Key points…
*किसान सम्मान-निधि के मकड़जाल में बुरे फंसे किसान, भई गति सांप छछूंदर केरी,*
*मान-सम्मान मिल गया मिट्टी में, सरकारी राशि गबनकर्ता,धोखेबाज, डिफाल्टर का तमगा भी मिला अलग से,*
*मध्य प्रदेश के 99% किसान हुए अयोग्य अपात्र, बंगाल में एक भी सुपात्र किसान नहीं बचा,*
*अब राजस्व विभाग करेगा रहा किसान सम्मान निधि की वापस वसूली, जारी होंगे नोटिस, किसानों पर जमीन जायदाद की कुर्की नीलामी की तलवार लटकी*
*घर छोड़ भाग खड़े हो रहे हैं किसान,वसूली से किसानों में दहशत,किसानों में सरकार की लोकप्रियता में गिरावट*
*या तो तत्काल डैमेज कंट्रोल करें या फिर अगले लोकसभा चुनाव में किसानों की नाराजगी का खामियाजा भुगतने तैयार रहे सरकार,*
डॉ. राजाराम त्रिपाठी:*बजट आने वाला है, पर देश का किसान “कोऊ नृप होय हमें ही हानी” की मुद्रा में उदासीन सा चुप्पी साधे हुए है ।* इधर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि लेने वाले किसानों की जान बड़ी सांसत में है। जिन्हें सम्मान निधि मिल रही है, उन्हें कोई गारंटी नहीं कि अगली किस्त उन्हें मिलेगी ही। जिनके खातों में शुरुआत में 1- 2 किस्तें सौभाग्य अथवा दुर्भाग्य से जमा हो गई थी, और जिन्हें बाद में अपात्र/अयोग्य घोषित कर उनके नाम लिस्ट से काट दिए गए हैं, वो किसान बेचारे तो बुरे फंसे। ऐसे किसानों से वो राशि अब वापस वसूल की जा रही है। ये किसान कोई कोई इक्के दुक्के किसान नहीं हैं,,,मानो या ना मानो पर अब तक छत्तीसगढ़ के 94.7% किसान इस योजना के लिए अयोग्य अपात्र घोषित किए गए हैं,और अपात्र किसानों से बसूली हो रही है। मध्य प्रदेश के तो 99% किसान सम्मान निधि के लिए अयोग्य घोषित कर दिए गए हैं।
*कोई इन भारत के भाग्य विधाताओं से यह पूछे कि यदि छत्तीसगढ़ में 94.7% किसान तथा मध्यप्रदेश में 99% किसानों अयोग्य और अपात्र किसान हैं, तो क्या इन प्रदेशों के खेतों में भूत हल जोत रहे हैं? और सरकारी गोदामों में जो अनाज भरा पड़ा है वह क्या किसी जादुई चिराग के जिन्न ने दे दिया है ?*
वास्तव में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के किसानों की जान सबसे ज्यादा सांसत में है। छत्तीसगढ़ के कई जिलों में तो अब तहसीलदार तथा सरकारी अधिकारियों का दल किसानों के घरों में सम्मान निधि राशि वसूलने के लिए दिन-रात छापे मार रहे हैं और किसान इन वसूली अधिकारियों के डर से घर छोड़ भाग खड़े हुए हैं। किसानों का अपने गांव मोहल्ले में मान सम्मान मिट्टी में मिल गया है। बेवजह ये किसान डिफाल्टर कहला रहे हैं,और अपने गांव मोहल्ले में चेहरा दिखाने के काबिल नहीं हैं। इन किसानों से इस तरह व्यवहार किया जा रहा है मानो इन किसानों ने सरकार के साथ कोई भारी धोखाधड़ी की है, अथवा सरकारी राशि गबन की है, या सरकारी खजाने से कोई चोरी या डकैती की है। दरअसल् पिछले कुछ समय से देश के अन्नदाता किसानों को येन केन खलनायक साबित करने की ये कोशिशें एक सुविचारित रणनीति का हिस्सा हैं। हाल में ही इस मामले की खबर कुछेक समाचार पत्रों के मुख्य पृष्ठ पर लीड खबर के रूप में छपी थी, जिसमें किसानों की भारी लानत मलामत करते हुए ऐसे किसानों को बेईमान, धोखेबाज तथा गबनकारी साबित करने की कोशिश की गई थी। किसानों के लिए ऐसी अभद्र,अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया जा रहा है, जिसे पढ़कर शर्म आती है। यह भी हो सकता है कि, मीडिया को असल मामले का पता ही नहीं है, सरकार जो आधीअधूरी एजेंड़ा जानकारी उन्हें मुहैया करा रही है, उसे जस का तस छाप दे रहे हैं। किसानों की तरफ से ना कोई बोलने वाला है,और ना किसानों की कोई सुनने वाला है।
तो असल समझने वाली बात यह है कि इस सारे प्रकरण में किसानों का दोष आखिर क्या है?
