गोपी साहू:आदिवासी अपनी समृद्ध सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं के अलावा अपने खानपान के लिहाज से भी समृद्ध है. आदिवासी समुदाय स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों और तकनीकों पर निर्भर करते हैं. ऐसी आदिवासी खाद्य प्रणालियाँ इन समुदायों की संप्रभुता और आत्मनिर्भरता बनाए रखने में सहायक रही हैं.
छत्तीसगढ़ के बस्तर में रहने वाले आदिवासी ग्रामीण आज भी अपने संस्कृति को नहीं भूले हैं. आदिवासियों की अपनी परंपरा आज भी कायम है और उनका रहन-सहन भी सबसे अलग है. खास बात यह कि इस क्षेत्र के वनवासी ‘जल जंगल जमीन’ को ही अपनी सबसे बड़ी पूंजी मानने के साथ इनकी रक्षा करते हैं और इनसे ही अपने जीवन से जुड़ी सभी जरूरतों को पूरा करते हैं. इन वनवासी क्षेत्रो में कुछ ऐसे तस्वीरें भी देखने को मिलेंगे जो पूरे देश मे और कहीं नहीं दिखाई देंगें और उनमें से एक है आदिवासियों के घरों की बाउंड्री, जिन्हें आदिवासी पेड़ की लकड़ी (खूंटे) से बनाते हैं और जिसे ग्रामीण बेड़ा घेरा कहते है.
आधुनिकता के दौर में भी नहीं भूले है अपनी सभ्यता
यहां के आदिवासियों के जीवन का जंगल मुख्य स्रोत भी है. वनोपज के साथ साथ पेड़ के लकड़ियों से ग्रामीण अपने घरों में इस्तेमाल करने के लिए वस्तुओं के साथ बाउंड्री से लेकर घर भी बनाते हैं. ग्रामीणों को मिट्टी और जंगल आसानी से उपलब्ध होते है इसलिए ग्रामीण इसका अपने जीवन के लिए उपयोग में लाते हैं. आधुनिकता के दौर में भी बस्तर के आदिवासी आज भी पुरानी सभ्यता को नही भूले हैं और उनकी सदियों से चली आ रही परम्परा आज भी कायम है.
दरअसल, बस्तर के वनवासी क्षेत्रों में आज भी ग्रामीण अंचलों के घरों में पेड़ के लकड़ियों की ही चार दीवारी होती है. घर हो या खेत इसके चारों और लकड़ी के खूंटे गाढ़कर बाउंड्री बनाई जाती हैं. ग्रामीण अंचलों में आपको दूर-दूर तक सीमेंट या ईट की दीवारें नहीं दिखाई देंगी. यहां आदिवासी लकड़ी के खूंटो को ज्यादा महत्व देते हैं और इन खूंटो से ही अपनी पूरी बाउंड्री को घेरते हैं. यह खूंटे 100 सालों तक टिकाऊ रहते हैं.
ग्रामीणों ने यह भी बताया कि वह जब गांव बसे तब लकड़ी के ही खूंटे गाढ़कर लोग घर बनाते थे. गांव में कई घर आज भी लड़कियों के खूंटे के बने हुए हैं. समय के साथ साथ आज जब संसाधन बढ़ गए है लेकिन ग्रामीण अपनी सभ्यता को बचाए रखे हुए हैं. ग्रामीणों का यह भी कहना है कि बाउंड्री बनाने के लिए जंगलो से लकड़ी जरूर काटी जाती है लेकिन पर्यावरण को बनाये रखने के लिए ग्रामीण पौधे भी उसी संख्या में लगाते हैं और उसे देवता या परिवार का सदस्य मानकर उसकी पूरी देखभाल करते है.