इस गांव में बुजुर्ग अगली पीढ़ी को संस्कृत सिखा रहे…संस्कृत हमारे लिए सिर्फ भाषा नहीं,परंपरा है…ज्ञान की भी अपनी यात्रा होती है आने वाली पीढ़ियों को सशक्त बनाने के लिए उन्हें नींव से जोड़े रखना जरूरी

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‘देश में कई भाषाएं बोली जा रहीं है, लेकिन सामाजिक एकता स्थापित करने की जो क्षमता संस्कृत में है, वह किसी और भाषा में नहीं। जब मकसद देश को विकसित बनाना है तो यह संस्कृत के इस्तेमाल के बिना मुमकिन नहीं है। संस्कृत को हिंदी के साथ राष्ट्रभाषा बनाया जाना चाहिए।’ सोमवार, 12 दिसंबर को यह मांग लोकसभा में की गई। मांग करने वाले हमीरपुर से BJP सांसद कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल थे।

पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा लोग संस्कृत का इस्तेमाल करें, इसकी सभी कोशिशें होनी चाहिए, लेकिन कर्नाटक में एक गांव ऐसा है, जहां सभी लोग संस्कृत बोलते हैं। नाम है मत्तूरु। बाहर से दिखने में किसी सामान्य गांव जैसा, पर अंदर जाते ही लगने लगता है कि ये सामान्य गांव नहीं है। लोग बड़े-बड़े बंगलों में रहते हैं, जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं और जमीन पर ही सोते हैं। ये देश का पहला संस्कृत गांव है।

4 हजार की आबादी वाले इस गांव में बच्चा हो या बुजुर्ग सभी संस्कृत बोलते हैं। सड़कों पर चलते हुए लोग आपको ‘नमस्कारः, भवान्‌ कथमसि?(आप कैसे हैं) , किं त्वं अस्माभिः सह भोजनं करिष्यसि (क्या आप हमारे साथ खाना खाएंगे), कुत्र आगच्छसि (कहां से आ रहे हैं) और कुत्र गच्छसि’ (कहां जा रहे हैं) बोलते हुए नजर आ जाएंगे।

मत्तूरू गांव के ज्यादातर लोग वैदिक परिधान यानी धोती पहनते हैं। यहां के लोग सैकड़ों साल से ऐसा ही जीवन जी रहे हैं।मैंने गांव में घूमना शुरू किया तो पता चला कि यहां रहने वाले सभी लोगों के लिए संस्कृत सीखना जरूरी है। गांव में शराब और नॉन-वेज की कोई दुकान नहीं है। यहां हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी रहते हैं। वे भी संस्कृत बोलते हैं। गांव के चारों ओर मंदिर बने हैं। यहां के लोग वर्ण व्यवस्था को नहीं मानते। उनके लिए हर धर्म और जाति एक बराबर है।

गांव में सुपारी की खेती, हर घर में इंजीनियर।शिमोगा जिले में आने वाला मत्तूरू गांव जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर बसा है। यहां के ज्यादातर लोग सुपारी की खेती करते हैं। गांव में वाईफाई इंटरनेट, लग्जरी गाड़ियां और शानदार बंगले मौजूद हैं, लेकिन माहौल किसी गुरुकुल जैसा।

गांव के कई परिवार सुपारी के कारोबार से जुड़े हैं। यही वजह है कि यहां लोग काफी समृद्ध हैं।खास बात यह है कि गांव के लगभग हर घर में एक इंजीनियर है। ये भी पता चला कि कुछ घरों के लड़के मेडिकल की पढ़ाई करने अमेरिका और जर्मनी गए हैं। ऐसा नहीं है कि गांव के लोगों को सिर्फ संस्कृत का ज्ञान है। यहां के लोग अंग्रेजी और कन्नड़ भी बोल सकते हैं। हर हफ्ते गांव में चौपाल लगती है, जहां बुजुर्ग हाथ में माला लिए मंत्रोच्चार करते हैं।

गांव से निकले 30 से ज्यादा संस्कृत प्रोफेसर।मत्तूरू में सब्जी बेचने वाले से लेकर दुकानदार तक संस्कृत समझते और बोलते हैं। गांव की दीवारों पर संस्कृत में नारे,ऑफिसों में संस्कृत में बोर्ड और नेमप्लेट लगी हैं। गांव से 30 से ज्यादा संस्कृत के प्रोफेसर निकले हैं, जो कुवेम्पु, बेंगलुरु, मैसूर और मंगलुरू की यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं। भारतीय विद्या भवन, बेंगलुरु के डायरेक्टर और कन्नड़ राइटर माथुर कृष्णमूर्ति, वायलिन वादक वेंकटराम और गामाका गायक पद्मश्री एचआर केशवमूर्ति इसी गांव के हैं।

‘संस्कृत हमारे लिए सिर्फ भाषा नहीं, परंपरा है’
गांव में घुसते ही एक बड़े से बंगले पर नजर जाती है। इसके बाहर हमें किरण अवधानी मिले। सफेद रंग के वैदिक परिधान पहने किरण मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। हमें देखते ही संस्कृत में हमारा अभिवादन किया। फिर बातचीत शुरू हुई। गांव में संस्कृत के इस्तेमाल पर किरण कहते हैं- ‘संस्कृत हमारे लिए सिर्फ भाषा नहीं, बल्कि पिता-पुत्र, गुरु-शिष्य की तरह एक परंपरा है। यह ऋषि-मुनियों से मिला वरदान है।’

