब्द ‘मौसिम’ से आया है। इसी मौसिम से हिंदी का शब्द मौसम बना है। अरबी भाषा में मौसिम का अर्थ ऋतु या सीजन होता है।आम बोलचाल की भाषा में भारी बारिश को मानसून कहते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों ने इसे अपने तरीके से समझाया है। मानसून का साइंटिफिक डेफिनिशन यह है कि ‘मौसम बदलने से हवाओं की दिशा बदलना और बारिश इन्हीं हवाओं के दिशा बदलने का नतीजा है।’

इसे ऐसे भी समझ सकते हैं- एक क्षेत्र में चलने वाली हवाओं की दिशा में मौसमी परिवर्तन को मानसून कहते हैं। इस वजह से कई बार बारिश भी होती है या कई बार गर्म हवाएं भी चलती हैं।भारत के संदर्भ में देखा जाए तो हिंद महासागर और अरब सागर से ये हवाएं भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आती हैं। ये हवाएं ठंडे से गर्म क्षेत्रों की तरफ बढ़ते हुए अपने साथ पानी वाले बादल भी लाती हैं, जो भारत के साथ-साथ पाकिस्तान, अफगानिस्तान में भी बारिश करवाते हैं। भारत में जून से सितंबर तक मानसूनी हवाएं चलती रहती हैं।

2. मानसून के दिनों में हवाएं बारिश कैसे लाती हैं?
धरती पर ज्यादातर गर्मी सूरज से आती है, लेकिन सूरज की किरणें सभी जगह एक समान नहीं, बल्कि अलग-अलग पड़ती हैं। समुद्र के पानी की तुलना में सूर्य की किरणों से धरती जल्दी गर्म होती है। ऐसा धरती और समुद्र की प्रॉपर्टी की वजह से होता है। इसे ही फिजिक्स में ‘स्पेसिफिक हीट कैपेसिटी’ कहते हैं।

जून के महीने में सूरज की किरणें उत्तरी गोलार्ध यानी धरती के ऊपरी हिस्से पर पड़ती हैं। इस वजह से धूप तेज पड़ती है और धरती काफी गर्म हो जाती है, लेकिन समुद्र इसकी अपेक्षा ठंडा रह जाता है।इससे समुद्र के ऊपर का वातावरण बदलने लगता है। जहां हवा गर्म होती है, वहां कम प्रेशर होता है। जहां हवा ठंडी होती है, वहां प्रेशर ज्यादा होता है। इस प्रेशर डिफरेंस की वजह से ही हवा बहती है। इसी वजह से हवा ज्यादा प्रेशर वाले समुद्र से कम प्रेशर वाली धरती की ओर बहती है।गर्मी में समुद्र का पानी भाप बनकर वायुमंडल में जमा होता है। फिर हाई प्रेशर वाली हवा इसे अपने साथ धरती की ओर ले जाती है, जहां नमी भरी हवा के लंबे पेड़ों या पहाड़ों से टकराने से बारिश होती है।

3. भारत में मानसून कैसे आता है?
भारत में ये हवाएं 2 दिशाओं से आती हैं। दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण-पूर्व। ऐसे में भारत में केरल के तट से टकराने के बाद मानसून दो तरफ से देश में प्रवेश करता है।

पहला : अरब सागर से होकर चलने वाला मानसून केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, UP और बिहार जैसे राज्यों में बारिश कराता है। इसे दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहते हैं।

दूसरा : बंगाल की खाड़ी से होकर चलने वाला मानसून तमिलनाडु, ओडिशा से होते हुए नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में बारिश कराते हुए बांग्लादेश की ओर निकल जाता है। इसे दक्षिण-पूर्व मानसून कहते हैं।

4. केरल में तो मानसून आ गया, देश के अन्य हिस्सों में कब तक पहुंचेगा?
केरल में मानसून के थोड़ी देरी से पहुंचने का मतलब यह नहीं है कि मानसून देश के अन्य हिस्सों में भी देरी से पहुंचेगा। साथ ही मानसून का देर से आने का यह मतलब नहीं है कि कम बारिश होगी।

मौसम वैज्ञानिक डीपी दुबे ने बताया कि केरल में मानसून आ गया है। अरब सागर में एक स्ट्रॉन्ग वेदर सिस्टम बन रहा है। यह मानसून के लिए अच्छा संकेत हैं। यह 13-14 जून तक गुजरात पहुंच जाएगा। इसकी वजह से मध्यप्रदेश में 13 से 15 जून तक प्री मानसून एक्टिविटी होगी। गुजरात में अगर यह सिस्टम बना रहा तो 19 जून तक मध्यप्रदेश में मानसून छा जाएगा।

5. मौसम विभाग किस आधार पर घोषणा करता है कि मानसून आ गया?
मौटे तौर पर देश में मानसून आने की घोषणा तब की जाती है जब केरल, लक्षद्वीप और कर्नाटक में मानसून की शुरुआत की घोषणा करने वाले 8 स्टेशनों में लगातार दो दिनों तक कम से कम 2.5 मिमी बारिश हो। ज्यादा डिटेल में जाएं तो मौसम विभाग मानसून आने की घोषणा तीन आधार पर करता है…

