कमलेश यादव:छत्तीसगढ़ की माटी ने असंख्य रत्नों को जन्म दिया है उन्ही रत्नों में से एक है वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल जिन्हें पेन अमेरिकन लिटरेरी अवॉर्ड से नवाजा जाएगा।यह सम्मान लेने वाले हिंदी भाषा के वह पहले भारतीय होंगे।उन्होंने ताउम्र साहित्य साधना की और करोड़ो पाठकों के दिलों में अपनी खास जगह बनाई हैं।2 मार्च 2023 को पूरे भारत के लिए गर्व का दिन होगा जब यह सम्मान को भी सम्मानित होने का मौका मिलेगा।उम्र 87 वर्ष आंखों में चश्मा और चेहरे में रूहानी तेज लिए आज भी वह लेखन के क्षेत्र में सक्रिय है।विश्व साहित्य के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
संस्कारधानी राजनांदगाँव की वो स्वर्णिम सुबह 1 जनवरी 1937 जब विनोद शुक्ल जी का जन्म हुआ था।बचपन से ही वे मेधावी रहे है।उनकी कविताओं और उपन्यासों में छत्तीसगढ़ी संस्कृति की भीनी-भीनी खुशबू मिलती है।वर्तमान में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहते है।उन्हें कभी प्रसिद्धि की चाह नही थी केवल निरंतर कार्य करते रहना मूलमंत्र रहा है।वे आज पूरे भारत के जाने माने हिंदी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार है।
कई रचनाएं हुईं प्रकाशित
पिछले 50 सालों में उनकी कई काव्य रचना, कई उपन्यास प्रकाशित हुए हैं. उनमें ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में खिड़की रहती थी’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘लगभग जय हिंद’ ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’ ‘ कविता से लंबी कविता ‘ ‘पचास कविताएँ’ ‘कभी के बाद अभी’ जैसे कई नाम शामिल हैं।उन्होंने समकालीन हिंदी कविता को अपने मौलिक कृतित्व से सम्पन्नतर बनाया है और इसके लिए वे पूरे भारतीय काव्य परिदृश्य में अलग से पहचाने जाते हैं।
साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल अब 87 साल के हो चुके हैं. आज भी उनकी उम्र उनके प्रिय कार्य में बाधा नहीं बन रही.लेकिन कुछ साल पहले आए स्ट्रोक के कारण उनकी शारीरिक स्थित उतना साथ नहीं देती जितना पहले दिया करती थी. फिर भी वो अपने किताबों की दुनिया में खोए रहते हैं. आंखें कमजोर हो चली हैं लेकिन मन में उठे भावों को अपने परिवार के माध्यम से वो कंम्प्यूटर पर अंकित करवाते हैं.ताकि उनका नजरिया दुनिया के सामने आ सके.