ऑफिसों का कामकाज कन्नड़ में, बातचीत संस्कृत में
गांव के आखिरी छोर पर ग्राम पंचायत का ऑफिस बना है। यहां हमें ऑफिस में सीनियर क्लर्क सुषमा मिलीं। उन्होंने बताया कि सरकारी कामकाज नियम के मुताबिक, कन्नड़ भाषा में होता है, पर ऑफिसों में बोलचाल में संस्कृत ही इस्तेमाल होती है।

गांव की मूल भाषा संकेथी भी संस्कृत से जन्मी
मत्तूरू गांव में एक शारदा शाला (संस्कृत विद्यालय) है। स्कूल के प्रिंसिपल गिरीश कुलश्रेष्ठ सिर्फ संस्कृत में बात करते हैं। उन्होंने बताया कि करीब 40 साल पहले गांव में ‘वेद संस्कृति यज्ञ’ हुआ था। उसमें देश-विदेश से कई विद्वान आए थे। उन्होंने ही मत्तूरू को ‘संस्कृत ग्राम’ का दर्जा दिया। गांव की मूल भाषा संकेथी है, जिसका जन्म संस्कृत से हुआ है। यह भाषा तमिल और मलयालम का मिश्रण भी है।

इंग्लिश स्पीकिंग क्लास की तरह संस्कृत स्पीकिंग क्लास
गिरीश ने बताया कि संस्कृत भारती नाम की संस्था इस भाषा के विकास और प्रचार का काम कर रही है। इंग्लिश स्पीकिंग क्लास की तरह हमारे यहां संस्कृत स्पीकिंग क्लास चलाई जाती है। संस्कृत के अलावा यहां कन्नड़ भी बोली जाती है। गांव से बाहर व्यावहारिक तौर पर संस्कृत इस्तेमाल नहीं की जाती, इसलिए युवाओं को थोड़ी दिक्कत होती है।

दूसरी भाषाओं में संस्कृत के 70% शब्द
स्कूल में घूमते वक्त हमें एक क्लास से आती संस्कृत के श्लोक की आवाज सुनाई दी। हम क्लास में पहुंचे, तो गुरु अनंत कृष्णन से मुलाकात हुई। अनंत ने बताया कि वे 10 साल से बच्चों और गांव के लोगों को संस्कृत सिखा रहे हैं। वेद और पुराणों का अध्ययन करवाते हैं। गांव में हिंदू या फिर मुसलमान सभी संस्कृत में ही संवाद करते हैं।अनंत ने कहा कि लोग सोचते हैं कि संस्कृत पढ़ने से नौकरी नहीं मिलती, लेकिन संस्कृत का इस्तेमाल लगभग हर भाषा में होता है। हिंदी, मलयालम, तमिल और मराठी में 70% से ज्यादा शब्द संस्कृत से लिए गए हैं।

अमेरिका, जापान और जर्मनी से लोग संस्कृत सीखने आते हैं
अनंत ने बताया कि हम यहां पहली कक्षा से बच्चों को संस्कृत सिखाते हैं। साथ में योग और वेद की शिक्षा भी दी जाती है। संस्कृत श्लोक बोलते-बोलते उच्चारण साफ हो जाता है। हमारे यहां देश के अलावा विदेश के अलग-अलग हिस्सों से लोग संस्कृत सीखने आते हैं। इनमें जर्मनी, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं।

यहां 20 दिन, एक महीना या तीन साल तक रहकर लोग संस्कृत सीखते हैं। कई लोग रिसर्च के लिए भी आते हैं। ज्यादा से ज्यादा लोग संस्कृत जानें, इसके लिए हम आसपास के गांव, मंदिर और सार्वजनिक स्थलों में संस्कृत के बोलचाल वाली कक्षाएं लगाते हैं।वहीं, गांव के दीपक शास्त्री कहते हैं कि हमारी प्राथमिक भाषा संस्कृत है। हम बच्चों से इसी में बात करते हैं। यह तो सनातन की भाषा है। मैंने अपने स्कूल में संस्कृत सीखी थी।

‘मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई संस्कृत में हो’
स्कूल में ही हमें 10वीं में पढ़ने वाले अनंतराम मिले। हमने अनंतराम से पूछा कि आप संस्कृत क्यों सीख रहे हैं तो जवाब मिला- जब दूसरे देशों से लोग हमारे यहां आकर संस्कृत सीखते हैं, फिर हम यहां रहने वाले क्यों ना सीखें। मेडिकल और इंजीनियरिंग की तरह ही संस्कृत में भी हमारे सिलेबस होने चाहिए और मुझे लगता है कि आने वाले समय में यह होगा भी।

बुजुर्ग अगली पीढ़ी को संस्कृत सिखा रहे
गांव के सुब्रमण्यम अवधानी ने बताया कि गांव के बुजुर्ग और टीचर अगली पीढ़ी को संस्कृत सिखा रहे हैं। मेरे तीन बच्चों को मैं संस्कृत सिखा रहा हूं। वे सभी वेद, उपनिषद और पुराणों का अध्ययन करते हैं। मेरा बड़ा बेटा संस्कृत का विद्वान है। हम चाहते हैं कि सभी बच्चे संस्कृत में ही करियर बनाए। हमारे यहां 15 विद्यार्थी बाहर से आए हैं। उनके रहने और खाने का इंतजाम हम ही करते हैं।

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