ये अपात्र तथा दोषी किसान आखिर कौन हैं ?
ये बेचारे वही किसान है जिनके खातों में बड़े गाजे-बाजे के साथ किसान सम्मान निधि की राशि सरकार ने स्वयं अंतरित की थी, जबकि ये किसान कभी भी सरकार के दरवाजे इसे मांगने के लिए नहीं गए थे।
हकीकत तो यह है कि अब ये पीड़ित किसान उस दिन को कोस रहे हैं जिस दिन उन्होंने इस नामुराद योजना का लाभ जाने अंजाने में उठा लिया और चूहे की तरह इस योजना की चूहेदानी में फंस गए। उन्हें क्या पता था कि जो सम्मान राशि सरकार ने पूरे जांच पड़ताल के बाद, उनका नाम, पता, आधार कार्ड, मतदाता कार्ड, जमीन नकल, नक्शा ,पांचसाला खसरा सारी जानकारियां लेकर, देखकर , जांचकर, सत्यापन करके, बैंक खाता खुलवा कर उनके खातों में स्वयं माननीय प्रधानमंत्री जी ने सम्मान के साथ राशि अंतरित कर जमा की थी, अब उसी राशि को वापस वसूलने के लिए सरकार ऐसे ऐसे क्रूर हथकंडे अपनाएगी कि पत्थर दिल सूदखोर महाजन-साहूकार भी शर्मा जाए। सरकार इन तथाकथित अपात्र किसानों से यह सम्मान राशि अब जबरिया वसूलने पर तुल गई है और इसके साथ ही किसानों का बचाखुचा स्वाभिमान व मान-सम्मान भी रौंद रौंदकर पूरी तरह से मटियामेट कर दे रही है ।
बस्तर जिले में ऐसे सैकड़ों किसानों को ज्यादातर आदिवासी हैं, जिन्हें पहले इस योजना के दायरे में लिया गया था,उनके बारे में अब कहा जा रहा है कि वो इस योजना के पात्र कभी थे ही नहीं। बस्तर जिले के कृषि विभाग के पोर्टल के अनुसार 222 किसान ऐसे शामिल थे जो अपात्र होने के बाद भी किसान सम्मान निधि योजना का लाभ ले रहे थे,और ऐसे अपात्र किसानों से अब तक लाखों रुपये की वसूली की जा चुकी है, शेष किसानों से कड़ाई से वसूली कार्य जारी है।
पहले किसानों से सम्मान निधि वापस वसूलने के कार्य में कृषि विभाग को लगाया गया था, जो सुबह शाम इन अपात्र किसानों की दरवाजे पर दस्तक दे रहे थे। पाया गया कि कृषि विभाग के अधिकारी किसानों से अपेक्षित पर्याप्त राशि वसूल नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल किसानों के पास अगर पैसा हो तब तो वह वापस करें। किसान की जेब में पैसा और चील के घोसले में मांस भला कैसे हो सकता है। किसान को तो जो भी पैसा मिले,चाहे जहां से भी मिले वो सब खेती में खर्चे हो जाते हैं। औ यह सबको पता है कि खेती अब ज्यादातर घाटे का सौदा बन गया है। इसलिए किसान ज्यादातर खाली हाथ और खाली जेब हैं।
सरकार के लिहाज से अच्छी और किसानों के हिसाब से बेहद बुरी एक और खबर पेश है। अब सम्मान निधि की इस वसूली कार्य में गति लाने हेतु सबसे ज्यादा निपुण व वसूली विशेषज्ञ महकमे को यानी कि राजस्व विभाग को लगाया जा रहा है। इसका मतलब साफ है राजस्व विभाग इसके लिए आरआरसी जारी करेगा और वसूली की इस प्रक्रिया में किसानों की घर, जमीन जायदाद तक नीलाम हो जाती है।