10 मई के बाद राज्य के मानूसन की शुरुआत की घोषणा की निगरानी करने वाले 14 स्टेशनों- मिनिकॉय, अमिनी, तिरुवनंतपुरम, पुनालुर, कोल्लम, अल्लापुझा, कोट्टायम, कोच्चि, त्रिशूर, कोझीकोड, थालास्सेरी, कन्नूर, कुडुलु और मैंगलोर- में से 60% स्टेशनों में लगातार दो दिन कम से कम 2.5 मिमी बारिश हो।
हवा का बहाव पछुआ (दक्षिण-पश्चिम) हो।
आउटगोइंग लॉन्ग रेडिएशन, यानी OLR कम हो। OLR का मतलब वायुमंडल द्वारा उत्सर्जित स्पेस में जाने वाला कुल रेडिएशन है या इसका मतलब है कि बादल कितने घने हैं।

6. क्या मानसून से सिर्फ भारत में ही बारिश होती है?
नहीं। दुनिया की करीब 60% आबादी मानसून से होने वाली बारिश वाले इलाकों में रहती है। इसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका जैसे महाद्वीप भी शामिल हैं।भारत में भी जो मानूसन आता है उससे केवल भारत ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार समेत पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में बारिश होती है।

7. बारिश को आखिर मापते कैसे हैं?
1662 में क्रिस्टोफर व्रेन ने ब्रिटेन में पहला रेन गॉग बनाया था। यह एक बीकर या ट्यूब के आकार का होता है जिसमें रीडिंग स्केल लगा होता है। इस बीकर पर एक फनल होती है, जिससे बारिश का पानी इकट्ठा होकर बीकर में आता है।बीकर में पानी की मात्रा को नापकर ही कितनी बारिश हुई है ये पता लगाया जाता है। ज्यादातर रेन गॉग में बारिश मिलीमीटर में मापी जाती है।मानसून या मौसम से जुड़ी जानकारी के लिए आप मौसम विभाग की वेबसाइट https://mausam.imd.gov.in को चेक कर सकते हैं।

इसके साथ ही मेघदूत, दामिनी, उमंग और रेन अलार्म जैसे ऐप पर भी आप मौसम की जानकारी चेक कर सकते हैं। मौसम विभाग ने किसानों को SMS अलर्ट की सुविधा भी दी है।

8. मानसून की गलत घोषणा से क्या नुकसान?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि मानसून की गलत घोषणा से किसानों में असमंजस होता है। अब भी हमारे देश में 70% से 80% किसान सिंचाई के लिए बारिश के पानी पर निर्भर हैं। यानी खरीफ की खेती केवल मानसून की बारिश पर ही निर्भर होती है।ऐसे में गलत घोषणा से किसानों को नुकसान हो सकता है। उदाहरण के लिए यदि किसान अनुमान के हिसाब से बुआई कर लिए और बारिश नहीं हुई तो फिर से बुआई काफी महंगी पड़ती है।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि मानसून के आने की घोषणा करना एक मुश्किल काम हो सकता है, क्योंकि कई जगह बारिश एकदम सीमा पर हुई होती है।हालांकि मानसून की शुरुआत के क्राइटेरिया को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे भारत में रिसर्च और खेती की योजनाओं पर असर पड़ सकता है।

9. क्या क्लाइमेंट चेंज की वजह से मानसून पर भी असर पड़ा है?
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की छठी रिपोर्ट AR-6 में साउथ एशिया और खासकर भारत में बारिश की अनियमितता को लेकर चेतावनी दी गई है।पिछले कुछ सालों में खासकर 2022 में भारत में मानसूनी बारिश में काफी एक्स्ट्रीम घटनाएं देखने को मिली हैं। इस दौरान बाढ़ और सूखे की घटनाओं में वृद्धि के खतरनाक मामले सामने आए।

डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन का असर अब मानसून और मौसम पर पड़ रहा है। ऐसे कई कारक हैं, जो भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून या मौसम को प्रभावित करते हैं।भारत में जून से सितंबर के बीच होने वाली मानसूनी बारिश में पिछले 50 सालों में लगभग 6% की गिरावट आई है। गंगा के उपजाऊ मैदानी इलाकों और पश्चिमी घाटों में बारिश की कमी ज्यादा देखी गई है।

केमिस्ट्री के क्लॉसियस-क्लैपेरॉन नियम के मुताबिक, हर डिग्री बढ़ते तापमान के लिए हवा की नमी सोखने की क्षमता 7% बढ़ जाती है। यही वजह है कि ग्रीनहाउस गैसों से गर्मी के कारण नमी की अधिकता से ज्यादा बारिश की स्थिति भी बन गई, जो खतरनाक है।

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