गोपी साहू:किसी ने ठीक ही कहा है “नई चीज सीखने का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आप पुरानी चीजों को भूल जाएं। जिंदगी संतुलन के सिद्धांत पर कार्य करती है न किसी की कमी न अधिकता।आज के दौर में टेक्नोलॉजी के ऊपर निर्भरता बढ़ते जा रही है।छोटी सी छोटी चीज की जानकारी के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा रहा है।आज हम बात करेंगे ऐसे गांव के बारे में जहा शाम के वक्त डेढ़ घण्टे टीवी मोबाइल बन्द करने का नियम बनाया गया है जिसकी तारीफ चारो तरफ हो रही है।
महाराष्ट्र के सांगली ज़िले का एक गांव. नाम है वडगांव. यहां रोजाना शाम सात बजे एक सायरन बजता है. सायरन की गूंज गांव वालों के लिए संकेत है कि वे अपने मोबाइल और टीवी सेट बंद कर दें.डेढ़ घंटे बाद यानी साढ़े आठ बजे पंचायत का सायरन फिर बजता है. गांव के लोग ‘लत’ समझे जाने वाले मोबाइल और टीवी सेट दोबारा चालू कर सकते हैं.
ग्राम प्रधान विजय मोहिते ने मीडिया को बताया, “हमने स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले यानी 14 अगस्त को यह फ़ैसला किया कि हमें इस लत पर अब लगाम लगाने की ज़रूरत है.”उन्होंने बताया, “इसके बाद गांव में सायरन बजते ही टेलीविज़न सेट और मोबाइल बंद होने लगे.”
वडगांव की आबादी करीब तीन हज़ार है. गांव में ज़्यादातर लोग खेती से जुड़े हैं या फिर शुगर मिल में काम करते हैं.विजय मोहिते ने बताया कि कोविड के दौरान बच्चे टीवी और ऑनलाइन क्लास के लिए मोबाइल फ़ोन पर आश्रित हो गए थे. इस साल जब स्कूल खुले तो बच्चे स्कूल जाने लगे.
वे कहते हैं, “बच्चे रेगुलर क्लास में तो जाने लगे लेकिन एक बड़ी दिक्कत दिखने लगी. स्कूल से लौटते ही वो या तो मोबाइल फ़ोन लेकर बैठ जाते थे या टीवी देखने लग जाते थे. बच्चे ही नहीं बड़े भी मोबाइल में मशगूल हो जाते थे. उनके बीच बातचीत का सिलसिला भी खत्म होता जा रहा था.”
गांव में ही रहने वाली वंदना मोहिते ने कहा कि उन्हें अपने दो बच्चों को संभालना मुश्किल हो रहा था. वह कहती हैं, “दोनों बच्चे या तो पूरी तरह फ़ोन में लगे रहते थे या टीवी देखते रहते थे.”वे कहती हैं, “लेकिन गांव में जब से नया नियम शुरू हुआ है तब से मेरे पति के लिए काम से लौट कर बच्चों को पढ़ाई कराना आसान हो गया है. अब मैं भी शांति से किचन में काम कर पाती हूं.”
कितना मुश्किल था ये फ़ैसला लागू करवाना?
पंचायत के लिए गांव वालों को मोबाइल और टीवी सेट से दूर रहने यानी डिजिटल डिटॉक्स के लिए राजी करना इतना आसान नहीं था. विजय मोहिते बताते हैं कि पंचायत ने जब पहली बार गांवों वालों के सामने ये आइडिया रखा तो पुरुषों ने तो इसे हंसी में उड़ा दिया.
फिर पंचायत के लोगों ने गांव की महिलाओं को इकट्ठा किया. महिलाएं तो ये मान रही थीं कि ऐसा ही चलता रहा तो वो बहुत ज्यादा टीवी सीरियल देखने की आदी बन सकती हैं.वो इस बात के लिए राजी थीं कि पूरे गांव वालों को कुछ घंटों को लिए मोबाइल और टीवी सेट स्विच ऑफ कर देना चाहिए.
इसके बाद पंचायत की एक और बैठक हुई और इसमें फैसला किया गया कि गांव के मंदिर के ऊपर एक सायरन लगाया जाए.विजय मोहिते बताते हैं, “इस फ़ैसले को लागू करना आसान नहीं था. जैसे ही सायरन बजता था पंचायत के सदस्यों और ग्रामीणों के समूहों को गांव में चक्कर लगा कर लोगों से कहना पड़ता था कि भाई अब मोबाइल और टीवी बंद कर दो.”
लेकिन क्या थोड़ी देर के लिए टीवी या फ़ोन बंद करने से ‘डिजिटल डिटॉक्स’ हो सकता है? क्या इससे टीवी या मोबाइल देखते रहने की ‘लत’ से छुटकारा मिल सकता है?इस सवाल के जवाब में निमहांस में क्लीनिकल साइकोलॉजी कहते हैं, “कोविड ने ऑनलाइन गतिविधियों या मोबाइल पर बिताये जाने वाले वक़्त को बढ़ा दिया है.”इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से यह सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक बन कर उभरा है.
स्टडी के नतीजे में कहा गया है, “इंटरनेट के बहुत ज़्यादा ग़ैर उत्पादक इस्तेमाल बढ़ने से प्रॉब्लमेटिक यूज बढ़ने का जोखिम बढ़ जाता है, जो मानसिक तनाव की वजह बन सकता है. किशोर-किशोरियों की ज़िंदगी के कई पहलुओं को ये नुकसान पहुंचा सकता है.”
स्टडी में ये भी कहा गया है कि मानसिक तनाव की प्रवृति वाले किशोर-किशोरियां या ऐसा महसूस करने वाले इंटरनेट की ओर मुखातिब हो सकते हैं. वे इसे परेशानी पैदा करने वाले किसी भावनात्मक हालात से दूर रहने या बचने के लिए इस्तेमाल करते हैं.इसमें बताया गया है कि इस वजह से ये लोगों से मिलने-जुलने से कतराने लगते हैं. सामाजिक मेलजोल, पारिवारिक आयोजनों और बाहरी गतिविधियों से दूरी उन्हें अलग-थलग कर देता है.
डिजिटल फास्टिंग क्यों ज़रूरी है?
एक्सपर्ट कहते हैं कि पूरी चेतना के साथ एक परिवार के तौर पर डिजिटल फास्टिंग (मोबाइल, टीवी से दूरी) ऑनलाइन गतिविधियों पर अपनी निर्भरता कम करने की बुनियाद हो सकती है.वे कहते हैं, “डिजिटल डिटॉक्सिंग के लिए आपको बच्चों से बातचीत करने की ज़रूरत होती है और ये सुनिश्चित करना होता है कि वह खेलकूद और दूसरी ऑफ़लाइन गतिविधियों में हिस्सा लें. वे पर्याप्त नींद लें और ठीक से खाना खाएं.”
वडगांव निवासी दिलीप मोहिते गन्ना किसान हैं. उनके तीन बेटे स्कूल में पढ़ते हैं. वे कहते हैं कुछ घंटों के लिए मोबाइल, टीवी बंद करने का असर उन्हें दिख रहा है.वे कहते हैं, “पहले बच्चे पढ़ाई में ध्यान नहीं देते थे. अब पढ़ने की ओर रुझान बढ़ा है. और अब गांव में घर के भीतर और बाहर भी लोग सामान्य बातचीत में हिस्सा लेने लगे हैं.”