कुल मिलाकर मोदी जी की इस योजना में बड़े बुरे फंसे किसान। किसानों को पहले मिली राशि,खून के आंसू रो रोकर वापस करनी पड़ रही है, समाज में मान सम्मान तो मिट्टी में मिल ही गया और सरकारी राशि के गबनकर्ता, धोखेबाज, डिफाल्टर का तमगा अलग से मिल गया है।
सरकार देश की 70% किसानों को दोषी ठहराते हुए कहती है की बड़ी मात्रा में अपात्र किसानों ने सरकार को धोखे में रखकर इस योजना का लाभ उठाया था। पहला सवाल यह है कि किसानों की और उनकी खेती की समस्त जानकारियां एकत्र करने, जानकारियों का विधिवत सत्यापन करने, उनका खाता खुलवाने, खाता खोलने, हितग्राही किसानों की सही पहचान करने, उनकी लिस्ट बनाने से लेकर उनके खातों में पैसे अंतरित करने तक का सारा काम सरकार तथा संबंधित विभागों का रहा है। किसानों की जमीनों के सारे दस्तावेज सरकार के पास हैं। अपना आधार कार्ड किसान स्वयं नहीं बनाता। जमीनों की नकल नक्शे भी पटवारी तथा राजस्व विभाग ही तैयार करता है। अगर इस कार्य से सभी संबंधित विभाग, बैक आदि उस समय अपनी अपनी जिम्मेदारी सही तरीके से निभाए होते तो यह स्थिति पैदा ही नहीं होती। आज सारा ठीकरा इन निरीह किसानों पर आप फोड़ रहे हैं, जबकि इन बेचारे किसानों का इन कार्यों के सभी स्तरों पर में कोई निर्णायक भूमिका थी ही नहीं।
भाई,आप यदि योजना को 2 महीना या 3 महीना रुक कर लांच करते, आखिर आपका क्या बिगड़ जाता, नुकसान होता ही तो किसानों का ही होता। ज्यादा से ज्यादा एक किस्त से पिछड़ जाते। लेकिन पहले की तथा उसकी खेती की पूरी जानकारियां एकत्र कर लेते पात्र, कुपात्र, सुपात्र का निर्णय कर लेते फिर सही सटीक खाता खुलवा कर राशि अंतरित कर देते। तब काहे को यह महाभारत होता। जल्दी किसानों को नहीं थी, जल्दी आपको पड़ी थी। चुनाव में इस योजना का प्रचार करके किसानों का थोक वोट जो लेना था। किसानों ने आप को थोक में वोट देकर संसद में बहुमत भी दिला दिया। पर आप तो सूदखोर महाजन से भी बुरे निकले। अब धीरे-धीरे 70% किसानों की सम्मान निधि आपने किशन किसी बहाने बंद कर दी है। उल्टे जिन किसानों को सम्मान निधि मिली थी उनसे निर्मम वसूली जारी है।
इस सम्मान निधि की पूरी क्रोनोलाजी को समझें। पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले छोटे किसानों को “प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि” के रूप में साल भर में 6 हजार की राशि 3 समान किस्तों में देने की घोषणा की गई। फरवरी 2019 में पहली किस्त देश के 11.84 करोड़ किसानों को दी गई । इसके बाद किस्त दर किस्त लाभार्थियों की संख्या में कृष्ण पक्ष के चांद की तरह लगातार कटौती होते गई। मीडिया की खबरें कह रही हैं कि, कृषि मंत्रालय से सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, योजना के तहत पूर्व चिन्हित 11.84 करोड़ लाभार्थियों में से 11 वीं किस्त मात्र 3.87 करोड़ किसानों को ही मिली। 12 वीं किस्त हेतु केवल 3.01 करोड़ (29 जनवरी तक) किसान ही सरकार की नजरों में इस सम्मान व निधि के योग्य माने गए। यही कुछ बड़े समाचार पत्रों में 12वीं किस्त में 12 करोड़ तथा कुछेक समाचार पत्रों में 10 करोड किसानों को सम्मान निधि की किस्त दिए जाने की जानकारी दी गई । किसानों को सम्मान निधि के रूप में 12वीं किस्त में वितरण की जाने वाली कुल राशि 16 हजार करोड़ भी बताई गई। यदि 16 हजार करोड की राशि सम्मान निधि हेतु 12 वीं किस्त में वितरित की गई इसका तो मतलब यह होता है कि हाल की यह 12 वीं किस्त 8 करोड़ किसानों को बांटी गई। पीएम किसान सम्मान निधि योजना के लाभार्थियों की सही संख्या तथा कुल वितरित की जाने वाली वास्तविक राशि के बारे में अब यह तो तय है कि या तो सरकार झूठ बोल रही है या फिर ये कुछेक बड़े समाचार पत्र झूठ बोल रहे हैं। और अगर ये झूठ बोल रहे हैं तो, उसका कारण तथा निहितार्थ क्या हैं?
सवाल यह भी है कि असल सच्चाई आखिर क्या है? कितने किसानों को 12 वीं किस्त में, कुल कितना रुपया दिया गया,और आगामी में किस्तों में कितने किसानों को यह सम्मान निधि मिल पाएगी ? सरकार तथा किसानों दोनों के हित में इन बिंदुओं पर पारदर्शिता बेहद जरूरी है।
इतने पर ही बस नहीं है। आप सुनकर भले यकीन करें या न करें पर सरकारी आंकड़े कहते हैं मध्य प्रदेश में कुल किसानों की संख्या 1 करोड़ 8 लाख है, अब इनमें गरीब किसान मात्र 12 हजार बचे है। आंकड़ों की भाषा में इसका मतलब हुआ कि मध्यप्रदेश में अब केवल 0.1 प्रतिशत ही गरीब किसान बचे हैं,और यहां के बाकी के 99.9% किसान सरकार की नजरों में अमीर और मालामाल हो गये हैं। यानी कि 1000 किसानों में केवल 1 किसान गरीब और सुपात्र बचा है।
सम्मान-निधि से वंचित होने वाले किसानों की संख्या के मामले में छत्तीसगढ़ देश में दूसरे नंबर पर है। यहां पहली किश्त 37 लाख 70 हजार किसानों को दी गई थी, वहीं 11वी किश्त, लगभग 2 लाख किसानों के खातों में ही आई है। मतलब 3 साल में 94.7 प्रतिशत किसान सम्मान निधि के अयोग्य और अपात्र हो गए, और अब छत्तीसगढ़ में सिर्फ 5.3 प्रतिशत किसान ही सुपात्र व गरीब बचे हैं, बाकी सब या तो मालदार हो गए हैं या अयोग्य हो गए हैं।
इसी कड़ी में कहा गया है कि, *पश्चिम बंगाल में 2019 में 45.63 लाख किसानों को राशि मिली और छठवीं किस्त के बाद से किसी भी किसान को पैसा नहीं मिला।* कहीं इसका मतलब यह तो नहीं कि,, किसान जी जब आपने हमारी पार्टी की सरकार ही अपने राज्य में नहीं बनाई, तो फिर आपका काहे का सम्मान और काहे की निधि?
इधर समाचार माध्यमों में फिर लुभावनी लालीपॉप खबरें तैर रही हैं कि किसानों को अब ₹8000, आठ हजार सालाना सम्मान निधि दी जाएगी। क्या सचमुच देश के सभी किसानों को बिना भेदभाव के यह राशि दी जाएगी अथवा यह घोषणा भी चुनाव के पहले देश के किसानों को सामूहिक रूप से मूर्ख बनाने,सामूहिक सम्मोहन तंत्र का एक नया मंत्र है? इस बार किसानों को इस चक्रव्यूह को समझना भी होगा और इसे तोड़ना भी होगा। सरकार को भी यह समझना होगा कि सभी किसानों को हमेशा मूर्ख नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।
अंत में,, इस अधोगामी योजना के जन्म और शुरुआत का कुछ हद तक दोषी इस लेख का लेखक अपने आप को भी मानता है, और जिसका कठिन भी प्रायश्चित भी वह कर रहा है। पिछले चुनावों के पहले भाजपा की चुनाव समिति ने देश के लगभग एक दर्जन अग्रणी किसान नेताओं को आमंत्रित कर चुनाव घोषणा पत्र में शामिल करने हेतु सुझाव मांगे थे। उस बैठक में तब इसी लेखक ने “अखिल भारतीय किसान महासंघ” आईफा के संयोजक की हैसियत से समिति को देश के समस्त किसानों को एकमुश्त सम्मान निधि के रूप में देश के सभी किसानों को बिना भेदभाव पर्याप्त राशि देने की सलाह दी थी। उस समिति के सदस्य आज भी गवाह हैं कि मेरी यही एकमात्र सलाह थी जिसे उस दिन भाजपा की चुनाव समिति के सभी सदस्यों ने पहली बार में ही करतल ध्वनि से सर्वसम्मति से पास किया और अपने घोषणा पत्र में शामिल भी किया। चुनाव जीतने के बाद सरकार ने सबसे पहला काम अपने घोषणा पत्र की इस योजना को लागू करने का किया भी। लेकिन योजना को जिस तरीके से लागू किया गया और वर्तमान में जिस तरह से किसानों को अपमानित करते हुए, पूर्व में दी गई राशि वसूल की जा रही है,इन सभी कृत्यों ने इस महात्वाकांक्षी योजना के सारे महान उद्देश्यों पर पूरी तरह से पानी फेर दिया है। इतना ही नहीं अपने इन्हीं धतकर्मों की वजह से सरकार किसानों में सर्वाधिक अलोकप्रिय सरकार बनती जा रही है।]* दूसरी ओर न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून की एकसूत्रीय मांग को लेकर पूरे देश के किसान एक बार फिर से जबरदस्त तरीके लामबंद हो रहे हैं। गेंद अब सरकार के पाले में है। अब ये सरकार के ऊपर है, कि वह चाहे तो जमीनी किसान संगठनों से बात कर खेती तथा किसानों की इन समस्याओं के सही समाधान की ओर ईमानदारी से परिणाम-मूलक कोशिश करे और अब तक हुए नुकसान को न्यूनतम रखने की कोशिश करते हुए नुकसान की भरपाई करने की सार्थक कोशिश करे।
अथवा जैसा कि वर्तमान में चल रहा है, वैसे ही अपने चाटुकार अधिकारियों, जूठन की आस में सरकार की परिक्रमा करने वाली कुछेक किसान नेताओं, और अपनी भांड मीडिया की ठकुरसुहाती, झूठी बातों पर यकीन करें , और इसी तरह मुगालते में पड़े रहें और आगामी लोकसभा चुनाव में सच्चाई का सामना करें।